Moral stories in hindi : दूरदराज का गांव था। गांव में छोटे-छोटे घर और घरों के आगे खुला आंगन ,जिसे चौक भी कहते हैं ।घरों के चारों ओर कोई दीवार नहीं थी। चंदा भाभी अपनी 7 साल की बेटी को गोद में लेकर आती और आंगन में पड़ी चारपाई (खाट) पर लिटा देती ।
यह सिलसिला लगभग रोज का ही था। दरअसल चंदा की बेटी पोलियो के कारण चल नहीं सकती थी। वैसे देखने पर टांगों में कोई कमी नजर नहीं आती थी। सर्दियों के दिन थे तो पैरों की थोड़ी तेल मालिश करके, धूप लग जाए, यह सोच कर कुछ देर पैरों को खुला ही रखती थी ।भीतर बाहर काम करते हुए उससे बतियाती थी और यदि सो गई होती, तो चुपचाप अपना काम निपटाती ।
साथ के घर में अम्मा और उसके लड़के रहते थे। बाकी तो सब काम पर चले जाते ,परंतु एक लड़का घर पर ही रहता। कोई काम धंधा ना करने के कारण ,यहां- वहां घूमता रहता ।चंदा भाभी भी कभी – कभार छोटे-मोटे काम उसे छोटा देवर समझ कर करवाती रहती ।तो घर में आने जाने में अधिक पर्दा नहीं था ।
मुन्नी को जब चारपाई पर लिटाती तो वह भी वहां आकर धूप सेकने के बहाने आसपास घूमता रहता और कभी तो चारपाई के किनारे पर बैठ जाता ।भाभी को इसमें कोई आपत्ति नजर नहीं आती थी।
एक-दो दिन से मुन्नी चारपाई पर लेटने से आनाकानी करने लगी ।पर कह कुछ नहीं पाई। चंदा ने उसे डांटा कि धूप नहीं सेकेगी तो टांगों में जान कहां से आएगी। इस पर मुन्नी ने मां से मनुहार भी की कि उसे चारपाई पर अकेली ना छोड़ा करें । चंदा को फिर भी बात समझ में नहीं आई । बोली बिटिया अकेले डर काहे का है, चाचा तो होते हैं वहां और मैं भी तो घर में आसपास घूमती रहती हूं ।अब छोटी सी बच्ची समझ चुकी थी कि मां को अपना असली डर बताने का कोई फायदा नहीं।
कुछ दिन ऐसे ही निकल गए ।चंदा मुन्नी को चारपाई पर लिटा कर काम करने के लिए घर में चली गई। तभी पड़ोस वाले चाचा आए और चारपाई पर बैठने लगे। चंदा किसी काम से बाहर आई तो उसे उसकी हरकतों पर थोड़ा शक हुआ कि कहीं यह मुन्नी से छेड़छाड़ तो नहीं कर रहा। ऐसा सोचते ही मुन्नी की सारी बातें याद आ गई वह बाहर आ गई। चंदा को देखते ही वह सकपका गया अतः वहां से चला गया ।
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अगले दिन चंदा अपने शक को यकीन में बदलने के लिए मुन्नी को चारपाई पर लिटा कर ओट में छिप गई। तभी मांगू चाचा आए। मगर चारपाई पर बैठने से पहले देख कर तसल्ली कर ली कि कोई आस पास तो नहीं है और मुन्नी के करीब बैठकर चंदा की आशंका के अनुसार हाथ चलाने लगा। उसकी हरकत शुरू होने से पहले ही चंदा ने गुस्से में दन दनाते हुए आकर एक जोरदार चांटा उसे जड़ दिया। वह इस अकस्मात हमले के लिए तैयार नहीं था। उसने गाल को पकड़ते हुए तमतमाते चेहरे के साथ वहां से भागने में ही भलाई समझी ।गलती तो थी ही और रंगे हाथों पकड़ा भी गया ।
चंदा के शक को यकीन का धरातल मिल चुका था ।फिलहाल तो उसे मुन्नी को इस ट्रॉमा से बाहर निकालना था और भरोसा दिलाना था कि डरे नहीं। उसकी मां उसकी ढाल बनकर खड़ी है। आज मुन्नीअपने शारीरिक कमजोरी की पीड़ा से कम और सामाजिक व्यवहार से अधिक पीड़ित थी। घर से बाहर ना निकल कर भी उसने पूरे समाज के प्रति अपनी धारणा बना ली थी कि वह और उसके जैसी लड़कियां कहीं भी सुरक्षित नहीं है।
अब बारी थी चंदा की कुछ निर्णय लेने की ।पूरा दिन यही सोचती रही कि क्या करें जिससे पड़ोस में कोई ऊंच-नीच ना हो और उसे इस तरह की हरकतें फिर ना देखने को मिले। चंदा ने अपने जीने का मकसद सोच लिया ।
गांव की सभी महिलाओं को एकत्र करके पहले उन्हें ऐसी समस्याओं से अवगत कराया। फिर जागरूक करने हेतु उनकी कक्षाएं ली। इसके बाद सभी लड़कियों को अपनी ‘ रक्षा स्वयं करें ‘ के माध्यम से ‘ सेल्फ डिफेंस ‘ की ट्रेनिंग की। हां इसके लिए उसने कुछ पढ़ी-लिखी लड़कियों की भी मदद ली।
आज वह गांव महिला सुरक्षा के मामले में आत्मनिर्भर गांव बन चुका है। छोटा सा प्रयास बड़े-बड़े मंसूबों को पूरा कर सकता है। छिप कर बैठने की बजाय समस्या का सामना करें और समाधान निकाले ।कोई दूसरा नहीं आएगा हमारी बहन बेटियों को बचाने।
स्वरचित कहानी
माया मंगला