गोपाल जी उस दिन बाजार से सब्जी लेकर लौट रहे थे कि सिर बहुत भारी सा लगने लगा । उन्होंने सोचा एक बार डॉक्टर से बी.पी जाँच करा लेता हूँ । जब डॉक्टर के पास जाँच कराने गए तो बी.पी सामान्य था और डॉक्टर ने बताया हार्ट के डॉक्टर को दिखा लीजिए, उसकी वजह से समस्या लग रही है । तभी उनकी पत्नी ममता जी ने फोन करके पूछा…”कितनी देर लग रही है, सब्जी नहीं मिली तो आ जाइये, कहाँ हैं आप ? गोपाल जी ने जवाब दिया…”बस ! आ रहा हूँ, कुछ काम याद आ गया था, थोड़ा टाइम लगेगा ।
गोपाल जी अपने समय में बहुत होनहार छात्र थे । पर किस्मत ने साथ नहीं दिया। सब उन्हें चलता – फिरता गूगल बोलते थे । बहुत मेहनत के बावजूद भी जॉब नहीं हासिल कर सके तो उन्होंने गाँव से थोड़ी दूर कस्बे में ही कोचिंग खोल लिया । गोपाल जी भाइयों में इकलौते थे और एक उनसे बड़ी बीनू दीदी और छोटी रेणु थी । एक बेटी थी राधिका जिसकी शादी पिछले साल हुई थी । गोपाल जी की दोनो बहने शहर में रहती थी और नौकरी वाले से ब्याही गयी थीं ।
हार्ट हॉस्पिटल बीनू दीदी के घर के ही पास था । उन्होंने सोचा बहुत दिन हो गए, दिखाने के बहाने दीदी से भी मिलता चलूँ । फोन करके अपॉइंटमेंट लिया और एक घण्टे के अंदर का ही अपॉइंटमेंट मिल गया । डॉक्टर के पास जाते ही उसने बहुत सारे जाँच और दवा लिख दिया ये बताते हुए कि ऑपरेशन कराना होगा जिसका खर्च दो लाख के लगभग होगा । मायूस से हो रहे थे गोपाल जी लेकिन उन्होंने खुद को संभाला ।
सारे जाँच होने के बाद वो दीदी को बिना फोन किए उनके घर चले गए । पहले तो बीनू दीदी आश्चर्यचकित हुईं फिर आने का कारण पूछा । गोपाल जी ने पहले तो हल्के में लिया फिर मुस्कुराते हुए कहा…”मिलने नहीं आ सकते क्या दीदी ? फिर दीदी के मुँह की तरफ देखा तो उनके भाव समझ आ रहे थे जैसे बिन बताए आने से वो उलझन में हैं । बीनू दीदी ने डायनिंग टेबल पर चाय रखते हुए गोपाल जी को बैठने का इशारा करते हुए कहा…”बिन बताए आने की बात नहीं है,
अभी एक घण्टे बाद मुझे पार्टी में जाना है और फिर तुम्हारे लिए खाना भी बनाना है । हम सबका खाना तो बाहर ही होगा । थोड़ा सा अजीब लगा गोपाल जी को सुनकर । फिर उन्होंने बात को समेटते हुए कहा..”अस्पताल जाँच कराने आया था तो सोचा फोन करके आपको क्यों परेशान करूँ ? बार – बार आना होता नहीं यहाँ , ज्यादा देर नहीं परेशान करूँगा बस घूम के आ जाऊँगा । चश्मा साफ करते हुए मुँह बिचकाकर बीनू दीदी ने कहा…”अरे ! ठीक है, खाना क्या है बताओ । बिना खाए भी नहीं भेज सकते , लेकिन मुझे थोड़ी देर में जाना भी है ।
दीदी की ऐसी कड़वी बातें सुनकर गोपाल जी का पेट ऐसे ही भर गया था । अब खाने की भूख ही खत्म हो चली थी । अब उनको समझ आने लगा था । पत्नी ममता जी की बातें उन्हें आभास करा रही थीं कि दीदी लोग सिर्फ भाई दूज और राखी पर अपना नेग लेने आती हैं, भाव – प्रेम रिश्तों को लेकर किसी मे नहीं है । और गोपाल जी हमेशा उलझ कर ममता जी से घर की शांति भंग कर लेते ।
गोपाल जी ने चाय खत्म होते हुए दीदी के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा..”चाय पीकर अच्छा लगा दीदी ! अब चलता हूँ । और बीनू दीदी ने भी नहीं रोका, बाहर जाकर छोड़ आईं । एक तो धूप और गर्मी से तन झुलस रहा था और ऊपर से ऐसी कड़वी बातें सुनकर मन भी कम नहीं झुलसा था गोपाल जी का । अंदर ही अंदर बुदबुदा रहे थे ..”वाह री दुनिया ! पैसे में इतना दम है कि लोग रिश्ते दाव पर लगा देते हैं ।एक बार भी दीदी ने नहीं पूछा अस्पताल क्यों आया हूँ क्या काम है ?
अब आँखों के कोर नम हो रहे थे । इससे पहले आँसू गालों पर ढुलकते उन्होंने आँसुओं को बाहर आने की इजाजत नहीं दी । घड़ी देखा तो अभी भी जाँच कराने में तीन घण्टे थे । बीनू दीदी से सबक ले लिया था उन्होंने । इसलिए रेणु को पहले ही फोन करके आने की सूचना दे दिया । घर गए तो रेणु के अंदर भी कोई उत्साह नहीं दिखा । दरवाजे पर आते ही रेणु ने लेक्चर पिलाना शुरू कर दिया..”चप्पल खोलकर आना गोपाल ! ये कालीन बहुत महँगी है, ।
जैसे ही गोपाल जी सोफे पर बैठने लगे रेणु ने तेजी से आगे बढ़ते हुए कहा..”यहाँ मत बैठो , ये सोफा मेहमानों के लिए है, अंदर कमरे में बैठकर बातें करते हैं । रेणु ने पूछा किसी काम से आए थे या मुझसे मिलने ,? गोपाल ने मजबूरी बताते हुए अपनी बात रखी और पूछा…”खाकर आए हो या कुछ बना दूँ ? गोपाल जी ने ना में सिर हिलाते हुए कहा…”खाकर आए हो या खाना निकालूँ ? समझ नहीं आ रहा था गोपाल जी को, समय को दोष दें या खुद को ।
रेणु की बातों से आहत होकर भी गोपाल जी ने अनसुना करते हुए कहा…कुछ पैसों की जरूरत है रेणु ! डॉक्टर ने ऑपरेशन के लिए तीन लाख रुपये बताए हैं, ।
बात अभी पूरी भी नहीं हुई कि रेणु ने पहले ही कह दिया…”मेरी बेटी का ट्रिप ऑफिस के तरफ से जा रहा है । मेरे लिए तो मुश्किल है । अब खाली हाथ ही गोपाल जी लौट रहे थे । निकलने से पहले उन्हें खुद पर तरस आ रहा था , पैसों की अहमियत इतनी ज्यादा है समझ नहीं आ रहा था क्या करें। दिमाग घोड़े की तरह बेलगाम हो रहा था । जाते – जाते रेणु ने हाथ में सेव और केला थमा दिया ।
अब जाँच हो जाने के बाद गोपाल जी अपने घर आ गए । उन्होंने आप बीती बताई । ममता जी ने बोला…’इतना क्यों सोचना , बुरा मत महसूस करिए..”राधिका हमारी बेटी है तो हम मजबूरी में ही सही उसके पास ही जाएँगे । कम दिन हुए शादी के तो क्या हुआ ।ममता जी ने राधिका को कॉल लगाया तो पता चला राधिका की तबियत दस दिन से खराब है, ममता जी गोपाल जी नानी नाना बनने वाले हैं। उनके दामाद चिराग ने बताया राधिका को बेड रेस्ट है ।अब ऐसा लग रहा था मानो एक एक करके सारे दरवाजे बंद हो गए, अपनो ने भी मुँह मोड़ लिया ।
ममता जी की आँखों से आँसू छलक आए । उन्होंने अपने गहने गोपाल जी को दिखाते हुए पूछा..”ये कब काम आएँगे ? गोपाल जी ने आँख मीचते हुए कहा…”स्त्रीधन है ममता ” ! एक बार दोस्तों से भी पूछ कर देखता हूँ वैसे तो जब अपनो ने ही नहीं मदद की तो क्या कहूँ ..? जब कोई उपाय नहीं होगा तब सोचेंगे । तभी पड़ोस के मिश्रा जी का बेटा हर्ष घूमता हुआ हर दिन की तरह आया और बोलने लगा…” आंटी अमरूद दो न !
तभी उसकी नज़र ममता जी के शांत चेहरे पर गयी और उसे उदासी दिखी । चुपचाप मौन पढ़ने लगा वो जब उसे समझ नहीं आया तो उसने अपनी मम्मी को बुलाकर लाया । उसकी मम्मी सुधा जी ने पूछा उदासी का कारण तो सब कुछ ममता जी ने बता दिया । सुधा जी बहुत सामाजिक और नेक दिल वाली थीं । उन्होंने तुरंत कहा..”पैसा तो आता जाता रहता है ममता ! मेरे पास हैं पैसे, मैं तुम्हारी पूरी मदद करूँगी । # ऐसे बुरे वक़्त जीवन मे इसलिए आते हैं ताकि # अपनो की पहचान हो । पैसा आता जाता रहेगा लेकिन पैसों की मुश्किल की वजह से इतने अच्छे रिश्ते और पड़ोसी नहीं खोना चाहती । कहकर सुधा जी ने ममता जी को गले लगा लिया ।
हाथ जोड़कर जैसे ही खड़े हुए गोपाल जी सुधा जी ने बोला..”इसकी जरूरत नहीं भाई साहब ! इंसान ही इंसान के काम आता है ।
#अपनो की पहचान
मौलिक, स्वरचित
अर्चना सिंह