माँ के आंसुओं का हिसाब – लक्ष्मी त्यागी : Moral Stories in Hindi

शांति के बच्चे अब बड़े हो गए हैं ,वो अपनी बहु से कह रही थी – रेवा ! आज मेरा बेटा भूखा चला गया, आज तक मेरे रहते, वो कभी घर से भूखा बाहर नहीं गया था।  तो क्या करुँ ?तुम्हारी चाकरी करने के लिए ही तो यहाँ आई हूँ ,नौकरानी नहीं हूँ। जब उन्हें … Read more

पत्थर दिल – दीपा माथुर : Moral Stories in Hindi

बरामदे में शहनाई की धीमी गूंज थी। रसोई से पकवानों की खुशबू हवाओं में घुल रही थी। आंगन में औरतें मेंहदी रचाते हुए फ़िल्मी गीत गा रही थीं, और बच्चों की शरारतें कोने-कोने से टकरा रही थीं। सजे-धजे रिश्तेदार, चमकते लहंगे, डिज़ाइनर ब्लाउज़ और हर चेहरे पर कैमरे की तलाश। पर उस शोरगुल और रोशनी … Read more

मां की देखभाल कठिन क्यों? – रोनिता कुंडु : Moral Stories in Hindi

अरे दिव्या मुन्ना कब से रो रहा है? कानों में रुई डाल रखा है क्या? पता नहीं कैसी पत्थर दिल मां है, जिसको बच्चे के रोने से भी कोई फर्क नहीं पड़ता, हेमा जी ने अपनी बहू दिव्या से कहा  इतने में से रसोई से दिव्या अपनी हाथों को अपने कपड़े से पोंछती हुई बाहर … Read more

विश्वास की डोर – अनु माथुर

” बहुत भरोसा था ना तुम्हें उस पर ..लो अब  देख लिया …. चला गया वो और साथ में हमारी बेटी को भी ले गया …. सारी बिल्डिंग में सबको पता था एक तुम ही थी जो आंखों पर पट्टी बांध कर बैठी थी …. अरे मैं कहता हूँ क्या जरूरत थी तुम्हें उसे घर … Read more

भगवान भी माँ के बाद है-विमला गुगलानी

 जब भी सुगम परिवार सहित गांव आता तो कौशल्या और विनोद के पांव जमीन पर न पड़ते। कितने दिन पहले ही पकवान , आचार, पापड़ और भी न जाने क्या क्या बनना शुरू हो जाता। वो भले खाएं न खाएं लेकिन कौशल्या तो वो हर चीज़ बनाती जो बचपन में सुगम को पंसद थी।      सुगम … Read more

गलतफहमी – अर्चना सिंह

सुहानी पार्क में चहल कदमी करते हुए छवि का इंतज़ार कर ही रही थी कि उसकी सहेलियों का झुंड उसके पीछे खड़ा हो गया । सबको शुभ होम्स सोसायटी में रहते हुए लगभग सात साल हो गए थे पर इधर जरा पाँच सहेलियों के बीच इन दिनों काफी मनमुटाव सा चल रहा था । कारण..इसी … Read more

माँ होना नाटक नहीं – ज्योति आहूजा 

किरन मोदरां के उस छोटे से घर में पली थी जहाँ दीवारें खुरदरी थीं और सपने कभी पूरे नहीं लिखे गए थे। माँ की रसोई में मसाले भी कर्ज़ के होते थे और बापू की आँखें हर शाम जैसे बुझी सी लगती थीं। बीए की पढ़ाई कर रही थी, लेकिन घरवालों को डर था कि … Read more

पत्थर दिल

” चलिए पापा बाहर थोड़ा सा बाहर घूम कर आते है ”  आरुषि ने देवेंद्र जी का हाथ पकड़ते हुए कहा देवेंद्र जी कुर्सी से उठ कर आरुषि का हाथ पकड़ कर बाहर जाने लगे “रुक जाए दीदी और पापा आप भी “सुमन ने पीछे से कहा “क्या हुआ सुमन ?” नैना ने पूछा ” … Read more

आओ लौट चलें – डॉ बीना कुण्डलिया 

धनश्याम जी और उनकी धर्मपत्नी पार्वती शाम के समय घर के लान में बैठे अपनी पुरानी स्मृतियों को ताजा कर रहे।पार्वती जी बोली- आपके रिटायरमेन्ट को दो साल हो गये। मैं तो इन दो बरसों में शरीर और दिमाग दोनों रूप से अस्वस्थ रहने लगी हूँ। ले देकर दो बच्चे सारी जिंदगी उनके पढ़ाई लिखाई … Read more

मां के आंसुओं का हिसाब – रेनू अग्रवाल

राधा की आँखें एक बार फिर डरावने सपने से खुलीं। वह चिल्ला रही थी—“मत मारो, मत मारो मेरी माँ को!” उसकी माँ पास ही सोई हुई थीं। घबराकर उठीं और राधा को हिलाते हुए बोलीं, “क्या हुआ बेटा? मैं तो तेरे पास ही हूँ, मैं ठीक हूँ।” लेकिन वह समझ गईं कि राधा को फिर … Read more

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