ये स्वप्न नहीं हकीकत है – डॉ बीना कुण्डलिया : Moral Stories in Hindi

सुबह-सुबह अलार्म की आवाज सुनकर अंजलि झटके से उठकर बिस्तर में बैठ गई पति ऑफिस से हफ्ते भर के लिए टूर पर गये हुए थे। अभी उसकी शादी को केवल तीन माह ही गुजरे थे। रात को सोने से पहले वो अलार्म लगाना कभी नहीं भूलती, क्योंकि जरा भी उठने में देर हुई नहीं

कि सासूमां रेवती जी के कठोर वचन, झिड़कियां, ताने उसका मनोबल तोड़ कर रख देते, जरा भी देर से उठो तो तानों की बौछार माता-पिता तक पहुंच जाती ये ही सीखाया तेरी माँ ने या कुछ अच्छे सँस्कार भी दिए की नहीं.. अच्छा लगता है घर की बहु सूरज चढ़ने तक बिस्तर में पड़ी रहे।

ये सब हमारे घर में नहीं चलेगा समझी, तेरे मायके में चलता होगा। ये शौक अपनी माँ के घर ही छोड़कर आती। हमारे यहां सभी भोर सवेरे उठकर नहा धोकर तैयार हो जाते उसके बाद ही रसोईघर में प्रवेश की अनुमति मिलती सबको,

ये सभी बातें याद आते ही अंजलि झटपट उठकर वाशरूम में जाकर स्नान नित्य काम निपटा किचन की तरफ दौड़ पड़ी सोचा जल्दी जल्दी चाय बना सबको देकर नाश्ता बनाने में लग जायेगी वरना तो सासूमां का शोर शराबा शुरू हो जाना‌ है । अभी वो चाय बना कर छान ही रही थी कि सासूमां की आवाज सुनकर चौंक पड़ी –

क्यूं री बहु… ये चाय नहीं बनी तेरी अभी तक ? सूर्य देव आसमान में चढ़ने को आये कब चाय बनेगी कब नाश्ता तैयार होगा ?

 ये आजकल की बहुएं भी… अरे बहुएं तो हमारे जमाने में हुआ करतीं थीं । जो सूरज निकलने से पहले घर के सभी काम निपटा देतीं । 

अंजलि ने जल्दी से चाय सासूमां को पकड़ाई और बाकी के कप और सदस्यों को देने के लिए जल्दी से किचन से बाहर आ गई साथ ही बड़बड़ाती रही बेकार ही होगा कुछ बोलना या सफाई पेश करना सासूमां ने किसी की सुननी तो है नहीं वो कुछ बोलेगी तो जवाब में दस बातें सुना देनीं है उन्होंने,

बेकार सुबह सुबह मूड खराब करना ही होगा बेहतर होगा चुप्पी ही साध ली जाये। बहुत ज्यादा हुआ तो हूं हां कर लो और क्या । मगर इसका मतलब ये नहीं ऐसा करने से सासूमां अपने कमरे में चूपचाप जाकर बैठ जायेंगी उनकी निगाहें तो लगातार अंजलि का पीछा करती रहतीं क्या कर रही ?

अब क्या नहीं कर रही ? फिर वैसे ही रूपरेखा तैयार करतीं उसी हिसाब से ताने कसतीं ।

अंजलि ने नाश्ता निपटाया और अपने कमरे में आ गई ससुर, देवर, ननद सभी अपने अपने ऑफिस, कालेज के लिए निकल चुके थे। दोपहर के खाने में अभी समय था सोचा चलकर अपना कमरा व्यवस्थित कर लेती है ।

तभी उसने सुना उसके सेल फोन की लगातार घंटी बज रही उसने दौड़कर फोन उठाया देखा उसकी मुंहफट तेज तकरार सबसे प्रिय सहेली रेखा का फोन था जो एक दो बार उसके ससुराल भी मिलने आ चुकी थी। 

अंजलि ने फोन उठाया बोली- अरे रेखा, आज सुबह सुबह फोन किया कोई खास बात है क्या ?

खास बात… रेखा शिकायती अंदाज में बोली -अरी अंजलि तू भी न इन तीन महीने में सब भूल भुलाकर घर गृहस्थी की ही होकर रह गई है।अरे यार कभी हमें भी याद कर लिया कर वैसे आज दोपहर हम सभी सहेलियां पिक्चर और फिर माॅल में शापिंग पर जा रहीं हैं सोचा तुझे भी ले चलें।

अंजलि कुछ कहती इससे पहले ही रेखा बोल पड़ी अच्छा अपनी उस झगड़ालू खूंसट खूंखार बूढ्डी सास से पूछकर बतायेगी अरे यार वो जरूर इजाजत देगी तुझे, भई मैं तो तेरे घर एक दो बार आकर उस बुढ़िया सास से मिलकर उक्ता गई हूँ पता नहीं कैसे रहती है तू उस नकचढ़ी बुढ्डी के साथ।

अंजलि रेखा की बात सुनकर क्रोधित हो कड़ाकेदार आवाज में उसको फटकार देती है। रेखा जरा तुम तमीज से बोलो तुम मेरी सासूमां को झगड़ालू बुढ्डी कह रही हो थोड़ा तमीज से बात करो समझीं तुम, तुम उनको आंटी या मांजी नहीं कह सकती हो क्या ?

वो मेरी सासूमां है मेरे पति की माँ वो मेरे लिए परम पूज्यनीय हैं ।  वो हैं तभी मेरे पति हैं यह मैं कैसे भूल सकती हूँ भला ? वो मेरे पति की जन्मदात्री और तुम उनका इतना अपमान कर रही हो उनको बुढ्डी झगड़ालू कह रही हो।

मेरे लिए जैसी मेरी माँ वैसी ही वो भी है। देखो रेखा अच्छे से समझ लो आज तो तुमने ये सब कह दिया और मैंने सहन कर लिया लेकिन आइंदा मेरी सासूमां के लिए ऐसे शब्दों का कदापि इस्तेमाल मत करना वरना तुम्हारी मेरी दोस्ती वहीं खत्म हो जायेगी।

रेखा बड़े ही नम्र स्वभाव में बोलती है अरे अंजलि तुम तो बुरा ही मान गई सौरी यार अब आगे से नहीं कहूंगीं ।

 तू कहती हैं तो आगे से तेरी सासूमां कहकर ही सम्बोधित करा करूंगीं । चल अब गुस्सा थूक फिर कभी जल्दी ही बात करती हूँ। अंजलि फोन रख देती है। 

तभी अंजलि का पीछा करती सासूमां रेवती जी दरवाजे के बाहर खड़ी उनकी सारी बातें सुन लेती है। बहु की बातों से उसे बहुत शर्मिन्दगी महसूस होती है वो सोचती है वो तो जिस बहु को सदा ताने ही मारती रहतीं वो बहु उसकी कितनी इज्जत करती है।

अपनी परम प्रिय सहेली को ही डांट रही है वो उसे झगड़ालू बुढ्डी न कहे । सासूमां रेवती जी उल्टे पैर अपने कमरे में लौट आती हैं । 

बहुत देर तक इसी विषय में गम्भीरता से विचार करती रहतीं हैं। वो कितना गलत करने जा रही थी। उसकी अपनी बहु उसके घर की लक्ष्मी घर की शोभा जिस पर मैं शक करती रही मैं कितनी गलत थी । और वो बहु कितने विशाल दिल की कितनी इज्जत करती है मेरी…

फिर रेवती जी एकाएक उठकर सीधे रसोईघर में जाकर पकवान बनाने में लग जाती है। पकवानों की महक अंजलि के कमरे में भी पहुँचती है

वैसे भी दोपहर के खाने का समय हो रहा ननद देवर भी कालेज से आते ही होंगे यह सोचती हुई किचन की तरफ बढ़ती है। देखती है सासूमां पकवान बनाने में मशगूल और साथ ही साथ गुनगुना भी रहीं – 

“ तुम आये जो आज मुझे याद, गली में आज चांद निकला जाने कितने दिनों के बाद गली में आज चांद निकला “!!

अरे ये तो मेरी पसंदीदा पंक्तियां हैं अंजलि सासूमां का गुनगुनाना सुनकर कहती है… 

मैं, ही अक्सर गुनगुनाती रहती हूँ अपने कमरे में इनको, जिनको आज सासूमां गुनगुना रहीं हैं। 

अंजलि सोचती मेरी शादी को तीन माह हो गये इन दिनों में उसने आज तक सासूमां को कभी भी इतना खुश आनंदित नहीं देखा सोचती है सुबह तो तानों व्यंगों की बोछार कर रहीं सासूमां, अब अचानक ये सब कैसे बदल गया उनका व्यवहार , तभी सासूमां रसोईघर में आहट पाकर मुड़कर देखती हैं बहु को देखकर कहतीं हैं अरे बहु रानी आ गई।

अंजलि कहती हैं- मांजी देर हो गई क्या आप यहां क्या कर रहीं हैं… मै तो आ ही रही थी ?

रेवती जी कहतीं हैं- मैं यहां क्या कर रही हूँ ? रसोई घर में भला कोई क्या करेगा ॽ देख बहु रानी मैं पकवान बना रहीं हूं । 

बड़ी ही मेहनत और लगन से तुम सबके लिए। सोचा जब से बहु घर आई उसको सासू के हाथों का व्यंजन चखने का मौका ही नहीं मिला।

अरे भई हमारी बहुरानी को भी तो पता चलना चाहिए उसकी सासूमां कितने अच्छे लजीज व्यंजन बनाती है । बहु तुमको दाल बाटी चुरमा लड्डू बहुत पसंद है न, तुम अक्सर बनाती हो तो आज सब तेरी पसंद के बनाये मैंने अब जरा मेरे हाथ का स्वाद चखकर बताना कैसा बना ?

अंजलि सासूमां के व्यवहार से आश्चर्यचकित रह जाती है। सासूमां का ऐसा व्यवहार तो तीन महीने में उसने सपने में भी नहीं सोचा वो तो अब तक यही समझती रही बस सासूमां केवल व्यंगों की ही बौछार कर सकती है। जो वो हमेशा करती भी आई हैँ ।

आज इतनी ममता, अपनापन, स्नेह जो सासूमां उसकी झोली में डाल रहीं..उसे कुछ समझ नहीं आता है। आखिर ये सब क्या हो रहा है ? कहीं ये  सब स्वप्न तो नहीं।

इसलिए वो दो तीन बार अपनी ऊंगली को दांतों के नीचे दबाकर देखती है अपने शरीर में चिकौटी भी काट कर देखती है। जो हो रहा क्या वो सच ही है…अच्छे से जान जाना चाहती थी कहीं वो कोई मीठा भ्रमित करने वाला स्वप्न तो नहीं देख रही है !!

तभी सासूमां रेवती जी चूरमा लड्डू की प्लेट उसकी तरफ बढ़ाकर कहतीं हैं अरे बहु कहां खो गई तू, ले पकड़ प्लेट और लड्डू चख और बता आज तेरी सासूमां कहां तक सफल हुई है। चल, चल देर मत कर जल्दी से चखकर बता.. देख मैं कितनी उत्साहित हूँ । अपनी बहु के लिए लड्डू पकवान बनाकर। 

अपने प्रति सासूमां का अप्रत्याशित स्नेह देखकर अंजलि की आँखों में खुशी से आँसू झरझर झर बहने लगते हैं। उसको कुछ नहीं सूझता वो प्लेट हाथ में पकड़ उसमें से चूरमा के लड्डू का एक टुकड़ा सासूमां के मुंह में दूसरा टुकड़ा अपने मुंह में डाल फिर खुद से ही कहती हैं…

अरीऽऽ ओ अंजलि ये स्वप्न नहीं हकीकत है । ऐसी हकीकत जो साकार हो ऐसा वो ससूराल में चाहती तो थी.. मगर हकीकत आज साकार रूप ले लेगी ऐसा उसका खुश नसीब वो बुदबुदाई,

फिर बोली-…. मांजी ऽऽ बहुत अच्छे बने लड्डू सच मांजी आपके हाथों से बने और प्यार से मुझे नसीब हुए, मैं तो धन्य हो गई आज,कहते हुए- दौड़कर सासूमां के गले लग जाती है । 

लेखिका डॉ बीना कुण्डलिया 

           13.9.25

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