आदर का क्षण… – रश्मि झा मिश्रा 

.…सारे काम खत्म कर महेश फिर प्रिंसिपल के दरवाजे के पास खड़ा हो गया… “सर… सर…!” ” महेश… आ जाओ… बोलो क्या बात है… क्यों एक ही बात पर अड़े हो…!” ” सर… आप अगर चाहेंगे तो सब हो जाएगा… प्लीज सर… नहीं तो मुझे यह नौकरी भी छोड़नी पड़ जाएगी…!” ” महेश एक तो … Read more

निरादर – सुदर्शन सचदेवा 

देखो ज़रा, ये वही हाथ हैं जो कभी बेटे के लिए खिलौने खरीदते थे, और अब मोबाइल पर ऑर्डर पैक कर रहे हैं। ज़िंदगी का नाम है बदलना, लेकिन आज सविता को महसूस हुआ — बदलाव सबसे मुश्किल तब होता है, जब वह अपने ही बच्चे की नज़रों में करना पड़े। सुबह बेटे आर्यन ने … Read more

असमर्थ – के आर अमित

रात के दस बज चुके थे। चूल्हे की आख़िरी आँच धीमी पड़ चुकी थी। मिट्टी की दीवारों पर झिलमिलाती दीये की लौ के साथ एक आदमी लकड़ी की चारपाई पर बैठा था सिर झुका हुआ आँखों में नमी और सामने एक पुरानी स्कूल की कॉपी रखी थी। उसका नाम था रामनारायण गाँव के स्कूल में … Read more

नहले पर दहला – परमा दत्त झा

काम के न काज के दुश्मन अनाज के -यह रमिया थी जो चाचा श्वसुर अनुराग पर भड़क रही थी। अनुराग जी यानि उसके श्वसुर के छोटे भाई।रमिया के पति से मात्र चार साल बड़े। अनुराग जी पांच साल के थे तो भाई भावज के साथ हो गये।नौकर सा व्यवहार सब करते।मकान तक हथियाकर भगा दिया … Read more

कीचड़ उछालना – लक्ष्मी त्यागी

“बचपन में, हमारे बड़े कहा करते थे —“किसी पर कीचड़ उछालोगे, तो उसके छींटे अपने ऊपर भी पड़ेंगे।” किन्तु कुछ लोग भ्र्म में जीते हैं ,जैसे वो सही हैं ,और हमेशा ही ऐसे रहने वाले हैं किन्तु उन्हें सच्चाई का एहसास तब होता है जब उन पर स्वयं उस कीचड़ के छींटे पड़ते हैं।  चारु … Read more

इंसानियत मर गई – शिव कुमारी शुक्ला 

आज निलेश के घर के सामने भीड़ इकट्ठी थी।घर के अंदर कोहराम मचा हुआ था।उसका दो वर्षीय पुत्र मामूली खांसी में ही चल बसा था। उसकी मां का क्रंदन लोगों के कलेजे को चीर रहा था। बाहर लोगों में कानाफूसी का माहौल गर्म था कि ऐसा कैसे हो सकता है कि खांसी की दवा देने … Read more

असहाय – लतिका पल्लवी

आज पूनम अपने आप को एकदम असहाय महसूस कर रही थी।यह जानते हुए भी कि उसके पति का फिल्ड वर्क जॉब है उसने अपने दम पर कोई काम करना नहीं सीखा था। उसका पति विभव समझाता भी था पर वह नहीं समझती थी। पर आज ऐसी परिस्थिति मे पड़ गईं थी तो उसे विभव की … Read more

लक्ष्य पर नजर – विमला गुगलानी

  चेतराम और मनसा राम दो भाई एक ही घर में पले बढ़े। तीन बहनें भी थी। समय के साथ सबके अपने परिवार हो गए। गांव में अपना घर और जमीन थी। मां बाप के मरने के बाद बंटवारा हो गया। आज भी बहुत कम बेटियां पिता की जायदाद में हिस्सा मांगती है, लेकिन समाज में … Read more

निरादर – विनीता सिंह

सुबह का समय था, सूरज की किरणें चारों दिशाओं में फैल रही थी ।रेखा अपने कमरे में बडे बेमन से, एक सरल सी साड़ी पहनकर तैयार हुई। मां ने कहा बेटी तुम्हारा लंच रख दिया, इसे अपने पर्स में रख लो ।रेखा ने कहा ठीक है मां मैं जाती हूं मां बोली बेटा नाश्ता तो … Read more

कीचड़ उछालना – हेमलता गुप्ता

तुम्हें नहीं लगता  चारु… आजकल शालिनी कुछ ज्यादा ही हवा में उड़ रही है, सर भी जब देखो उसी को आवाज लगाते रहते हैं  ऐसा लगता है हम तो यहां काम करते ही नहीं है! तुम्हें तो आए हुए अभी 6 महीने हुए हैं किंतु मैं और शालिनी दोनों एक साथ इस ऑफिस में लगे … Read more

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