सोहन एक गांव में खेतों में मज़दूरी करने वाले दम्पति बदरी और लाली का इकलौता बेटा है। मज़दूरी करते हुए उन्होंने सोहन को अपने ही गांव के स्कूल में पांचवीं कक्षा तक पढ़ाया। सोहन पढ़ने में तेज था। कक्षा में हमेशा प्रथम आता था।
जब सोहन पांचवीं कक्षा उत्तीर्ण किया तो उसी साल गांव के दो बच्चे दीपक आठवीं कक्षा में और गोपाल छठी कक्षा में पढ़ाने के लिए उनके पिता ने उन्हें शहर भेजने का विचार किया। सोहन के बाबा (पिता) बदरी को जब यह बात पता चला तो वह भी उनके साथ सोहन को भेजना चाहा।वह चाहता था
कि सोहन पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बने। कितना ख़राब लगता है जब खेतों के मालिक आकर झिड़कने लगते हैं -“तुम लोग बैठे क्यों हो, काम करने आए हो या आराम करने। कामचोर कहीं के –” बुदबुदाते चले जाते हैं।
कड़ी धूप हो,या कड़ाके की ठंड, उन्हें तो खटना ही है। वरना दो जून की रोटी कैसे मिलेगी और सोहन को पढ़ाना भी तो है। यही सब सोच कर बदरी दीपक के पिता राम नारायन जी से मिला और सोहन को भेजने की इच्छा जताई।
राम नारायन जी तैयार हो गये। वे तीनों बच्चों को लेकर आए। एक ही स्कूल में तीनों बच्चों का नाम लिखवाया, रहने खाने की व्यवस्था करके और दीपक को हिदायत देकर कि मन से पढ़ाई करना और गोपाल सोहन का ध्यान रखना, वापस गांव चले गए।
धीरे धीरे महीने वर्ष बीतते गए। सोहन पूरी एकाग्रता और मेहनत से पढ़ता रहा। हर क्लास में अच्छे नंबरों से पास होता गया। उसकी विनम्रता
और परिश्रम देखकर अध्यापक उसका बहुत ध्यान रखने लगे। परीक्षा के समय कोई कोई अध्यापक अपने घर बुलाकर नि: शुल्क पढ़ा भी देते थे। जब वह नवीं क्लास में आ गया। उसी साल गांव में बाढ़ आ गई
। खेत खलिहान सब डूब गए। गांव के समर्थ परिवार अपने को ही सुरक्षित करने में लग गए। मज़दूरों को कौन पूछे।बदरी का कच्चा घर बाढ़ की चपेट में आ गया और वह बेघर हो गया।
बदरी ने पत्नी लाली को सोहन के पास शहर यह कहकर भेज दिया कि तुम यहां परेशान होगी और सोहन की पढ़ाई के लिए पैसे भी तो चाहिए। वहां जाकर कोई काम ढूंढ लेना। सोहन की पढ़ाई में कोई रुकावट नहीं आना चाहिए।लाली ने कहा,” तुम अकेले कैसे रहोगे?” ” मेरी चिंता मत करो, सोहन की सोचो” बदरी ने ज़वाब दिया।
सोहन को जब गांव में बाढ़ आने की खबर लगी तो उसने समझ लिया कि मां और बाबा का काम तो बंद हो ही गया होगा। वे हमारे लिए कहां से और कैसे पैसों का इंतजाम करेंगे। अब मुझे स्वयं ही कुछ करना चाहिए।
यही सोचते हुए एक दिन सोहन गणित पढ़ाने वाले अध्यापक के घर गया। उन्हें अपनी सारी परेशानी बताई। अध्यापक जी ने कहा,” हां! मैं जानता हूँ ।
गांव की स्थिति तो बहुत ख़राब है।” सोहन ने पुनः कहा,” सर! अगर पढ़ाने के लिए कुछ बच्चे मिल जाएं तो मेरे स्कूल की फीस, रहने और खाने का कुछ तो इंतज़ाम हो जाएगा।” ” ठीक है मैं देखता हूँ।” अध्यापक जी ने कहा।
अध्यापक जी ने सोहन को दो घरों में ट्यूशन दिला दिया कक्षा चार और पांच के बच्चों को पढ़ाने का । सोहन की मां लाली भी तब तक आ गई थी।
एक दिन सोहन नियत समय पर ट्यूशन से घर नहीं आया तो उसकी मां चिंतित हो गई और उसे ढूंढते हुए वहां पहुंच गयी जहां सोहन ट्यूशन पढ़ाता था। उसने दरवाज़ा खटखटाया।
गृहस्वामिनी ने दरवाजा खोला।लाली ने पूछा,”सोहन आया है?” ” हां, मास्टर जी आएं हैं” गृह स्वामिनी ने ज़वाब दिया। फिर तेज़ आवाज़ में बोली, ” मास्टर जी देखिए कोई गंवार औरत आपको पूंछ रही है” दरवाजे पर आकर सोहन ने देखा -मां खड़ी है।
मां के लिए गृह स्वामिनी का गंवार कहना बहुत बुरा लगा। वह मां के पास आकर बोला, ” यह गंवार औरत मेरी मां है। मां जी, ग़रीब की भी इज्ज़त होती है मेरी मां को गंवार कहना आपको शोभा नहीं देता।” उन्हें ख़रा जवाब देकर सोहन मां को साथ लेकर चला गया।
स्वलिखित मौलिक
गीता अस्थाना,
बंगलुरू।