सच्ची डोरियां – लतिका श्रीवास्तव
बस काठ की पुतली की तरह नाचते रहना कभी पिता तो कभी पति के इशारों पर।मुझे ऐसी जिंदगी नहीं चाहिए मां मै तो यहीं चाहती हूं मेरे इशारों पर कोई नाचे मेरी डोर मेरे हाथों में ही रहे । प्राची की मिनमिन सुन कर मां मुस्कुरा उठी। बेटा ये नाचना और नचाना दोनों जीवन के … Read more