समीर उसकी ओर देखते हुए मुस्कुराया। परेड ग्राउंड से आती धीमी बिगुल की आवाज़ उनके दिलों में गूंज रही थी—एक नई सुबह की घोषणा करते हुए। दोनों के बीच वह पल जैसे किसी अनकहे वादे में बदल गया—बीते कल को यहीं छोड़कर, आने वाले कल में साथ चलने का।
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सुबह का समय था। हवा में हल्की-सी ठंडक और बरामदे से दिखते ताज़ा खिले गुलमोहर के फूल वातावरण को बेहद खूबसूरत बना रहे थे । सुमन बरामदे में खड़ी चाय की प्याली थामे, इन नए नज़ारों को देख रही थी। कुछ महीने पहले ही समीर का ट्रांसफर यहाँ हुआ था और अब उसका जीवन एक नए ढर्रे पर चलने लगा था।
समीर सुबह जल्दी उठकर वर्दी में तैयार होता, तो उसे देख कर सुमन को हमेशा गर्व होता। वो जानती थी कि इस जीवन का अनुशासन सख्त है, लेकिन इसमें एक तरह की सुंदरता भी है। दिन में उसका अपना रूटीन — घर सँवारना, मार्केट जाना, आसपास के लोगों से मुलाक़ात इत्यादि।
धीरे-धीरे सुमन इस माहौल में घुलने लगी थी। पर जिस चीज़ से उसे कोफ़्त होती थी वो थी कि यहाँ के लोग बहुत औपचारिक थे, उनसे दोस्ती धीरे-धीरे ही आगे बढ़ रही थी।
एक दिन सुमन पास के मार्केट विंडो शॉपिंग के लिए गयी थी। इसी बीच उसकी नज़र एक युवती पर पड़ी। उस युवती के चेहरे के नैन नक्श, उसकी चाल, मुस्कान, और आँखों में एक जानी-पहचानी चमक दिखी — कुछ ऐसा, जिससे सुमन के दिल में एक हलचल उठी।
“ये… सुरभि? नहीं, हो ही नहीं सकता।” वो घबरा कर अपने आप से बोली।
अपना शक दूर करने के लिए, उसने थोड़ा पास जाकर देखने की कोशिश की … पर तक वो युवती भीड़ में ओझल हो गई थी। सुमन की साँस जैसे अटक-सी गई। घर लौटते वक्त भी वही चेहरा, वही शक्ल उसके दिमाग में घूमती रही।
रात को बिस्तर पर भी नींद देर तक नहीं आई। वो सोचती रही कि अगर सच में सुरभि थी, तो यहाँ कैसे? और अगर नहीं थी, तो क्यों उसका चेहरा मुझे इतना परेशान कर रहा है? समीर से बात करने का मन हुआ, पर वो चुप ही रही। डर था कि कहीं समीर के मन में वो दुबारा से सुरभि का ख्याल न डाल दे। फिर कुछ दिनों तक इस यातना से जूझते जूझते, वो इसे अपना बेकार का वहम समझ कर भूल गई ।
दिन बीतने लगे। एक दिन समीर घर आकर बोला, “अरे, शनिवार को अमित के घर चलना है। उसने पार्टी रखी है।”
सुमन ने चौंककर पूछा, “कौन अमित?”
“अरे तुम अमित को कैसे भूल सकती हो ? अरे सिमी भाभी वाला ? जो हमारी शादी में भी आए थे… मेरा मतलब है हमारी शादी के वक्त जिन्होंने साइन भी किये थे।” याद दिलाते समीर बोला, “काफी अरसे बाद मिलेंगे, बस कुछ दोस्त लोग ही आएँगे।”
सुमन भी इस मुलाक़ात को लेकर उत्साहित थी। पुराने लोगों से मिलने का अच्छा मौका था। वो बेसब्री से शनिवार का इंतज़ार करने लगी।
शनिवार की शाम, उनकी कार दिल्ली कैंट से निकलकर द्वारका की चौड़ी सड़कों पर दौड़ रही थी। सेक्टर 22/23 का साफ-सुथरा इलाका , चौड़ी सड़कों पर कतार से लगे पेड़, बच्चों के खेलने के छोटे छोटे पार्क और दूर-दूर तक फैले ऊँचे-ऊँचे अपार्टमेंट टॉवर –
अमित का घर सेक्टर 23 के एक बड़े अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स में था। गेट पर सिक्योरिटी चुस्त दुरुस्त थी। गाड़ी पार्क करते ही दोनों अमित के अपार्टमेंट की तरफ बढ़ चले।
घर का दरवाज़ा खोलते ही अमित ने बड़े गर्मजोशी से उनका स्वागत किया, “अरे समीर! कितना वक्त हो गया था मिले हुए… और आईए भाभीजी! कैसी हैं आप?”
अभिवादन का जबाब देकर वे लोग अंदर आ गए। अंदर ड्रॉइंग रूम में 4 -5 परिवार पहले से मौजूद थे। बच्चों की हँसी-खिलखिलाहट गूँज रही थी। कोने में रखी टेबल पर स्नैक्स और ड्रिंक्स सजी थीं।
बाकि सबको तो समीर जनता ही था, बस एक ही नया चेहरा था। अमित ने मुस्कुराते हुए समीर से कहा, “इनसे मिलो ! यह है मेरा छोटा भाई विनय।”
“क्या आप भी आर्मी में हैं?” सुमन ने पूछा।
“नहीं! ये तो ग्लोबल ग्रोथ सोलुशन्स के “बिग शॉट” है। कुछ समय पहले ही इसकी ट्रांसफर दिल्ली में हुई है।” अमित ने विनय की तरफ़ स्नेह से देखते हुए कहा।
“ये भाई भी ना…” विनय विनम्र होते हुए बोला “मैं वहाँ मैनेजिंग डारेक्टर हूँ।”
कम्पनी का नाम सुन सुमन और समीर इम्प्रेस हुए बिना नहीं रहे।
लंबा, स्मार्ट, सहज मुस्कान और आँखों में आत्मविश्वास लिए हुए विनय का व्यक्तित्व, उसे बाकी लोगों से अलग बना रहा था।
बाकी सब लोग कॉलेज के किस्से, फील्ड पोस्टिंग की यादें, और हँसी-मज़ाक – इत्यादि अनौपचारिक बातों में लीन हो चुके थे ।
इससे पहले कि वो लोग बैठते, पीछे से हल्की आहट हुई।विनय ने पीछे मुड़कर देखा। सामने वाले कमरे से दो बच्चों के साथ सुरभि आ रही थी — सजी-सँवरी, आत्मविश्वास से भरपूर सुरभि ।
एक दूजे को देख कर सुमन के साथ-साथ सुरभि और समीर का दिल भी जैसे थम सा गया था । सुरभि …वही सुरभि, जो कभी समीर की ज़िंदगी का अहम हिस्सा थी, उनके सामने खड़ी थी और उसके साथ थे दो छोटे बच्चे — लगभग छह साल के जुड़वाँ, जिनकी शरारती आँखों में जिज्ञासा चमक रही थी।
सुरभि को इशारे से विनय ने अपने पास बुलाया।
अमित भाई ने उसका परिचय करवाते हुए कहा, “ये है सुरभि, विनय की पत्नी और…. ये इनके नन्हें शैतान — आरोही और आरव ।”
सुरभि ने मुस्कुराकर अभिवादन किया, और कुछ औपचारिक बातें कर भाभी की मदद की बात कर उधर से चली गई। उसके किसी भी हावभाव से यह नहीं लगा कि वह उन्हें जानती है या उसके मन में कोई गुस्से का भाव है। बाकी सबसे भी वह बड़े अपनेपन से मिल रही थी।
सुरभि को देख, समीर के दिल में जहाँ एक अजीब-सा सुकून था वहीं विनय से थोड़ी सी जलन भी हुई । सुरभि के चेहरे की खुशी, उसकी दुनिया की पूर्णता देखकर उसे राहत मिली थी कि वो अपनी ज़िंदगी में खुश है, पर अपने हिस्से का सितारा किसी और के साथ हो, दुःख तो होता ही है।
ऐसा ही कुछ सुमन के मन का हाल था — ईर्ष्या फिर से उसके मन में भरने लगी, वो अपनी तुलना सुरभि से करने लगी। एक समय उसने सुरभि से सब कुछ छीन लिया था।पर उसे देख कर लगता था कि मानों भगवान ने उसे दुनिया भर की खुशियाँ दिल खोल कर दे दी हैं।
पार्टी के दौरान भी सुमन की नज़रें विनय, सुरभि और उनके दोनों बच्चों की खिलखिलाहट का ही पीछा करतीं रहीं। पार्टी वाकई शानदार थी। विनय और सुरभि के कप्पल डान्स ने सबका मन मोह लिया था। हँसी – मज़ाक, पुरानी यादें, पुराने किस्से और पुराने दोस्त — सच में किस्मत वालों को ही मिलते हैं।
पर कुछ पुराने किस्से कुछ लोगों के लिए दर्द देने वाले भी बन जाते हैं। पार्टी से वापिस लौटते हुए कार में लंबी चुप्पी थी। सड़क पर पीली रोशनी की लकीरें, खिड़की से दिखते सुनसान रास्ते…
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अंजु गुप्ता ‘अक्षरा’
क्रमशः