Moral Stories in Hindi : एक छोटे –से शहर की रहने वाली अंकिता ने काशी से समाजशास्त्र में स्नातक किया था। स्नातक होकर अब वह अपना कार्यक्षेत्र समाज के उन जरूरतमंद समूहों के बीच बनाना चाहती थी, जिसे लोग हेय दृष्टि से देखते हैं। अतः उसने अपने शहर के मूक – बधिर व दृष्टिहीन बच्चों के लिए कुछ प्रेरणास्पद कार्य करने प्रारंभ किए।
वह प्रत्येक शाम को इन बच्चों को 2–3 घंटे समय देने लगी। इशारों से वार्तालाप करना, उनकी रुचियों के अनुसार उन्हें पेंटिंग, रंगोली, कविता लेखन और अन्य ढेरों हस्तशिल्पों में प्रशिक्षित करना इत्यादि उसकी समाजसेवा का अंग बन गए। प्रत्येक शनिवार को वह इन बच्चों के बीच तरह –तरह की प्रतियोगिताएं कराती और रविवार को अच्छा प्रदर्शन करने वाले बच्चों को प्रोत्साहन स्वरूप पुरस्कृत भी करती थी।
परिवार के लोग और उसके मित्रजन उसके इस साहसिक कदम से प्रभावित थे और उसे समर्थन देते थे। परंतु पड़ोस की विमला आंटी को उससे बहुत # जलन होती थी। जैसे ही वह उन दिव्यांग बच्चों के पास से वापस आती, विमला आंटी के ताने शुरू हो जाते –” इन अंधों– बहरों के साथ रह –रह कर तेरे भी आंख– कान काम करना न बंद कर दें। अरे ! कुछ और भी काम देख ले, अपंगों से घिरी रहती है।” ऐसा लगता था मानो जैसे– जैसे अंकिता के इस कार्य को सामाजिक स्वीकृति और प्रशंसा प्राप्त हो रही थी, वैसे –वैसे विमला आंटी की # जलन भी बढ़ती जाती थी।
साल बीतता गया, आज अंकिता के द्वारा प्रशिक्षित उन मूक–बधिर, नेत्रहीन बच्चों ने जिला स्तर पर अपने हस्तशिल्पों की प्रदर्शनी लगाई थी। सुंदर पेंटिंग्स, डलिया, रंग –बिरंगे पेन स्टैंड, गुलदस्ते,फोटो फ्रेम्स और जाने क्या– क्या… तमाम प्रकार के खूबसूरत सामानों को देख कर हर कोई आश्चर्यचकित रह गया। इन नन्हें बच्चों की कलात्मकता से प्रभावित होकर डीएम द्वारा अंकिता को सम्मानित किए जाने की घोषणा हुई। साथ ही उसके इस कार्य को और भी विस्तृत स्तर पर प्रसारित करने के लिए सरकारी सहायता प्रदान करने की भी बात की गई। अर्थात् अंकिता को इन दिव्यांग बच्चों के ऊपर मेहनत करने का एक अत्यंत सुखद फल मिल चुका था।
और तभी, दूसरी तरफ विमला आंटी को एक बेटा हुआ….जिसकी आंखें नहीं थी। वे तो जैसे अवाक रह गई। उनके मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे, और आंखों से पश्चाताप के आंसू बह निकले। आज विमला आंटी को अपनी गलती समझ में आ रही थी–
उनकी # जलन का परिणाम ईश्वर ने उनके बेटे के रूप में दे दिया था।
#जलन
© स्वप्निल “आनंद”
स्वरचित एवं अप्रकाशित