उल्टी पट्टी पढ़ाना – एम पी सिंह : Moral Stories in Hindi

आशा की शादी कानपुर के जाने माने जूट कारोबारी अनिल गुप्ता के छोटे बेटे अमित से हुईं। दोनों भाई पिता के कारोबार में हाथ बटाते थे ओर एक ही घर में रहते थे। आशा की सास ओर उनकी बड़ी बहू घर संभालते थे। आशा के पीहर में उसके माता पिता ओर भाई भाभी थे। आशा की शादी को कुछ

ही समय हुआ था इसलिए उसकी मां का फोन रोज ही आता था ओर काफी देर तक बातें होती थीं। मां हर रोज एक ही बात दोहराती, सवेरे आराम से उठा कर, नहीं तो तेरी जेठानी तुझे रसोई में लगा देगी, कुछ भी बनाने को बोले तो कहना कि मुझे नहीं आता। कभी भूल कर भी कोई खाना स्वादिष्ट

मत बना देना, नहीं तो सारी उम्र का तुझे ठेका मिल जाएगा। हर दो तीन दिन में  बीमार होने का या सर दर्द का बहाना बनाकर सोते रहना,  सर दर्द नापने का कोई थर्मामीटर भी नहीं होता। जेठानी/

सास की हर बात में हां हां मत करना, नहीं तो तुझे नौकर बना कर रख देगे आदि आदि। आशा मां को कुछ नहीं बोलती, कहीं माँ नाराज न हो जाए और बस ठीक है, अच्छा, हां हां करती और अपने हिसाब से रहती। आशा समझ रही थी कि उसकी मां उसके घर में कुछ ज्यादा ही दखल दे रही हैं।

कुछ दिन बाद अमित ने आशा को बोला कि मैं बिजनेस के सिलसिले में 2 दिन के लिए दिल्ली जा रहा हू, तुम भी साथ चलो, दिल्ली घूम आना। आशा बोली, आप काम में व्यस्त रहेंगे और मैं बोर होती रहूंगी, बेहतर होगा कि मुझे थोड़े दिन के लिए मायके छोड़ दो।

आशा ने अपनी सासू मां से इजाज़त ले ली ओर अपनी मां को अपने आने की सूचना दे दी। अमित आशा को उसके घर छोड़ते हुए दिल्ली निकल गया। बेटी के आने की खबर सुन आशा की मां बहुत खुश हुई ओर भिन भिन प्रकार के भोजन बनाने की तैयारियों करने लगी। आशा ने घर पहुंच कर देखा

की भाभी सो रही है और माँ किचन मै खाना बना रही है और अपने आप बुड बुड़ा रही है। आशा ने मॉ से पूछा की भाभी को क्या हो गया है जो तुम खाना बना रही हो? आशा का पूछना हुआ और मॉ शुरू हो गई, ज़ब से तेरा आने का सुना है सर दर्द लेकर बैठी है, मै सुबह से सब्जी रोटी मे लगी हूँ और ये महारानी आराम से सो रही है, मुझ बूढ़ी का जरा भी खयाल नहीं। आशा बोली, रुको मै बुला कर

लाती हूं और अंदर बेड रूम मै चली गई। आशा के अंदर जाते ही ननद भाभी की जोर जोर से हसने की आवाजे रसोई तक आने लगी जिसे सुनकर माँ और भी गुस्से मै बेड रूम मै आ गई और बोली, बहु, अब तेरा सर दर्द ठीक हो गया जब सारा खाना बन गया? बहु चुप चाप मुँह नीचे करके बैठ गई

और आशा बोली, माँ तुम मुझे हमेशा कहती थी की सर दर्द का बहाना करके सो जाया कर, काम मत किया कर। भाभी को मैंने तुम्हारी सारी बातें बताई और ये सब करने के लिए बोला। तुम हमेशा मुझे उल्टी पट्टी पढ़ाती थी, आज उसी का एक छोटा सा नमूना भाभी ने मेरे कहने पर आपको दिखाया।

अगर मै अपने ससुराल मै ये सब करती तो मेरी सास भी ऐसे ही मुझे बोलती जैसे आप अपनी बहु को बोल रही थी। माँ, मै आपकी बेटी के साथ साथ किसी की बहु भी हूँ। आशा की माँ बोली, बेटा मुझे

माफ कर दो, मै बेटी के प्यार मे पढ़कर अपनी ही बेटी को उल्टी पट्टी पढ़ा कर अनजाने मे उसका घर बिगड़ने चली थी। आशा की भाभी बोली, मॉ जी, मुझे माफ कर दो, ये सब मैंने आशा के कहने पर ही किया था।

माँ बाप को चाहिए की औलाद को हमेशा अच्छे संस्कार ही दें।

लघुकथा प्रतियोगिता

उल्टी पट्टी पढ़ाना

लेखक

एम पी सिंह

(Mohindra Singh)

स्वरचित, अप्रकाशित

साप्ताहिक विषय – उल्टी पट्टी पढ़ाना

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