आज स्कूल में सजावट देख गिरधारी लाल जी के कदम चलते – चलते रुक गये। तब उन्हें लगा कि कोई त्योहार भी नहीं है, पता नहीं ना जाने काहे फूलों से गेट सज रहा है, तब वहाँ के चौकीदार से उत्सुकता वश पूछा -क्यों भैया ना पंद्रह अगस्त है, ना ही छब्बीस जनवरी आ रही है तो सजावट कैसी ….!!कोई समारोह या आयोजन है क्या….. ? ?
ये सुनकर प्यून बोला-
“नहीं बाबूजी पहले वाली प्रिसिंपल का ट्रांसफर हो गया है। अब नयी वाली प्रिसिंपल स्कूल ज्वाइन करने वाली है ,इसलिए उनके स्वागत में गेट सज रहा है। ” फिर गिरधारी लाल खेत चला आया। उसने उससे नाम जानने की जरूरत नहीं समझी। वह ठहरा किसान …..उसे क्या करना? कि कौन प्रिसिंपल आ रही है।
गिरधारी लाल अपने पिता की जमीन खून पसीने से सींचकर खेती बाड़ी से खुश था। वैसे ही उसका बेटा भी पढ़ाई न कर पाने के कारण वह भी खेती में हाथ बंटाने लगा। उसे लगता है कि बाबूजी परेशान न हो। रोज सुबह दोनों बाप बेटे खेत जाते,,किसानी करते। उनकी जिंन्दगी में कुछ न बदला था ।अब गिरधारी लाल अपने बेटे मनोहर का ब्याह कर पोते पोती का सुख भोग रहे थे। बहू दीपा भी समझदारी से घर संभाल रही थी।
सुबह से शाम को घर लौटे गिरधारी लाल ने जब अंकुरऔर अंकिता की बात सुनी तो वही जम्म होकर खड़े रह गये। अंकुर अंकिता से कह रहा था कि अपने स्कूल की नयी प्रिसिंपल मैडम का नाम सरला ही है। पहले वाली भी सरला मेडम थी, इस बार भी….
ये सुनकर उन्हें लगा कि कहीं मनोहर की माँ ही तो प्रिसिंपल बन कर तो नहीं आ रही है। तब उन्हें वहाँ खड़ा देख मनोहर बोला – ” ” अरे बाबूजी काहे खडे़ हो ,बैठ जाओ कुछ परेशानी है क्या??”
तब हिचकिचाहट से बाबू जी ने कहा – ” आज तेरे बच्चों के मुख से तेरी मां का नाम सुना तो लगा इतने सालों बाद वही नाम!!
इसलिए पैर मेरे जमीन पर जम से गये। “
तब मनोहर कहता – ” काहे याद कर रहो ,,जिससे केवल दुख मिले। जितना मुझे याद है, मैं दस साल का रहा होऊंगा। तभी मां को मेरे प्रति ममता ना आयी। आप ने ही मां बाप दोनों का प्यार मुझे दिया। वो अचानक मुझे अकेले देखे तो कहो वो पहचान ही न पाए। वो कैसे मेरे बचपने में मुझे छोड़ कर चली गई थी। दादी बताती थी तेरी मां ज्यादा पढ़ी लिखी थी। इसलिए उसे अपनी पढ़ाई पर अभिमान था। “
तब गिरधारी जी कहने लगे- ” हां बेटा मैं कैसे उस समय को भूल सकता हूं। जब तेरी मां मेरी हर बात का उलटा मतलब निकाला करती थी। ” तभी मनोहर बोला- क्यों पुराने जख्म ताजा कर रहे हो। आपका केवल मन ही आहत होगा। अब तो वो हमें भूल भी चुकी होंंगी। उन्हें अपनी जिंदगी जीनी थी। सो उन्होंने जी ली,,,नौकरी करके आपको नीचा ही दिखाना था। अब सब खत्म हो गया बाबूजी…..” फिर गिरधारी लाल जी कहने लगे – हां बेटा तेरी मां को मेरा खेती किसानी करना रास न आता था। दिन रात कलह के कारण हमारा तलाक हुआ था।
ये सब सुनकर दिलासा देकर मनोहर ने कहा- बाबूजी जो इतने सालों तक जिसने हमारी खबर न ली ,तो अब काहे सोच रहो हो। सामने आ भी जाए तो हमें उनसे क्या लेना देना। छोड़ो….. ….
अगले दिन अंकुर और अंकिता जब स्कूल गये। स्कूल में राष्ट्र गान हुआ।
फिर अंकुर और अंकिता के साथ स्कूल के सारे बच्चे ने प्रिसिंपल मेडम का फूलों को बरसाते हुए स्वागत किया। फिर वो अपने आफिस में बैठी। सभी क्लास के बच्चों का रजिस्टर चैक करने लगी। तभी उसकी नजर एक पिता के नाम मनोहरलाल लोधी दादा नाम गिरधारी लाल लोधी पर पड़ी। उसे पढ़ते ही सरला जी का हृदय पिघल सा गया। उनकी आंखों में आंसू भर आए उसे एहसास होने लगा कैसे वो छोड़ गयी थी, उस समय कैसे पत्थर दिल हो गई थी ,मैंने जीवन के सफर में मंजिल तो पा ली ,,पर मेरे पास अपना कहने को कोई नहीं है ,मैं बिलकुल अकेली हूं। पता नहीं अब तो मनोहर की दूसरी मां भी आ होगी। क्या अब मेरे किए की कोई भरपाई हो सकती है!!!और फिर चश्मा उतार कर आंसू पोंछकर सोची चलो मनोहर के बच्चों को जी भर कर निहार कर लूं। देखूं जरा कैसे दिखते है मेरे पोते पोती…..
फिर वो उस क्लास में जाती है। और टीचर से कहती – तुम स्टाफ रुम में जाओ ,,मैं बच्चों से परिचय करना चाहती हूं। जैसे ही क्लास में बैठी तो सरला जी सबके एक- एक करके नाम पूछे जैसे अंकुर नाम सुना, तब वो बोली बेटा घर में कौन- कौन है, तुम्हारा घर कहाँ है, दादा दादी भी होंगे,,तब अंकुर बोला मेरी दादी नहीं है, केवल मेरे दादू बस है। उन्हें एहसास हुआ कि गिरधारी जी ने दूसरी शादी नहीं की।
इस तरह सब पूछकर वे संतुष्टि हो गयी ये मेरा ही पोता है। और सिर पर हाथ फेरकर अपनी जगह बैठने कहा।
अब उनसे रहा न जा रहा था। उनकी व्याकुलता और बढ़ गई कि पोती का चेहरा कब देख लूं। वह उस क्लास में पहुँच गयी, जिस क्लास में उसकी पोती पढ़ती थी। जैसे सबके परिचय करते ही पता चला कि बीमार होने के कारण उनकी पोती नहीं आई है। तब उनका मन बैचेन होने लगा कि वह कैसी होगी। जैसे – जैसे समय बीत रहा था। मन में कुछ उफान सा मचा था। सब कैसे होंगे। फिर मनोहर के बारे में सोचते ही परेशान होने लगी कि मनोहर मुझसे सीधे मुंह बात करेगा कि नहीं…..
इसी तरह करवट बदलते हुए उनकी रात बीती थी। अगले दिन अंकिता से मिलने को वह बैचेन थी।
स्कूल में वह अपनी बड़ी सी गाड़ी से जा रही थी,तब गिरधारी लाल पोते पोती को स्कूल छोड़ने आया था। तब सरसराती हुई गाड़ी उसके बगल से गुजरी तो देखा ये तो सरला ही प्रिसिंपल है मेरा शक तो सही निकला। खैर अब उसके बारे में क्या सोचना…..
अब उसने सोचा कि मैं पलटकर भी कभी न देखूंगा।
सरला की नजर गिरधारी लाल पर पड़ी तो उसने अपनी गाड़ी की स्पीड धीमी करते ही उसे देखा तो यकीन हो गया ये तो गिरधारी लाल उसका पति और उसके ही पोते पोती है। अब तो उसके पलट कर न देखने पर सरला बहुत बैचेन हो उठी। अब वह स्कूल में औपचारिकता पूरी करने के बाद वह अंकिता की क्लास में पहुँच गयी। परिचय करते हुए बच्चों को टॉफी देने लगी। जब अंकिता उसके पास आई। तो पूछा, तुम्हें क्या हो गया। तब वो बोली – मैडम जी कल तबियत ठीक नहीं थी। तब माथे पर हाथ रखकर चेक करते हुए उसे अपनी गोद में बिठा कर बोली बेटा तुम अपना ख्याल रखा करो। इतना प्रेम भरा भाव देखकर वह बोली हिचकिचाते बोली मैडम जी मैं ठीक हूं, उसे कुछ अटपटा लगा,वो छटवी क्लास में थी। उसे लगा कि मुझे मेडम इतना प्यार क्यों कर रही है,वह प्रिसिंपल मेडम की गोद से उतर गई, तब वे पूछने लगी -घर में सब कैसे है, तुम अपने घर नहीं हमें बुलाओगी!!!!
आइए ना प्रिसिंपल मेडम मैं घर बोल दूंगी। कि आप आ रही हो।
ठीक है बेटा संडे को मैं आऊंगी।
प्रिसिंपल मेडम ने अंकिता को गोद में बिठाया, और जिस तरह प्यार किया ,स्कूल के बच्चों ने ये सब बात अपने अपने घरों में बताई, तब ये बात गाँव में आग की तरह फैल गयी, गाँव में कानाफूसी होने लगी,गिरधारी लाल की पत्नी ही प्रिसिंपल बनकर गाँव आई है, बच्चों के पिताओं ने जाकर देखकर तसल्ली की।
अब गिरधारी लाल को पता लगा कि वो घर आने वाली है तो कहने लगा- मैं घर में ही ना रहूंगा। मुझे अब क्या लेना देना।
अगले दिन वो खाना खा कर खेत निकलने ही वाला होता है तभी बच्चों की आवाज आ जाती है पापा मम्मी प्रिसिंपल मैम आई है! उनकी गाड़ी रुकती है। तभी मनोहर की बीबी निकलकर कहती – आइए प्रिसिंपल मैडम,, वह पानी लेने अंदर चली जाती है। तभी मनोहर को वहां सै निकलता देख सरला बोल पड़ती है – अरे मनोहर तेरे बच्चे तेरे पर गये हैं। और तू भी कितना बदल गया है। तभी मनोहर बोला- ये भी कौन बोल रहा है, जो अपने दस साल के बच्चे को छोड़ गयी थी। तब न सोचा मेरा बच्चा कैसे रहेगा। तब तो एक स्वतंत्र जिंदगी जीना थी। अब यहाँ किसलिए आई हैं?? आपके जाने के बाद मैं कितना अकेला पड़ गया था। इतने सालों में कभी याद न आई।
तब सरला अपनी बेबसी पर रो पड़ी, फिर कहने लगी – बेटा ये मेरी ही गलती थी, हमारा तलाक हो गया तब एहसास हुआ कि मैं अपने अहम में कितनी अकेली हो गयी हूं। मुझे माफ कर दो।
चलिए प्रिसिंपल मेडम मैं निकलता हूं। अगर बाबूजी को समझा सको तो फिर मुझसे कुछ कहना। मैं तो कोई बात नहीं करना चाहता है।
तब तक दीपा चाय नाश्ते की प्लेट ले कर आ गई। इतना सब देख कर वे बोली- अरे तुमने बड़े ही अच्छे से घर संभाला है। ये क्या कह रही मैडम ये… वो हर औरत अपने घर को बहुत अच्छे से संभालती है। फिर वह मन में बुदबुदाकर बोली मैं ही अपना घर संभाल नहीं पाई।
तब तक गिरधारी लाल को दोनों बच्चे हाथ खींचते हुए बैठक तक ले आए -दादू चलो हमारी प्रिसिंपल आई है, वो भी आना नहीं चाहते थे।
तभी दीपा बच्चों को अंदर ले जाते हुए दादू को प्रिसिंपल मैडम से बात करने दो। सरला उनको देखते ही बोली- अजी आप कैसे है? तब वो तुनकते ही बोले -कैसा रहू़ंगा, अब क्यों पूछ रही हो? जब इतने साल जब फिक्र नहीं रही है आज ये सवाल क्यों,,,,,अब क्या चाहती हो?
मैं क्या चाहूंगी …..मैं तलाक लेकर जब अकेली रही तो तब एहसास हुआ कि मैनें कितनी अकेली हो गयी। ओहदा और सम्मान त़ो मिला पर परिवार की खुशियों के लिए तरस गई।सरला बोलने लगी। ये सुनकर गिरधारी लाल जी बोले – तरस गई क्या….!दूसरी शादी नहीं की क्या या अपनी बराबरी वाला नहीं मिला। पहले तो हम तुम्हारे लायक न रहे। तभी तो छोड़ दिया अब ये शिकायत… इसीलिए कहते हैं वक्त से डरो हर चीज हमारे हिसाब से नहीं मिल सकती, कभी कुछ मिलता है तो कभी कुछ खोता है तुम्हें तुम्हारे अहम ने हमसे तुम्हें अलग किया जिससे तुम अकेली पड़ गयी जिसका भुगतान तुम्हारे बेटे और मैनें किया ,सब कुछ बहुत मुश्किल से मैनें संभाला ।
सरला जी बिलखते हुए बोल पड़ी, मैं पच्चीस सालों से अकेले पड़ गयी,अब लगता है जैसे जिंदगी से थक गयी हूं।मुझे आप यही रोक लो…तब गिरधारी लाल जी बोले बहुत देर हो गयी ।। हमारे तलाक हुए पच्चीस साल हो चुके हैं अब कहां से होगी वापसी….. अब मैं नहीं रोक सकता हूँ, बड़े मुश्किल से घाव भरे है,मनोहर और मैनें बहुत दर्द सहा। अब और नहीं…..
इस तरह सरला जी को खाली हाथ लौटना पड़ा। ना ही बेटा, ना ही उनका पति पच्चीस साल बाद उन्हें अपना पाया। और वे ना पोते पोती को बता सकी कि वे उनकी दादी है।
इस तरह कुछ ही महीनों में उन्हें अपना ट्रांसफर कराना पड़ा। क्योंकि सामने होते हुए अनदेखी वो सहन न पाई। इसीलिए कहा जाता है वक्त से डरो क्योंकि अहम में अपना अपना ही नहीं रह जाता है और हमारे हाथ कुछ नहीं रह जाता। और हमारे हाथ खाली रह जाते हैं।।
” वक्त से डरो “
स्वरचित मौलिक रचनाअमिता कुचया