गौरव बड़े परिश्रम से पढ़ता था, ताकि वह अपनी माँ की उम्मीदों पर खरा उतर सके,उनके अरमानों को पूर्ण कर सके ,उसकी माँ बड़े परिश्रम से और लोगों से ऋण लेकर, उसे पढ़ा -लिखा रही थीं। गौरव के पिता एक अच्छी कम्पनी में कार्यरत थे ,उनके घर में खूब खुशियां और शांति थी। उन्हीं दिनों उसकी मम्मी ने गौरव से कहा था -हमारे घर में एक और नया मेहमान आने वाला है,हम सभी बहुत खुश थे और उस नए मेहमान के स्वागत के लिए ‘पलकें बिछाए बैठे थे। ‘ उस समय गौरव सिर्फ़ चार साल का था।
एक दिन,अचानक ही उस शांत घर की खुशियों को एक तूफान उड़ा ले गया,उसके पिता अपने काम से आते समय घर के लिए साग -तरकारी ,फल इत्यादि गृहस्थी के लिए आवश्यक सामान लेकर आते थे। उस दिन भी तो उन्होंने कुछ सामान लिया था किन्तु न जाने वो कौन सी घड़ी थी ? उस दिन उनके घर में ही नहीं ,जीवन में भी अँधेरा कर गयी। किसी ने उनके घर फोन करके बताया -सुंदरलाल जी ,का एक्सीडेंट हो गया है ,यह सुनते ही ,उसकी माँ, गौरव को पड़ोसियों के हवाले कर ,अपनी हालत की परवाह किये बगैर अस्पताल के लिए भागी किन्तु वहां अपने पति की मृत देह देख ,उन्हें ऐसा सदमा लगा ,वो बेहोश हो गयीं। उनको भी उसी अस्पताल में भर्ती किया गया किन्तु उनका दुःख इतना बढ़ गया था , वो, उसके पिता की आख़िरी निशानी को भी संभाल न सकीं।
घर में अब दोनों माँ -बेटे रह गए थे ,ऐसे समय में रिश्तेदार साथ देने की बजाय ,”कन्नी काटने लगते हैं।”उनके रिश्तेदार भी, समाज से अलग नहीं थे ,वे भी उसी तरह के इंसान थे ,जिनके लिए स्वार्थ सर्वोपरी होता है। गौरव की मम्मी बारहवीं तक पढ़ी -लिखी तो थीं किन्तु कभी बाहर काम नहीं किया ,पति ने भी कह दिया -तुम घर सम्भालो ! मैं हूँ न…. आज उन्हें लग रहा था ,काश ! कुछ काम सीख लिया होता।आजकल इतनी बड़ी-बड़ी डिग्री लेने के पश्चात भी ,नौकरियां नहीं मिल रहीं हैं ,तब एक बारहवीं पास को कौन ऐसी नौकरी देता,जिससे उनकी आवश्यकताएँ पूर्ण हो सकें।
आरम्भ में तो बैठे हुए बैंक में जो पैसा जुड़ा हुआ था, वही धीरे -धीरे कम होने लगा। पड़ोसियों के कहने पर कुछ घरेलू कार्य करने लगीं। धीरे -धीरे गौरव बड़ा हो रहा था ,उसकी पढ़ाई भी चल रही थी। अब उनके जीवन का एक ही उद्देश्य रहा गया था ,अपने बेटे को पढ़ा -लिखाकर एक सफल और आदर्श नागरिक बनाना।
समय के साथ कई बार, गौरव अपने मार्ग से भटक जाता था किंतु उसकी मम्मी ने उसकी पढ़ाई के प्रति कोई भी लापरवाही नहीं बरती , जब भी उसके कदम बहकने लगते , उसे डांटती और समझाती किंतु जैसे-जैसे गौरव की पढ़ाई बढ़ रही थी, उसके खर्चे भी बढ़ रहे थे. अपने कार्यों से उसकी पढ़ाई की खर्च पूर्ण नहीं कर पा रही थी तब उन्होंने सोचा -यहघर मेरे पति की आखिरी निशानी है, क्यों न इसे ही गिरवी रख दिया जाए? जब यह पढ़- लिखकर क़ामयाब हो जाएगा ,इसकी नौकरी लग जाएगी तब हम मिलकर उस ऋण को उतार देंगे। यह सोचकर उन्होंने अधिक ब्याज पर ही सही , उस घर को गिरवी रख दिया जो उनके पति की आखिरी निशानी था।
गौरव भी मेहनत से पढ़ रहा था, और कैंपस से ही उसको नौकरी के लिए चुन लिया गया था , उसकी मां के लिए यह सबसे बड़ी खुशी की बात थी, कुछ पैसे वह अपनी मां के लिए भिजवा देता था। जिससे वह अपना खर्चा भी कर रही थी और गिरवी रख मकान का ब्याज भी उतार रही थीं किन्तु ब्याज़ था कि सुरसा की तरह मुँह खोले खड़ा था ,कम होने का नाम ही नहीं ले रहा था किन्तु उसकी माँ ने अपने बच्चे को ज्यादा परेशान करना उचित नहीं समझा।
उन्हीं दिनों गौरव की मुलाकात अपने ही दफ्तर में काम कर रही ,एक लड़की प्रेरणा से हो गई , प्रेरणा एक पढ़ी-लिखी लड़की थी , अच्छे परिवार की थी, दोनों एक दूसरे से प्रेम करने लगे। कई बार गौरव, प्रेरणा के घर भी गया था। उसका रहन-सहन उसका घर -परिवार देखकर, वह अक्सर चुप हो जाता और मन ही मन सोचता -‘प्रेरणा मेरे घर में नहीं रह पाएंगी बल्कि वह तो यह सोच रहा था कि वह अपनी मां को अपने पास ही ले आए किंतु गौरव की मां ने कहा -अभी मैं यहां ठीक हूं ,कुछ काम कर भी लेती हूं और अभी घर का ऋण भी बाक़ी है।
एक दिन अचानक ही प्रेरणा, ने गौरव से पूछा -क्या तुम मुझसे शादी करोगे ?
यह तुम क्या कह रही हो ? तुम मेरे विषय में कुछ भी नहीं जानती हो। मेरी मां है, उनके भी कुछ अरमान है वो धूमधाम से मेरी शादी करना चाहती है किंतु अभी थोड़ा समय लगेगा।
कितना समय ? प्रेरणा ने पूछा किंतु गौरव उसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं दे पाया। तब प्रेरणा में कहा -मेरे पिता मेरी शादी शीघ्र ही करना चाहते हैं और मैं तुमसे प्यार करती हूं, यदि तुम्हें मैं पसंद हूं ,तुम, मुझसे प्यार करते हो ? तो फिर किस बात की प्रतीक्षा कर रहे हो ? यदि तुम्हारी कोई आर्थिक परेशानी है , विवाह के पश्चात मेरी कमाई भी तो तुम्हारी ही हो जाएगी, हम दोनों मिलकर समस्या को सुलझाएंगे।
प्रेरणा ने गौरव को समझाकर विवाह के लिए तैयार कर लिया।दोनों ने मंदिर में जाकर,कर लिया। विवाह हो जाने के पश्चात, दोनों पति-पत्नी सुखपूर्वक रहने लगे किंतु यह बात, गौरव ने अपनी मम्मी को नहीं बताई थी क्योंकि यह सब अचानक ही हो गया था। गौरव की शिक्षा पर जो ऋण लिया गया था,वो अभी भी बरकरार था, क्योंकि ब्याज देना पड़ रहा था।
अब गौरव की गृहस्थी बस गई थी, इसलिए गौरव भी उस ऋण से मुक्त हो जाना चाहता था और अपनी मम्मी से बोला – कब तक मैं, इस कर्ज को उतारता रहूंगा? क्यों न हम, इस मकान को बेच देते हैं ? उसमें से जो पैसा आएगा उससे साहूकार का कर्ज भी उतर जाएगा और जो पैसा बचेगा उसमें और पैसा डालकर हम एक नया मकान ले लेंगे। और तब आप औरहम साथ रहेंगे।
गौरव की मम्मी ने सोचा -जैसे बेटे की मर्जी, वैसे ही मैं भी कब तक जीने वाली हूं, क्यों इसके मोह में पड़ना? एक न एक दिन तो मुझे भी, इस घर को छोड़कर जाना ही होगा, जब बेटा ही यहां नहीं रहेगा तो फिर इस घर का होने से क्या लाभ यह सोचकर उन्होंने बेटे के निर्णय को ही आखिरी निर्णय समझ लिया और वह घर बेच दिया। था,गौरव शहर में ही एक मकान ले चुका था और उसका ऋण भी उतार रहा था। वह मकान उन दोनों पति-पत्नी के नाम था। जिस दिन गौरव अपनी मां को लेकर उस घर में आया। प्रेरणा एकदम से चुप हो गयी। गौरव की मम्मी की हालत देखकर उसे लगा -जैसे कोई काम वाली है, कम पढ़ी-लिखी महिला है किंतु वह यह नहीं जानती थी वक्त के थपेड़ों ने उन्हें ऐसा बना दिया था वरना वो भी कभी अपने घर की महारानी थीं , पति की प्यारी थीं ।
बेटे के घर पहुंचकर ,मां को आश्चर्य हुआ कि बेटा, बहू के साथ रह रहा है और इसने मुझे, अपने विवाह में शामिल होने तक का भी मौका नहीं दिया, उन्हें इस बात का दुख हुआ किंतु जब गौरव ने समझाया- कि यह सब बहुत जल्दबाज़ी में हुआ , किसी से कुछ कहने- सुनने का मौका ही नहीं मिला तो मां ने, अपने बेटे की परेशानी को समझा और शांत हो गई।
प्रेरणा ने गौरव की मां को एक अलग कमरा दे दिया जो उसने नौकरों के लिए सोच कर रखा था। गौरव की मां अपने बेटे की नौकरी और उसके घर बस जाने की खुशी में खुश थीं, अपने बाकी के दिन शांतिपूर्वक व्यतीत करना चाहती थी किंतु जब से वो आई थीं तब से, प्रेरणा को तो लगने लगा था -यह यहां मुफ्त की रोटियां तोड़ेंगी, कम से कम कुछ काम तो करेंगीं। वह अक्सर गौरव के सामने बहाने बनाने लगी -‘ मैं अकेली क्या-क्या करूं ? नौकरी पर जाऊं ,तुम्हारी मां की देखभाल करूं ? उनसे एक छोटा सा काम भी नहीं होता।’
किंतु गौरव के न रहने पर वो अक्सर उनकी बेइज्जती कर देती थी और कहती – तुम यहां क्यों आई हो ? गौरव को देखकर कोई कह नहीं सकता कि वह तुम्हारा बेटा है।
बहु ! क्या तुम्हें मुझे, यहां देखकर अपना अपमान महसूस होता है ,मैंने ऐसा क्या किया है ?
देखो !तुम मुझे बहु मत कहो ! मुझे यह सब सुनने की आदत नहीं है, मालकिन या मैडम कहो ! और अपना खाना खुद बना लिया करो! बेटे के सामने दुखड़ा रोने की कोई जरूरत नहीं है।
एक दिन प्रेरणा की सहेलियां उसके यहां दावत पर आई थीं , प्रेरणा ने अपने सहेलियां को यह नहीं बताया, कि जो महिला उसके घर में है, वह मेरी सास है बल्कि सहेलियों के सामने, उनसे सामान बनवाया और पकड़ाने के लिए भी कहा।
गौरव ने जब माँ से पूछा – मां , तुम यह सब क्या कर रही हो ?
तब उसकी मां ने कहा – तुम्हारी पत्नी की सहेलियां आई हुई है, क्या तुम चाहते हो? कि सबके सामने तुम्हारी पत्नी की बेइज्जती हो, मैं बस उसकी सहायता कर रही हूं।
प्रेरणा की सहेलियों ने कहा -प्रेरणा ! तू ये औरत कहां से लेकर आई ? यह तो यह भी नहीं जानती की किस सामान को कहां रखना है ? किस तरीके से रखना है ? हमारे बराबर में बैठने का प्रयास कर रही है।
हमने, इन्हें गांव से बुलाया है ताकि मेरी काम में मदद हो जाए ,गांवों में अच्छे नौकर मिल जाते हैं ,जब यहाँ रहेगी ,धीरे -धीरे यहाँ के तौर -तरीक़े भी सीख़ जाएगी।
इस’ गंवार ‘ को कितने पैसे देती है ?काम तो खूब करती है ,बस थोड़ा तरीका नहीं आता। इसे मेरे घर भेज देना ,मैं इसे अच्छे से सिखा दूंगी,कहते हुए अपने साथ की सहेली के हाथ पर हाथ मारकर ठठाकर हंस दी।
यह बात जब दूसरे कमरे में बैठे ,गौरव के कानों में पड़ी , तो उसे प्रेरणा की सहेली पर उसे बहुत क्रोध आया तब वह कमरे से बाहर आया और बोला -इन्हें’ गंवार’ कौन कह रहा है ? क्या तुम्हें ये’ गंवार’ दिखती हैं ? तुम्हें पता है ,इन्होंने अपने जीवन में कितना परिश्रम किया है ? अनेक संघर्ष झेले हैं, तुम्हारी तरह ऐशो आराम में नहीं रही हैं , इसलिए ऐसी हो गई हैं।
प्रेरणा बोली -इन्हें कोई गलतफहमी हो गई होगी मैं इन्हें समझा दूंगी।
तुम्हें समझाना होता तो अब तक समझा दिया होता, तुम्हें इन्हें पहले ही बता देना चाहिए था, कि यह’ गंवार’ और कोई नहीं मेरी मां है’ जिन्होंने इतने परिश्रम से मुझे पढ़ाया लिखाया। सबसे बड़ी गलती तो मुझसे ही हो गई , जो मैंने तुम पर विश्वास किया और अपनी मां को तुम्हारे भरोसे पर यहां ले आया। सोचा था-‘ सास- बहू साथ में रहेंगीं तो मेरा घर खुशियों से भर जाएगा लेकिन तुमने तो मेरी मां का अपमान कर दिया। ये यहां कैसे खुश रह सकेंगीं ? मेरे लिए ही, सब बर्दाश्त कर रही थीं किंतु अब मुझे उनका अपमान और बर्दाश्त नहीं होगा। खबरदार ! जो किसी ने भी, मेरी माँ के प्रति कुछ गलत सोचा। आज मैं जो कुछ भी हूं, मेरी मां के सपनों की बदौलत हूं, यह कहकर वह अपनी मां को अपने कमरे में ले आया। बाहर बैठी सभी महिलाएं एक -दूसरे को ठगी सी देख रही थीं।
नोट -कहानी में गौरव की माँ बारहवीं पास थी किन्तु आज के समय में बारहवीं कर लेना भी कम ही है ,जहाँ आजकल बच्चे एम. बी. ए. अथवा कम्प्यूटर के युग में अपने को समय के साथ चलने में ,सक्षम नहीं पाता है।
✍🏻 लक्ष्मी त्यागी