बड़े भइया घर में घुसते ही चिल्ला रहे थे कहां है मधु? । चारों तरफ ऐसा सन्नाटा पसरा था की सब की जुबान पर मानो ताला लग गया हो। मां जी के बाद अगर पूरा परिवार किसी से डरता था तो वो थे बड़े भइया सुधाकर से।
अरे! ” सुधाकर क्यों घर आसमान पर उठा रखा है गई होगी अपने मायके।कौन सा किसी की सुनती है वो? इस घर में तो सबकी मनमानी ही चलती है” मां जी बड़ी आसानी से बात घुमा गईं थीं।
मधु यानि मझले भइया की पत्नी।मझले भइया की बीमारी के चलते मौत हो गई थी और उन्होंने अंतिम सांस लेते हुए सुधाकर भइया का हांथ पकड़ कर वादा लिया था कि,” भइया आप मधु का जीवन भर ख्याल रखिएगा और उसका विवाह जरुर करा दीजिएगा वरना मुझे मुक्ति नहीं मिलेगी।”
सुधाकर भइया मधु भाभी को छोटी बहन की तरह ख्याल रखते थे। दफ्तर के काम से उन्हें कुछ महीने के लिए बाहर जाना पड़ा था तब उन्होंने मां से वादा लिया था की मधु का पूरा ख्याल रखेंगी लेकिन मधु मां जी को फूटी आंख नहीं सुहाती थी। पहले तो उस पर ढेरों इल्ज़ाम लगाया था कि, “मेरे बेटे को खा गई फिर बड़े बेटे पर ना जाने क्या जादू कर दिया है जो वो इसके पीछे पूरे परिवार से लड़ता रहता है।”
मधु बहुत ही सहनशील लड़की थी। इतनी कम उम्र में उसने सबकुछ खो दिया था। हंसी तो होंठों से लापता ही हो गई थी।जो कुछ भी कहता चुपचाप वही करती क्योंकि सोचने समझने लायक ही नहीं बची थी। इसीलिए बड़े भइया उसे छोटी बहन जैसा देखभाल करते थे।
घर से मधु गई नहीं थी बल्कि जाने पर मजबूर कर दिया था मां जी ने। किसी की भी सहनशक्ति की भी सीमा होती है। उसकी बेबसी का फायदा उठाकर और बड़े भइया की गैरमौजूदगी का पूरा – पूरा फायदा उठाया था।एक दिन वो चली गई थी, कहां गई थी किसी को पता नहीं था।
मां!” सही – सही बताना की क्या हुआ था मेरे पीछे से क्यों कि मधु मझले की अमानत थी और मैंने उससे वादा किया था की मैं आजीवन उसका ख्याल रखूंगा।”
घर के सभी लोग अपने – अपने काम के बहाने इधर उधर बिखर गए थे। कोई भी क्या कहता की मां जी ने कितना अत्याचार किया था उस पर और घर का कोई सदस्य चाह कर भी विरोध नहीं कर पाया था।
बड़े भइया की मुलाकात मधु से एक होटल में हुई थी जो वहां के स्टाफ में दिखाई दी थी कमरों का चादर बदलते हुए। बड़े भइया के पूछने पर कुछ नहीं कहा था मां जी के खिलाफ।बस इतना ही कही थी कि,” भइया कब तक सब पर बोझ बन कर रहूंगी।जब पति ही मझधार में छोड़ कर चले गए तो कैसा परिवार किसका परिवार” कहते हुए आंसू पोंछते हुए काम में लग गई थी। बड़े भइया को सब समझ में आ गया था क्योंकि वो जानते थे की मां का व्यवहार मधु के साथ ठीक नहीं था लेकिन इतना बुरा करेंगी उसके साथ की उसके सिर से छत और अपनों का साथ तक छीन लेंगी ऐसा नहीं सोचा था।
चाय पीओ सुधाकर….” कहां जाएगी? चार दिन में दिमाग ठिकाने लगेगा तो उल्टे पांव आ जाएगी।”
ऐसा लग रहा था की मां को कोई पछतावा नहीं था और दुख था की घर की एक सदस्य के साथ बाहर कुछ भला बुरा भी हो सकता है।कैसी औरत हैं ये जिन्होंने एक औरत की बेबसी का फायदा उठाकर उससे उसकी यादें जो इस घर से जुड़ी थी छीन लिया था और ये भी जानना नहीं चाहा था की घर छोड़कर मधु कहां जाएगी और सबसे बड़ी बात की जब बड़े भइया वापस आएंगे तो उनको क्या जबाब देंगी और कैसे उनका सामना करेंगी।
मां,” मैं इस घर का पानी भी ग्रहण नहीं करूंगा तब तक जब तक आप मधु को मेरे सामने नहीं लाएंगी।” बड़े भइया का ग़ुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया था और मां जी बहुत बात घुमा चुकीं थीं।
सुधाकर,” एक दिन जरा सा टोक दिया था और मुंह फुलाकर घर छोड़कर निकल गई मधु” मां पूरी तरह से झूठ बोल रही थी और बड़े भइया झूठ सुनने के मूड में तो बिल्कुल नहीं थे।
” जो लड़की जुबान तक नहीं चलाती, उसने जरा सा टोका टाकी पर घर छोड़कर चली गई। अगर जा भी रही थी तो क्यों नहीं रोका आपने।आप घर की सबसे बड़ी सदस्य हैं तो आपकी जिम्मेदारी नहीं बनती है की छोटों को समझाएं अगर कोई गलत कर रहा है तो उसे रोकें” बड़े भइया के सवालों ने मां को परेशान कर दिया था।
बड़े भइया ने घर के सभी सदस्यों को बाहर बुलाया और सभी से सवाल किया की सच्चाई बताओ सब लोग क्यों की गलत करने से भी ज्यादा गलत में साथ देने वाला भी जिम्मेदार होता है।”
छोटी बहू ने डरते – डरते कहा कि,” मां जी ने बहुत परेशान किया था भाभी को और उन्हें इतना मजबूर कर दिया था की वो घर छोड़कर जाना पड़ा था उनको।हम सभी ने रोकने की कोशिश की थीं भइया लेकिन वो इतना परेशान हो चुकी थी कि बोली थीं की कैसे भी गुजारा कर लूंगी पर यहां नहीं रुक सकती हूं और आपके लिए कहा था की बड़े भइया से कहना मुझे माफ कर देंगे क्योंकि मैं उनकी इजाजत के बगैर घर से बाहर कदम रख रहीं हूं। अगर अब यहां रूकी तो मेरा आत्मविश्वास खत्म हो जाएगा और मैं अपना आत्मसम्मान पूरी तरह खो दूंगी।”
” चुप करो छोटी बहू…अपने काम से काम रखो। तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई सास और जेठ जी के सामने मुंह खोलने की” मां जी के झूठ से पर्दा उठाया जा चुका था। उनके पास कोई चारा नहीं था की वो चुपचाप बड़े भइया की बातों को सुनें।
बड़े भइया बिना खाए-पिए घर से निकल गए थे और मधु से माफी मांगी थी कि,” मैं तुम्हारा ख्याल नहीं रख पाया।अपने छोटे भाई से किया वादा नहीं निभा पाया।”
मधु को नौकरी करने दिया था क्योंकि आत्मनिर्भरता इंसान को सिर ऊंचा करके जीने की ताकत देती है लेकिन अपने साथ घर लिवा लाए थे।मधु भी बड़े भइया की कोई बात नहीं टालती थी। इसीलिए घर वापस आ गई थी और कुछ समय के बाद मधु का विवाह करा कर कन्यादान करके अपने फर्ज को अदा किया था।
मधु के माता-पिता नहीं थे। नानी ने पाला पोसा था और नानी के जाने के बाद बड़े भइया ही थे जिन्होंने भाई ही नहीं माता पिता जैसा रिश्ता निभाया था।
रिश्ते जन्मजात या खून के हों जरुरी नहीं है जो समाज द्वारा किसी बंधन के जरिए बंध जाते हैं वो भी मजबूत होते हैं।जो रिश्ता साफ – पाक हो वो जीवनपर्यंत चलता है। ऐसा रिश्ता बड़े भइया और मधु का भी था। मधु ने भी बड़ी ईमानदारी से निभाया था रिश्तों को।
प्रतिमा श्रीवास्तव नोएडा यूपी