इस बार ससुराल में काव्या की पहली दीवाली थी।पाँच महीने पहले ही वह इस घर मे दुल्हन बनकर आई थी।मम्मी,छोटी बहन नव्या और वो खुद तीन लोगों के छोटे से परिवार से निकल कर वह सास-ससुर,जेठ-जेठानी, ननद, देवर दादी सास के बड़े से परिवार में आई थी।
जब काव्या के मामाजी ने यह रिश्ता बताया था तब काव्या ने लगभग ना ही कर दी थी।अलग अलग लोगों की अलग अलग सोच के बीच खुद को एडजस्ट करने के ख्याल से ही वो सिहर उठी थी।लेकिन क्योंकि मामाजी बहुत सुलझे विचारों के थे और लड़के के परिवार वालो को बहुत करीब से जानते थे
इसलिए रिश्ते को लेकर आशंकित होने की कोई वजह नही थी।दो साल पहले काव्या के पापा की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो जाने के बाद दोनों बहनों की जिम्मेदारी उनके मामाजी पर ही आ गई थी।
ससुराल में काव्या के लिए यहाँ का वातावरण थोड़ा असहज था लेकिन जैसा उसने सोचा था बिल्कुल उसके विपरीत हुआ।सभी बहुत हँसमुख और मिलनसार थे।काव्या को इन पाँच महीनों में कभी ऐसा लगा ही नहीं कि वह नए घर मे नए लोगों के साथ रह रही है।
लेकिन इस दीवाली पर काव्या का मन थोड़ा उदास था।घर की सजावट करते समय रह रह कर उसको अपने घर की याद सता रही थी। मम्मी और नाव्या के चेहरे बार बार उसकी आँखों के आगे आ जाते और फिर उसकी आँखें नम हो जाती।सबसे नजरें चुराकर फिर वो काम मे लग जाती।
दीवाली की शाम भी आ गयी।
पूजा का समय हो गया था।काव्या पूजाघर में जमीन पर बैठकर दिए जला रही थी।तभी दो हाथों ने उसकी दोनों आंखों को ढक दिया। पहले तो काव्या को लगा कि ये उसके पति राहुल की शरारत है लेकिन हाथों का स्पर्श किसी महिला हाथों की कोमलता का अहसास करा रहा था।
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वो कुछ समझ पाती कि तभी एक जानी पहचानी सी खिलखिलाने की आवाज़ उसके कानों में पड़ी। काव्या ने जैसे ही पलटकर देखा सामने नाव्या थी और साथ मे मम्मी खड़ी मुस्कुरा रही थी।काव्या हैरान सी खड़ी कुछ पल के लिए उन्हें देखती रही और फिर उनसे लिपट कर खुशी के मारे रोने लगी।
काव्या को चुप कराते समय मम्मी ने बताया कि काव्या के उदास चेहरे को देखकर उसके सास ससुर सब समझ गये थे।और उन्होंने काव्या को सरप्राइज देने के लिए फ़ोन पर उन दोनों को दीवाली पूजन पर अपने घर बुलाने का प्लान किया था।
ससुराल में दीवाली पूजन के बाद सास ने काव्या और राहुल को काव्या के घर दीवाली पूजन के लिए भेज दिया।काव्या के लिए यह दीवाली एक यादगार दीवाली बन गई।ससुराल में सभी के प्रति मान सम्मान की भावना को प्रबल करती वो पहली दीवाली काव्या कभी नही भुला सकती थी।
शिखा जैन