उफ़्फ़ पहाड़ी रास्ते – करुणा मलिक : Moral Stories in Hindi

सीमा को पहाड़ों से ख़ास ही लगाव था । जब विवाह तय होने के पंद्रह दिन बाद ही उसे पता चला कि उसके पति अखिल का ट्रांसफ़र हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में हो गया है तो उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा । ट्रांसफ़र की खबर सुनते ही मम्मी बोली —-

 ले सीमा , अब कम से कम तीन साल तो पहाड़ों में रहकर खूब मन की निकालना । 

वाह दीदी! हनीमून के लिए कहीं बाहर जाने की भी ज़रूरत नहीं। 

इन्हीं हँसी-मज़ाक़ के बीच सीमा और अखिल की शादी हो गई और एक दो हफ़्तों के बाद वो अपने पति अखिल के साथ गाड़ी में बैठ अपने मनपसंद पहाड़ी रास्तों पर निकल पड़ी । मैदानी इलाक़ों को पार करते ही जैसे टेढ़े- मेढ़े रास्ते शुरू हुए तो सीमा का उत्साह देखते ही बनता था । इधर से उधर डोलती सीमा को  देख अखिल ने छेड़ा——

अब पता चला ….. इन घुमावदार सड़कों पर एक मिनट सीधे नहीं बैठ सकते …. थक गई ना। ?

नहीं तो…. मज़ा आ रहा है…. सीधी सड़क पर तो बस सो जाओ… 

शाम तक वे अपने गंतव्य तक पहुँच गए । सीमा तो जैसे सपनों की दुनिया में पहुँच गई । सुबह ही खिड़की खोलती तो दूर पहाड़ों पर सफ़ेद बर्फ़ को देख ख़ुशी से झूम उठती । मम्मी-पापा भी फ़ोन पर उसकी चहकती आवाज़ को सुन निश्चिंत हो गए । धीरे-धीरे  नई शादी की खुमारी उतरी और अब अखिल अक्सर सीमा को कह देता —-

सीमा , तुम दोपहर में ख़ाली रहती हो तो बाज़ार जाकर सब्ज़ी तथा दूसरा सामान ले आया करो ।

ब….स… में  .. नहीं अखिल, मैं खुद बैठूँगी या सामान को पकडूँगी ।  शाम को गाड़ी से चलना ना ।

यार … बैंक से आकर दुबारा जाने का मन नहीं करता । प्लीज़ तुम आदत बनाओ । 

अगले दिन सीमा ने बस पकड़ी और बाज़ार तक पहुँच गई पर लौटते समय इतनी भीड़ थी कि एक हाथ से थैला और एक हाथ से पिलर पकड़कर रखने में उसे नानी याद आ गई । घर पहुँच कर सोचने लगी कि पहाड़ों की ज़िंदगी उतनी भी आसान नहीं जितनी वह समझती थी । 

दो/ चार दिन बाद फिर बाज़ार जाना पड़ा क्योंकि छोटे से गाँव से मुख्य क़स्बे तक गिनी चुनी बसें चलती थी इसलिए सीमा को  काफ़ी भीड़ वाली बस में ही चढ़ना पड़ा । वह बड़ी मुश्किल से चढ़ तो गई पर जैसे ही अचानक मोड़ पर तेज झटका लगा , वह  तीन/ चार सीट पीछे एक व्यक्ति की गोद में जा बैठी ।

बेचारी सीमा सँभल पाती कि उससे पहले ही आसपास कुछ खड़े और कुछ सीट पर बैठे व्यक्ति उसे घूर रहे थे , सीमा पानी-पानी हो गई ।  बिना पीछे देखे वह तेज़ी से आगे की ओर आई और बस से उतर गई । 

उसके बाद तो उसने गाँव की दुकान से ही सब्ज़ी वगैरहा लेने में अपनी भलाई समझी 

( मुहावरा- पानी-पानी हो जाना पर आधारित सत्य घटना )

करुणा मलिक

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