बद्दुआ दुआ बन जाती है – विभा गुप्ता

 ” बस दीदी..आप बहुत बोल चुकीं..मैं जब से इस घर में आई हूँ, आप मुझमें कोई न कोई कमी निकालती ही रहीं हैं।फिर मेरी बेटी को..।ये भी नहीं सोचती कि वो आपके ही देवर की बेटी है।और आज तो आपने श्रद्धा को..।” कहते हुए आनंदी का गला भर आया।   ” तो फिर यहाँ से चली … Read more

धरती के जीव – करुणा मलिक

पवन ! ये मोहल्ले के सारे कुत्ते हमारे घर के बाहर  क्यों  बैठे हैं? दो दिन से देख रहा हूं कि कुत्तों की फौज घर के सामने खड़ी रहती है। वो दरअसल साहब जी ,माँ जी ने यहाँ इनके लिए रोटियाँ डाली हुई हैं………… घर के बाहर बैठे गार्ड की बात सुनकर शहर के एस० … Read more

सहारा – खुशी

निशा जी दो बेटों निमिष और निलेश और दो बेटियों प्रीति और निशि की मां थी।पति राघव सेल्स टैक्स में ऑफिसर थे अच्छा खाता कमाते थे। घर में किसी चीज की कमी नहीं थी। निशा अपने बच्चों पर जान छिड़कते थी। सब को लगता ये इतना बेटी बेटी करती हैं तो पता नहीं कल को … Read more

निर्दोष की बद्दुआ – गीता वाधवानी

 बड़ा ही रोब था उसका, नाम था उसका पुत्तन  भैया।   वाहन,दुकान, पैसा,दो मकान और ढेर सारे चमचे, गुर्गे, जो पुत्तन भैया को भरपूर मक्खन लगाते थे। कई गैर कानूनी कामों से पैसा कमाया जाता था। और शायद उन पापों को धोने के लिए कभी माता की चौकी, तो कभी मंदिर में भंडारा करवाया जाता और … Read more

आग में घी डालना – डॉ कंचन शुक्ला

“प्ररेणा तुम हमेशा किताबों में क्यों घुसी रहती हो??  कभी-कभी घर के कामों में भी हाथ बटा दिया करो दिन भर कॉलेज में रहो और जब घर आओ तो क़िताब लेकर बैठ जाओ, घर के काम के लिए  मैं और तुम्हारी बड़ी बहन तो है ही बस तुम महारानी की तरह बैठ कर राज करो” … Read more

बुढ़ापे का असली सहारा न बेटा न बेटी बल्कि बहू होती है – प्रतिमा श्रीवास्तव

जिस बहू को हमेशा से अपने ही घर में परायों सी जिंदगी गुजारने को मजबूर कर दिया जाता है वही बहू अपनी जिम्मेदारियों को निभाते – निभाते हर कदम पर ये साबित करती है की ये ही उसका परिवार है लेकिन फिर भी उसे वो स्थान या सम्मान कभी नहीं मिलता जो बेटी – बेटा … Read more

अब किसकी शिकायत करोगी….. – रश्मि प्रकाश

“ माँ आज बद्दुआ नहीं दोगी…अब शिकायत नहीं करोगी… ?” जयदेव ने जैसे ही कहा उनकी माँ कलावती ज़ोर ज़ोर से रोते रोते कहने लगी “ चली गई रे इस घर को छोड़कर हमेशा के लिए…अब कौन मोहे सवेरे की चाय देवेगा…. उसे बुला ले रे वापस जय…मत जाने दे।”  “ अब वो कभी नहीं … Read more

बुढ़ापे का असली सहारा ना बेटा ना बेटी बल्कि बहूं होती है – विनीता सिंह

पंडित राम स्वरूप जी और उनकी पत्नी सावित्री देवी उनके  दो बच्चे एक बड़ी बेटी और एक बेटा  दोनों बच्चे पढ़ लिख गए बेटी की शादी कर दी ससुराल चली गई। बेटा की नौकरी लग गई वह भी दूसरे शहर में रहने लग सप्ताह में शनिवार को आता और सोमवार की सुबह वापस लौट जाता … Read more

बुढ़ापे का असली सहारा ना बेटा ना बेटी बल्कि बहू होती है – हेमलता गुप्ता

गुड़िया बेटा.. देख कुछ समय के लिए अगर आना हो जाए तो आ जाना, तेरी मां कल स्टंट डलवाने जा रही है क्या पता अस्पताल से वापस भी आऊं या ना आऊं! क्या मम्मी… आजकल स्टैंड डलवाना कोई बड़ी बात नहीं है और पहले से ही अगर अपने दिनचर्या और खानपान पर ध्यान देती तो … Read more

बद्दुआ – कुमुद मोहन

“मां जी!पापा की बहुत तबियत खराब है भाई का फोन आया है एकबार मुझे देखना चाहते हैं !मै जाऊं?”डरते डरते नीता ने अपनी सास शीला जी को कहा! “क्यूं? तू कोई सिविल सर्जन है क्या जो जाकर अपने बाप को ठीक कर देगी”शीला गुस्से से बड़बड़ाई । तेरे घरवालों का ये रोज रोज का नाटक … Read more

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