अम्मी ! मैं परेशान हो चुकी हूँ, रोशन की यह समाज सेवा की आदत….. उफ़्फ़…… कहाँ और किससे हमारा निकाह कर दिया ….
क्या मसला है… नीलू …. तुम दोनों अच्छे डॉक्टर हो … तुम्हारी फूफी का बेटा है रोशन ….. तुम दोनों एक-दूसरे को जानते हो ……फूफा-फूफी का जमा जमाया क्लीनिक……थोड़ी बहुत ख़ैरात दे दी तो क्या कोई क़यामत आन पड़ी …
ओह अम्मी ….. बात ख़ैरात देने की नहीं…. जो मुझे पसंद है… उसमें रोशन की दिलचस्पी ही नहीं….. उसे मेरी बात नागवार गुज़रती है…..अब तो रोशन की बातें हमें इरिटेट करने लगी हैं ।
शहर के जाने-माने प्रिंटिंग प्रेस के मालिक असगर अली की बेटी डॉ ० नीलिमा का निकाह उसके फुफेरे भाई डॉ० रोशन अली से एक साल पहले हुआ था । वैसे रोशन की माँ डॉ० नरगिस ने अपनी भतीजी को बहू बनाने के लिए कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं दिखाई थी पर जब भाई ने बात छेड़ी तो वह इंकार न कर सकी ——-
बाजी, नीलू की एम० बी० बी० एस० पूरी हो चुकी और रोशन ने भी आपका क्लीनिक बख़ूबी सँभाल लिया…. तो क्यों न दोनों के रिश्ते के बारे में सोचें ….. बढ़िया जोड़ी रहेगी…… हर चीज़ बराबरी की…… वसीम भाई से बात चलाना …… रिश्ता हमेशा बराबरी का ही ठीक होता है ।
जी भाई जान …. आपने सही फ़रमाया…… हर चीज़ में बराबरी का रिश्ता है ….. वसीम को भला क्या एतराज़ हो सकता है….. वैसे एक दफ़ा भाभी जान से पूछ लेना ……
अरे भई , तुम्हारी भाभी ने ही तो रोशन से बात चलाने को कहा, सबसे बड़ी बात यह है कि दोनों बच्चे एक ही लाइन के हैं …… मैं तो सोचता था कि तुम्हारी भाभी अपने परिवार में नीलू के रिश्ते की बात चलाएगी पर रोशन का ज़िक्र छेड़कर, उसने तो मुझे हैरान कर दिया । वैसे तो सब अल्लाह की मर्ज़ी होती है ।
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बड़ी धूमधाम से चंद रोज़ में निकाह हो गया । दोनों ओर से केवल दुल्हा-दुल्हन को ही नहीं बल्कि नाते- रिश्तेदारों को भी क़ीमती सौग़ात भेंट की गई । शौक़, धन-दौलत , रूतबा हर एक चीज़ में बराबर की टक्कर थी दोनों घरानों में …… शहर भर में इस शादी की महीनों तक चर्चा रही ।
पर रोशन संजीदा नौजवान था , उसे झूठे दिखावे से ज़बरदस्त चिढ़ थी , उधर नीलू पूरी तरह से उससे अलग …… उसका मानना था कि अगर मरीज़ को सहूलियत दे रहे हैं तो उनसे पैसा वसूलने में कोई कोताही नहीं बरतनी चाहिए…….रोशन गरीब और मज़लूम लोगों से कभी फ़ीस नहीं लेता था…. कभी-कभी तो दवाइयाँ भी फ़्री में दे देता पर नीलू को पति की यही समाज सेवा नापसंद थी ——
ऐसे लोगों के लिए सरकारी अस्पताल हैं ना …… ख़ैरात बाँटते रहोगे तो हम एक दिन खुद सड़क पर बैठ जाएँगे…. फिर इन लोगों की देखा- देखी बाक़ी भी डिमांड करेंगे … … यार रोशन …. तुम पहले तो हरगिज़ ऐसे नहीं थे अगर पहले पता होता …..
तो मुझसे निकाह न करती …. यही ना ….. सच नीलू …. जिसके दिल में इंसानियत के जज़्बात ही न हो तो वह सिर्फ़ धन दौलत कमाने के लिए डॉक्टरी को एक पेशे के रूप में ही देखेगा । अगर दिन के हज़ारों कमा रहे हैं तो थोड़ी दुआ भी कमानी चाहिए….. फिर मैं सैंपल में आई दवाइयाँ ही तो बाँटता हूँ…. .. दवाइयों से ज़्यादा कभी-कभी इंसान को दो लफ़्ज़ों की ज़रूरत होती है ।
रोशन ! तुम्हें डॉक्टर नहीं, मौलवी होना चाहिए था….. अल्लाह क़सम….. तुम और तुम्हारी बातें मेरी समझ से परे है…..
धीरे-धीरे दोनों के रिश्ते में इतनी कड़वाहट बढ़ गई कि एक दिन नीलू हमेशा के लिये अपने मायके लौट आई ।
नीलू, ये कैसी बेतुकी बात करती हो……नामसमझी की भी हद होती है….. हमारी कौन सी मनमुराद पूरी हुई थी…… शुरू में सबको समझौता करना पड़ता है, मैंने भी किया …. तुम्हारी फूफी ने भी किया और देखो ….. अब सब ठीक है ।
ये तो मैं जानती हूँ अम्मी …..आप कितनी खुश हैं । छोड़िए इन बातों को ….. मैंने और रोशन ने……
तुम रोशन की तरफ़ से कोई मलाल मत रखो नीलू ….. मैंने और वसीम ने अस्पताल को डॉक्टरों का पैनल बनाकर चलाने का सोचा है.. इसमें हर एक डॉक्टर का हिसाब किताब अलग रहेगा….. सभी के हिस्से की तरह रोशन भी ……
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नहीं फूफी….. आपने ग़लत समझा , रूपये-पैसे की तो बात ही नहीं है….. असली मसला यह है कि एक बीवी और शौहर के रूप में हम खुश नहीं हैं……
दोनों के माँ-बाप ने बहुत कोशिश की कि समझा-बुझाकर इस रिश्ते को बचाया जा सके पर बेमेल विचारों के कारण दोनों को ही इस रिश्ते में कहीं कोई उम्मीद दिखाई नहीं दी ….. आपसी सहमति से तलाक़ की क़ानूनी कार्रवाई पूरी कर ली गई । रोशन के माता-पिता ने अपने इकलौते बेटे के स्वभाव को मद्देनज़र रखते हुए अपने अस्पताल में डॉक्टरों का पैनल तैयार करके चलाने का फ़ैसला किया ताकि अस्पताल भी नुक़सान में ना रहे ।
अस्पताल के नए क़ानून के तहत रोशन कमाई का कुछ हिस्सा ही मनमुताबिक खर्च कर सकता था ।
तक़रीबन एक डेढ़ साल बाद एक विदेशी महिला नर्स अपनी बीमारी के माध्यम से रोशन के संपर्क में आई । वह रोशन की ईमानदारी, तीमारदारी और क़ाबिलियत से इतनी प्रभावित हुई कि उसने अस्पताल के बड़े डॉक्टर यानि रोशन के माता-पिता से मिलकर वहीं काम करने की परमिशन ले ली क्योंकि उसके पास भारत में रहने का दो साल का वीज़ा था ।
एक साल बाद ही रोशन और सुज़ैन ने महसूस किया कि उन दोनों के विचारों में बहुत तालमेल है , एक-दूसरे के साथ में सुकून मिलता है और सबसे बड़ी बात कि ज़िंदगी जीने का दोनों का एक सा नज़रिया है ।
आख़िर में, दोनों ने अपने-अपने माता-पिता की रज़ामंदी से कोर्ट मैरिज कर ली । उधर नीलू ने भी अपने साथ अस्पताल में काम करने वाले एक डॉक्टर से विवाह कर घर बसा लिया ।
करुणा मलिक