अरे मनीष बस दो मिनट और रुक जाओ । मैंने तुम्हारे लिए तुम्हारी ही पसंद के मेथी के पराठे और आलू की सब्जी बनाई है । मुझे आज थोड़ी देर हो गई इसीलिए मैंने अभी तो तुम्हें दही पराठे खिला दिए, मगर अब सब्जी भी लगभग बनकर तैयार हो गई है ।
इसे मैं अभी लंच बॉक्स में भर देती हूं बेटा, ताकि तुम लंच में खा सको। वह क्या है ना,थोड़ी ज्यादा बना ली ताकि तुम अपने दोस्तों को भी खिला सको इसीलिए थोड़ा सा ज्यादा वक्त लग गया बेटा।
मनीष अपनी मां की बात सुनकर जल्दी-जल्दी टाई बांधते हुए बोल उठा। वो सब ठीक है मां। आप चिंता क्यों करती हो। मैं आपके हाथों की बनी हुई आलू की सब्जी और पराठे छोड़ने वाला नहीं हूं ।
मैं रात को आकर खा लूंगा और हां रही दोस्तों की बात तो आप फिर कभी बना देना। मैं जरूर ले जाकर उन सबको खिला दूंगा। आज ऑफिस में जरा जरूरी मीटिंग है,इसीलिए मुझे निकलना ही होगा।
आप तो जानती हो। मुंबई की भीड़ कैसी होती है। इंसानों के मेले लगते हैं यहां। आप तो बस यह प्रार्थना करना,कि आपका बेटा ऑफिस समय से पहुंच जाए कहते हुए मनीष ने अपनी बैग उठाई और निकल पड़ा।
मनीष तो ऑफिस चला गया, मगर लीला जी का मन बहुत उदास हो गया। वह सोचने लगी,मैंने कितने चाव से बनाया, फिर भी मुझे थोड़ी देर होने की वजह से मेरा बेटा आज लंच बॉक्स लिए बगैर ही चला गया। सब्जी नहीं बनी थी, तो क्या हुआ मुझे उसके लंच बॉक्स में अचार और पराठे ही रख देने थे । कम से कम उसे बाहर का तो नहीं खाना पड़ता,वह भी मेरे होते हुए।
यही सब सोचते सोचते लीला जी जब खाने बैठी,तो उनके गले के नीचे पराठे का एक निवाला भी नहीं उतरा।
वह बहुत बेचैन हो उठी,और मन ही मन ठान लिया कि आज तो मैं अपने बेटे को ऑफिस जाकर पराठे और आलू की सब्जी खिलाकर ही रहूंगी। लीला जी एक डेढ़ घंटे बाद मनीष की ऑफिस के लिए निकल पड़ी,और तकरीबन एक घंटे बाद जैसे तैसे लोकल बस का सफर करके बेटे मनीष की ऑफिस के गेट तक पहुंच गई।
वहां जैसे ही ऑफिस के अंदर जाने लगी। उनकी साधारण सी वेशभूषा और पहनावा देखकर सिक्योरिटी गार्ड ने रोक लिया । तुम यहां अंदर नहीं जा सकती।
अब देखो कोई झूठा बहाना ना बनाना और यहां तुम्हें कोई मदद मिलने वाली भी नहीं है क्योंकि यहां आए दिन कोई ना कोई मदद मांगने वाले आते ही रहते है । हां थोड़े बहुत पैसे की जरूरत है,तो मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूं मगर मैं तुम्हें अंदर जाने नहीं दे सकता।
लीला जी सिक्योरिटी की बात सुनकर मुस्कुरा कर बोल उठी। अरे नहीं मेरा बेटा मनीष इसी ऑफिस में काम करता है। आज वह लंच बॉक्स जल्दबाजी में नहीं लेकर आ सका,इसीलिए मैं लेकर आई हूं । लीला जी की यह बात सुनते ही सिक्योरिटी हंसने लगा।
जाने कहां-कहां से लोग आ जाते हैं, और अजीब अजीब तरीके के बहाने बनाते हैं। मैंने सीधे तरीके से अंदर जाने नहीं दिया तो अब लंच बॉक्स का और अपने बेटे का बहाना देने लगी। यही बाकि रह गया था,मगर मैं इतना बेवकूफ नहीं हूं । चल हट गंवार औरत कहीं की,बाहर निकल।
मेरा वक्त खराब मत कर कहकर सिक्योरिटी गार्ड गेट को बंद करने लगा। रुको इन्हें अंदर आने दो। यह गंवार औरत मेरी मां है, और फिर मनीष सिक्योरिटी गार्ड के करीब आकर खड़ा हो गया और फिर कहने लगा।
वह तो अच्छा हुआ। मैंने सीसीटीवी कैमरे में देख लिया और तुरंत निकल कर तुम्हारे पास आ गया वरना शायद तुम तो मेरी मां को गंवार कहकर वापस भेज भी देते।
यह जरूरी तो नहीं की साधारण पहनावा हो,तो वह इंसान गंवार ही होगा। मुझे इस वक्त सबसे बड़े गंवार तुम लग रहे हो, क्योंकि पहनावे से इंसान की इंसानियत नहीं पहचानी जा सकती। वह तो उसके व्यवहार में दिखती है। जो अभी अभी मैं तुम्हारे व्यवहार में देख चुका हूं और फिर लीला जी का हाथ थाम कर उन्हें अंदर लेकर आ गया ।
मनीष ऑफिस की अपनी कुर्सी पर लीला जी को बैठाते हुए बड़े प्यार से बोल उठा। मां आप यहां बैठो और बताओ। आप क्यों परेशान हुई । आप एक घंटे का सफर तय करके सिर्फ मेरे लिए आलू का पराठा और सब्जी लेकर आ गई। मैं शाम को आकर खा लेता। उफ्फ मां आप आखिर कितना प्यार करती हो मुझसे।
लीला जी बेटे मनीष की पीठ को सहलाते हुए दुखी मन से बोल उठी । मनीष तुम तो लंच बॉक्स छोड़ कर आ गए, मगर मैं जब खाने बैठी, तो मैंने कोशिश तो बहुत की मगर बेटा मेरे गले के नीचे एक निवाला नहीं उतरा और मैं तुम्हारे लिए लंच बॉक्स लेकर यहां चली आई।
दोनों मां बेटे में बातचीत चल ही रही थी कि अचानक सिक्योरिटी गार्ड अंदर आकर क्षमा मांगने लगा। मनीष सर जी और आंटी जी मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई। मैं आज दसवीं पास होकर भी गंवार बन गया और मैं इन्हें गंवार बोल बैठा। मैंने आप दोनों की बात सुन ली है। वो मां गंवार कैसे हो सकती है। जो एक घंटे का सफर तय करके अपने बेटे का पेट भरने के लिए चली आती है।
लीला जी कुछ कहती उसके पहले ही मनीष बोल उठा। सही कहा और हां गंवार सिर्फ मेरी ही मां नहीं, किसी की भी मां नहीं होती। हम संतान अपनी मां का कितना भी कर ले मगर मां के प्यार की बराबरी कभी नहीं कर सकते। देखो सिक्योरिटी कभी भी किसी के पहनावे को देखकर हम उसके चरित्र का आकलन नहीं कर सकते।
तुम मेरी ये बात अब सदा के लिए याद रखना। मनीष की बात सुनकर सिक्योरिटी जी सर कहकर लीला जी को इज्जत की नजरों से देखते हुए उन्हें प्रणाम करके कमरे से बाहर निकल गया। लीला जी क्या कहती वह तो बस भाव विभोर हो कर अपने बेटे मनीष की ओर देख रही थी। शायद उनके पास कुछ कहने को रह नहीं गया था।
स्वरचित
सीमा सिंघी
गोलाघाट असम