पार्टी के दौरान भी सुमन की नज़रें विनय, सुरभि और उनके दोनों बच्चों की खिलखिलाहट का ही पीछा करतीं रहीं। पार्टी वाकई शानदार थी। विनय और सुरभि के कप्पल डान्स ने सबका मन मोह लिया था। हँसी – मज़ाक, पुरानी यादें, पुराने किस्से और पुराने दोस्त — सच में किस्मत वालों को ही मिलते हैं।
पर कुछ पुराने किस्से कुछ लोगों के लिए दर्द देने वाले भी बन जाते हैं। पार्टी से वापिस लौटते हुए कार में लंबी चुप्पी थी। सड़क पर पीली रोशनी की लकीरें, खिड़की से दिखते सुनसान रास्ते…
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पार्टी खत्म हो चुकी थी। बाहर देर रात की हल्की ठंडी हवा में एक अजीब-सी नमी घुली थी। रात को लौटते वक्त सड़कें पीली-सफेद रोशनी में नहा रही थीं। सुमन खिड़की से बाहर देख रही थी, पर उसकी आँखें इस रात की चमक में नहीं, किसी और तस्वीर में उलझी थीं — सुरभि का वह सहज, खिलखिलाता चेहरा… उसके बच्चों की मासूम हँसी… और विनय का अपने परिवार को प्यार से देखना।
उसके अंदर एक कसक थी — क्यों नहीं उसके और समीर के हिस्से में यह तस्वीर आई?
मन में ईर्ष्या का एक छोटा-सा काँटा था, पर उसी काँटे के दूसरी तरफ़ एक मुलायम-सी तसल्ली भी थी कि कम-से-कम अब समीर पूरी तरह उसका है। मगर इस तसल्ली में भी वह सालों की तन्हाई की चुभन घुली हुई थी… वह खालीपन, जो समीर के साथ होते हुए भी उसके भीतर घर किए रहा।
कार के अंदर खामोशी थी। तभी समीर को अमित की बातें याद आईं —”अगर चाहो तो सिमी से मिल सकते हो… बहुत अच्छी डॉक्टर है, तुम्हारे केस में मदद कर सकती है।”
समीर ने सुमन की ओर देखा, फिर बोला, “क्या तुम्हारी सिमी से कोई बात हुई थी? “
“किस बारे में ” सुमन बोली।
“वो अमित कह रहा था कि अगर हम चाहें तो एक दो दिन में ही सिमी को कंसल्ट कर सकते हैं, वैसे तो तुम्हें पता ही है कि उससे अपॉइंटमेंट मिलना कितना मुश्किल काम है।” बोलो तुम्हारी क्या राय है?
सुमन ने भी बिना ज्यादा सोचे हामी भर दी। शायद वह भी अब अपनी गोद में कोई नन्हा मुन्ना चाहती थी ।
कुछ दिनों बाद, वे दोनों सिमी से मिलने पहुँचे। सिमी निजी तौर पर जितनी संवेदनशील थी, पेशे में उतनी ही प्रोफेशनल थी। उसने विस्तार से बातचीत की, पुराने मेडिकल रिकॉर्ड्स देखे, और ज़रूरी टेस्ट करवाने की सलाह दी।
टेस्ट हो गए। फिर इंतज़ार शुरू हुआ।
करीब एक हफ़्ते बाद, वे फिर से क्लिनिक में बैठे थे और टेबल पर रखी थी एक फाइल — वही फाइल जिसमें उनकी रिपोर्ट थी।
सिमी ने फाइल खोली। कुछ पल पन्नों पर निगाह दौड़ाई, फिर उनकी तरफ देखा। सुमन के कंधे पर हाथ रखते हुए वो स्थिर, पर नम्र आवाज़ में बोलीं, “सुमन… रिपोर्ट कह रही है कि… आप कभी माँ नहीं बन सकतीं।”
साइंस ने बहुत तरक्की कर ली है। इसलिए फ़िक्र न करो हम लोग इस पर बाद में विस्तार से बात करेंगे। अभी बस अपनी सेहत का ध्यान रखो।
सुमन को एक क्षण के लिए लगा कि कमरे में जैसे हवा थम गई हो। उसने होंठ भींच लिए। उसके चेहरे पर एक मायूसी छा गयी।
समीर ने उसकी तरफ देखा, और फ़िर एक हल्की-सी साँस छोड़ते हुए सिमी से बोला — “सुमन एक बार प्रेग्नेंट हुई थी… लेकिन कुछ ही समय बाद एबॉर्शन हो गया था।”
सिमी ने चौंककर सिर उठाया, ““वास्तव में?” उसकी आवाज़ में पेशेवर हैरानी थी, मानो उसे इस जानकारी पर विश्वास ही न हुआ हो। पर जल्दी ही वो संभल गई।
समीर ने धीमे-से सिर हिलाया, “हाँ… पर शायद किस्मत को कुछ और मंज़ूर था।”
सिमी चुप हो गई। उसके पेशेवर दिमाग में रिपोर्ट के निष्कर्ष और यह निजी जानकारी आपस में मेल नहीं खा रहे थे। अगर रिपोर्ट सही है, तो प्रेग्नेंसी और मिसकैरेज… कैसे संभव हुआ? वह सोचती रही, पर कुछ बोली नहीं।
मेडिकल रिपोर्ट और समीर के बयान के बीच का यह विरोधाभास उसकी समझ से बाहर था। वह चाहती तो नहीं थी, लेकिन एक दिन अमित से इस बारे में बात छेड़ दी।
“अमित… कुछ अजीब है इस केस में… रिपोर्ट साफ़ कहती है कि सुमन माँ नहीं बन सकती… लेकिन समीर कह रहा है कि एक बार प्रेग्नेंसी हुई थी, फिर मिसकैरेज… कुछ समझ नहीं आ रहा।”
अमित भी हैरान रह गया। “ये कैसे…?” ख़बर सुन वह भी उलझ गया था।
इधर चूंकि सुरभि और विनय के घर में रेनोवेशन चल रहा था इसलिए वो अभी उनके घर में ही रह रहे थे। वह दूसरे कमरे में बच्चों को होमवर्क करवा रही थी। लेकिन अमित और सिमी की बातचीत उसके कानों तक पहुँच गई थी।
उसने अनायास ही सुन लिया — रिपोर्ट… सुमन… प्रेग्नेंसी… मिसकैरेज…
वह समझ ही नहीं पा रही थी कि यह सब क्या है।
पहले तो वर्षों बाद समीर का अचानक उससे ट्रेन में मिलना… फिर समीर के अपने हिस्से की कहानी उस तक पहुंचना … एक बार फिर अमित के घर में सुमन और समीर से मिलना… और अब, यूँ अचानक दूसरे कमरे में बैठे-बैठे सुमन की ज़िंदगी का यह सच या शायद कोई अनकहा राज़ सुन लेना।
इतने सारे इत्तेफ़ाक़ अचानक ही नहीं हो जाते।
सुरभि के मन में अजीब-सा द्वंद्व था। समीर के सुमन से शादी करने की वजह से पहले तो उसे उन दोनों से नफ़रत हो गयी थी, पर फिर समीर का सच जानने के बाद, उसे सुमन के प्रति हल्की-सी हमदर्दी पैदा हो गई थी।
लेकिन यह हमदर्दी अब एक और उलझन के साथ आ मिली थी — क्या जो सच सामने आया है, वह पूरा सच है? या इसके पीछे और भी कोई परत है, जो अभी खुलनी बाकी है?
उसके भीतर सवालों का बवंडर मचा था — क्या सुमन ने कभी समीर से कुछ छुपाया? या समीर ने सुरभि की हमदर्दी पाने के लिए उससे झूठ बोला था ? क्या यह सब महज़ किस्मत का खेल था, या कुछ और?
और… इन सबके बीच, वह खुद क्यों इन घटनाओं की गवाही देने को मजबूर है?
कमरे की दीवार पर टंगी घड़ी की टिक-टिक जैसे इस खामोशी को काट रही थी। पर वह जानती थी — यह खामोशी जल्द ही टूटेगी… और जब टूटेगी, तो शायद किसी की ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल जाएगी।
जबसे वो लोग डाक्टर सिमी से मिल कर आए थे, सुमन का मन अशांत था, मानो हर रोज़ कोई अदृश्य हाथ उसके भीतर की गाँठों को और कस देता हो। हालाँकि समीर उसका बहुत ध्यान रखता था , पर यही देखभाल उसके भीतर डर भी जगाती थी।
वह सोचती—“क्या समीर मुझे अब दया की दृष्टि से देखता है ? कभी उसे लगता कि वह सबके सामने बेनक़ाब हो गई है, कभी लगता कि समीर उससे दूर जा रहा है। वह नींद से हड़बड़ाकर उठ बैठती, और खुद को समझाती कि यह सब सिर्फ़ उसका वहम है। एक बार वह फिर से दिमागी रूप से बीमार होने लगी थी।
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अंजु गुप्ता ‘अक्षरा’
क्रमशः