विंडो सीट भाग – 10 – अंजु गुप्ता ‘अक्षरा’ :

जबसे वो लोग डाक्टर सिमी से मिल कर आए थे, सुमन का मन अशांत था, मानो हर रोज़ कोई अदृश्य हाथ उसके भीतर की गाँठों को और कस देता हो। हालाँकि समीर उसका बहुत ध्यान रखता था , पर यही देखभाल उसके भीतर डर भी जगाती थी।

वह सोचती—“क्या समीर मुझे अब दया की दृष्टि से देखता है ? कभी उसे लगता कि वह सबके सामने बेनक़ाब हो गई है, कभी लगता कि समीर उससे दूर जा रहा है। वह नींद से हड़बड़ाकर उठ बैठती, और खुद को समझाती कि यह सब सिर्फ़ उसका वहम है। एक बार वह फिर से दिमागी रूप से बीमार होने लगी थी।

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एक शाम सुमन अपना मोबाइल को स्क्रोल कर रही थी। फेसबुक की प्रोफ़ाइल फोटो में वही पुरानी मुस्कान लिए खड़ा समीर… जिसे देखकर उसके मन में जाने कितने मौसम लौट आए।

लेकिन अगले ही पल उसकी नज़र — “You  have a new friend suggestion ”  पर अटक गई। सजेशन में Vinay Sharma का नाम था। 

वह तुरंत विनय की प्रोफाइल खंगालने लगी —विनय ने चुनिंदा, पर बेहद खूबसूरत फोटो पोस्ट की हुईं थीं जोकि उसके कलात्मक पक्ष को बता रहीं थीं।  उसे याद आया कि पार्टी में अमित ने बताया भी था कि विनय बहुत ही बढ़िया फोटोग्राफी भी करता है। वहाँ कुछ हाल की तस्वीरें भी थीं — सुरभि और विनय नए घर कीं, हँसते-खिलखिलाते परिवार कीं, और एक तस्वीर में… उनके बच्चों के पास खड़ा समीर। उसके भीतर कुछ सख़्त-सा टूटकर गिरा। गुस्से में वह यह भी भूल गई कि यह तब की तस्वीर है जब वे लोग अमित के घर गए थे।

उसने कमैंट्स को पढ़ना शुरू किया मानों कुछ तलाश रही हो। दिल की धड़कन तेज़ हो गई थी । विनय की कितनी ही पोस्ट पर समीर के लाइक और कमैंट्स मानों उसे चिड़ा रहे थे। उंगलियाँ स्क्रीन पर टिकी रहीं, पर दिमाग़ में जलन का धुआँ भरने लगा।

उसने उसी वक्त सुरभि की प्रोफ़ाइल देखनी चाही, पर वो लॉक्ड थी। विनय की प्रोफाइल में ज्यादातर परिवारिक फोटोज ही थी। समीर का हर ‘लाइक’ जैसे सुमन को इशारा दे रहा था कि — मानो यह लाइक विनय के लिए नहीं बल्कि सुरभि के लिए है ।

उसका मन कसैला हो उठा। उसने होंठ काटे और बड़बड़ाई—”मेरे सामने तो रोज़ परवाह दिखाता है और उधर सुरभि की तस्वीरों पर दिल खोलकर लाइक करता है।”

उसके अंदर असुरक्षा गहराने लगी। हर लाइक, हर कमेंट उसे चुभने लगा। उसे लगने लगा मानो सुरभि उसकी खुशियों में सेंध लगा रही है। यही वह क्षण था, जब उसके भीतर का डर और गुस्सा एक हो गया — और उसने तय कर लिया कि अगली बार सामना होने पर वह सुरभि से दो टूक बात करेगी ।

असलियत में समीर का कोई छुपा मक़सद नहीं था। वह पूरी निष्ठा से अपना जीवन निभा रहा था। उसने सहजता से बस एक दोस्त की पोस्ट पर प्रतिक्रिया दी थी। लेकिन सुमन के लिए ये छोटी-सी बात उसके असुरक्षा-बोध को कुरेद गई थी।

उधर, सुरभि और विनय नई ज़िंदगी की शुरुआत में व्यस्त थे। अपने अपार्टमेंट में शिफ़्ट होने के बाद दोनों ने राहत की साँस ली थी। नए घर की दीवारों पर अब भी ताज़े रंग की महक थी। हर कोने में नए सपनों का अहसास बसा था।

सारा सामान तो मूवर्स एंड पैकर्स कर ही चुके थे, अब सुरभि धीरे-धीरे अपने सपनों का संसार सजाने लगी थी। हर कोना उसकी मेहनत और सौंदर्यबोध की गवाही दे रहा था।

विनय ने मुस्कराकर बोलता “लगता है जैसे घर नहीं, कोई प्यारा-सा घोंसला बना दिया है तुमने।”

सुरभि हँस देती। वह चाहती थी कि उसके घर के हर कोने में अपनापन झलके। इन्हीं तैयारियों के बीच एक दिन उसने दिल्ली हाट जाने का सोचा। वहाँ से वह कुछ हैंडक्राफ़्ट और सजावटी सामान लेना चाहती थी। विनय को शॉपिंग करना ज़्यादा पसंद नहीं था इसलिए बच्चों को उसके साथ छोड़ वो ड्राइवर के संग दिल्ली हॉट चली गई। ड्राइवर को २-३ घंटे बाद आने का बोल, उसने दिल्ली हॉट में प्रवेश किया।

रंग-बिरंगे स्टॉल, हथकरघा के कपड़े, कश्मीरी शॉल और राजस्थानी झुमकों की खुशबू व रंग जैसे उसके मूड को हल्का कर रहे थे। वह एक ब्लॉक-प्रिंटेड कुशन कवर देख रही थी, तभी पीछे से किसी की चुभती हुई आवाज़ आई — “अरे वाह! मैडम आजकल तो बहुत स्टाइलिश हो गई हैं!”

सुरभि ने पलटकर देखा—सुमन थी और संग थी होंठों पर व्यंग्य भरी मुस्कान। “हाय सुमन,” सुरभि ने हल्की आवाज़ में कहा और नजरें फेर लीं।

“अरे, ऐसे क्यों भाग रही हो? उस दिन तो सब थे, इसलिए तुम्हें बधाई नहीं दे पाई।” वह पार्टी वाले दिन की बात करते हुए बोली।

“किस बात की बधाई ?” सुरभि हैरान थी।

“हैंडसम पति, प्यारे बच्चे और अब ….  समीर जैसा वफ़ादार बॉयफ्रेंड फिर से तुम्हारे पास है!” सुमन की जुबान पर कटाक्ष था।

सुरभि ने उसे अनदेखा करने की कोशिश की और सामान देखने लगी, मगर सुमन उसके एकदम पास आकर ठिठक गई।

“वैसे, कमाल है तुम्हारी किस्मत का … दो-दो नावों में सफर करती हो ।”

सुरभि का चेहरा लाल हो गया। उसने ठंडी आवाज़ में कहा—“सुमन, तुम्हें अपनी ज़ुबान पर लगाम लगाओ। जो कहानियां तुमने अपने मन में बुन रखी हैं, उनका हक़ीक़त से कोई लेना-देना नहीं।”

सुमन (और पास आकर) — “कहानियां ? नहीं सुरभि, ये सच्चाई है। देखती नहीं, समीर आज भी तुम्हारी हर पोस्ट, हर तस्वीर के आस-पास मंडराता है। सच बताओ—अब भी तुम उसे मुझसे छीनना चाहती हो, है ना?”

सुरभि (आँखों में गुस्सा भरते हुए) — “बस करो! ये तेरी जलन है, तेरा डर है। मेरा समीर से कोई लेना देना नहीं। तुम यह हक़ीकत अच्छे से जानती हो। “

सुमन तिलमिला गई। वह भूल गई थी कि वो किसी पब्लिक प्लेस में है।  उसकी सांसें तेज़ हो गई — “हक़ीक़त? तुम्हें सच का पता भी है? सच तो ये है कि तुम्हारी वजह से ही मेरी और समीर की शादी कभी आबाद हुई ही नहीं । तुम हमेशा से त्याग की देवी बनकर सामने आईं… ताकि समीर तुम्हारी तरफ़ खिंचता रहे।”

सुरभि का सब्र टूट गया। उसने आँखों में सख़्ती लाते हुए कहा — “और तेरी सच्चाई? प्रेग्नेंसी का वो झूठ… जिसके दम पर तूने समीर से शादी की। अगर मैं ये राज़ समीर के सामने खोल दूँ, तो सोच, क्या बचेगा तेरे पास?”

सुरभि के शब्द सुमन के दिल पर हथौड़े की तरह गिरे। उसका चेहरा लाल हो उठा, होंठ काँपने लगे— “हाँ, झूठ बोला था मैंने… ताकि वो मुझसे शादी कर ले। क्योंकि मैं उससे मोहब्बत करती थी और …और उसे खोना नहीं चाहती थी। लेकिन तुम… तुम कौन होती हो मुझे कटघरे में खड़ा करने वाली” उसका ग़ुस्सा काबू में नहीं था।

सुरभि हतप्रभ रह गई। इतनी नफ़रत, इतनी ईर्ष्या खुद में समेटे है यह …इससे पहले की वह कुछ बोलती, पीछे से एक परिचित आवाज़ आई—”ये सब क्या हो रहा है?”

दोनों ने मुड़कर देखा—समीर खड़ा था।

और उसकी जिंदगी का सबसे भयंकर सच, षड्यंत्र सब सामने आ चुका था। सुमन के होंठ सूख गए, उसकी नज़रें समीर से मिलीं और फिर झुक गईं।

समीर ने सख्त लहज़े में पूछा— “सुमन, ये प्रेग्नेंसी वाली कहानी… क्या थी?”

सुमन की आवाज़ काँप रही थी, जैसे पैरों तले ज़मीन खिसक गई हो—“ये… ये झूठ बोल रही है… ताकि तुम मुझे छोड़ दो।”

समीर ने उसकी ओर देखा। आँखों में गहरी निराशा और बोझिल थकान थी। धीमे स्वर में बोला— 

“कितना गिरोगी, सुमन? तुम्हें सच में लगा था कि झूठ की बुनियाद पर कोई रिश्ता टिक पाएगा?”

वह और भी बहुत कुछ कहना चाहता था—मन के अंदर भरे शब्द जैसे बाहर निकलने को बेताब हों, मगर चारों ओर भीड़ जमा हो रही थी। लोग कौतूहल से ताक रहे थे, कुछ आपस में फुसफुसा रहे थे। समीर ने भीड़ की नज़रों से बचाने के लिए सुमन को लगभग घसीटते हुए बाहर ले जाना शुरू किया। पर उसके कदमों के साथ सुमन का रोष और बढ़ता गया।

वह पीछे मुड़कर बार-बार सुरभि को कोस रही थी, मानो उस पर कोई दौरा-सा पड़ गया हो—

“तुम्हीं हो वजह… सब बर्बादी की जड़ तुम ही हो… तुमने ही छीन लिया सब मुझसे…”

समीर ने उसकी आवाज़ दबाने की कोशिश की, मगर सुमन के शब्द हवा को चीरते हुए चारों ओर फैल रहे थे। लोग अब और भी गहरी दिलचस्पी से देखने लगे थे। हर कदम के साथ सुमन की कड़वी पुकारें हवा को चीरती हुई सबके कानों तक पहुँच रही थीं। समीर का चेहरा शर्म और पीड़ा से लाल हो उठा। 

सुरभि अब चुपचाप यह सारा मंजर देख रही थी। उसके दिल में एक साथ दर्द और गुस्सा उमड़ रहे थे। दर्द – सुमन और समीर की मौजूदा हालत के लिए—और गुस्सा इसलिए कि इनकी चुप्पियों और एकतरफ़ा फैसलों ने ही उसे भी सालों साल रुलाया था।।

वह भीड़ से बाहर निकल आई। समीर सुमन को सँभालने में जुटा था। सुमन की आँखों में अभी भी क्रोध की लपट बाकी थी। उसने सुरभि की ओर देखते हुए कहा— “तुम जीत गई, सुरभि… लेकिन याद रखना, हर जीत खुशी नहीं देती। मैं विनय को सब सच बतला दूँगी…”

सुरभि ने उसकी आँखों में सीधा देखा और दृढ़ आवाज़ में कहा—

“बहुत ही घटिया हो तुम सुमन।और…. यही फर्क है तुममें और मुझमें…तुमने शुरुआत ही झूठ और फरेब से की थी… और मैंने शुरुआत में ही अपनी ज़िंदगी का पूरा सच विनय को बता दिया। इसलिए मेरी ज़िंदगी आज भी हल्की है और तुम्हारी बोझिल।”

उसके होंठों पर एक कड़वी मुस्कान आई—

“और एक सच जान लो… झूठ से शुरू हुआ रिश्ता आखिरकार सच की आँच में ही जलता है।”

फ़िर अपने ड्राइवर को फ़ोन करने से पहले वो समीर की तरफ घूम कर बोली, “समीर, यह मत सोचना कि तुम्हारा कोई कसूर नहीं है। जब फ़ैसला हम दोनों की ज़िंदगी का था, तो तुम कौन थे मेरी ज़िंदगी का फ़ैसला लेने वाले। कम से कम मुझसे बात तो करते, उसके बाद हम किसी नतीज़े पर निकलते …. पर वो हमारा फैसला होता।  खैर, कोई दुःख नहीं है मुझे तुम्हारे इस हालात पर…. शायद तुम यही डिज़र्व करते हो। “

समीर बस चुप खड़ा सुनता रहा—थका हुआ, टूटा हुआ।

घर लौटने के पर समीर का गुस्सा फूट पड़ा। उसने सीधे सुमन की माँ को फोन मिलाया।

आवाज़ में थरथराहट और आक्रोश था—

“आपकी महत्वाकांक्षा ने मेरी ज़िंदगी तबाह कर दी। आपने अपनी बेटी को सच की जगह झूठ सिखाया, और मुझे रिश्ते के नाम पर बोझ सौंप दिया। एक बेगुनाह लड़की की आह खाली नहीं जाती… आज वह सच मेरे सामने है।”

उधर से रोती हुई आवाज़ आई— “बेटा, हर माँ चाहती है कि उसकी बेटी की ज़िंदगी सुरक्षित रहे। मैंने यही सोच तुमसे झूठ बोला था। … पर मैं गलत थी। मुझे और सुमन को  माफ कर दो।”

समीर का स्वर कठोर हो चुका था— “अब इस रिश्ते में कोई बचाव नहीं। मैं सुमन के साथ रहूँगा, लेकिन सिर्फ नाम के लिए। पति का अधिकार और सम्मान देना अब नामुमकिन है।  और हाँ, अगर वह तलाक़ चाहती है, तो मैं खुशी-खुशी साइन कर दूँगा।”

यह सुनते ही सुमन का मन जैसे बिखर गया। उसकी आँखों में अपराधबोध और बेबसी का सैलाब उमड़ आया। उसके और उसकी माँ की बनाई झूठी नींव ढह चुकी थी। वह समझ गई कि उसकी हर चालाकी, हर छल अंततः उसी को उजाड़ गया।

बेबसी से उसने समीर की तरफ देखा।

समीर चुप रहा। उसकी चुप्पी ही उसका उत्तर थी।
दोस्तो —कुछ रिश्ते बंद खिड़कियों जैसे होते हैं। बाहर से देखने में बेहद सुंदर, पर भीतर दम घुटता है। और जब खिड़की एक दिन खुलती है… तो सच की तेज़ हवा सब कुछ उड़ा ले जाती है।

इसलिए कहते हैं कि रिश्तों की शुरुआत कभी भी झूठ की नींव पर न रखें। हो सकता है झूठ सालों साल जी जाए, पर…. एक तो झूठ के सच आने का डर हमेशा ही जिन्न की तरह पीछा करता रहता है और दूसरे जब सच सामने आता है, तो जीना मुश्किल भी हो सकता है।

यही ज़िंदगी की असली सीख भी है— हमेशा सच की ओर बैठो, उस ‘विंडो सीट’ पर जहाँ से रोशनी और ताज़ी हवा भीतर आती रहे।”

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अंजु गुप्ता ‘अक्षरा’

समाप्त

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