टूटती साँसे – नीरज श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

बूढ़े कदम मंजिल को ओर बढ़ रहे थे। दोनों हाथों से साइकिल की हैंडिल संभाले सुदेश मन ही मन कुछ सोच रहा था। साइकिल पर हर प्रकार के खिलौने लदे हुए थे। देखते ही देखते सुदेश अचानक एक चौराहे पर रुक गया और एक तरफ खिलौनों को नीचे उतारने लगा। शायद उसकी मंजिल आ चुकी थी।

            सुदेश खिलौने बेचता था और उसी से उसका गुजारा चलता था। घर पर बूढ़ी पत्नी थी लेकिन वह बीमार रहा करती थी। मिलाजुलाकार पति-पत्नी ही एक दूसरे के टूटती सांसों का सहारा थे। 

खिलौनों की दुकान सजाते-सजाते सुदेश की आँखें भर आयी थी। शायद वह अभी भी कुछ सोच ही रहा था। सुदेश बुदबुदाते हुए बोला – “क्या कमी रह गई थी हमारी परवरिश में? क्यों वो हमें छोड़कर चला गया? क्या उसे हम पर थोड़ी भी दया नहीं आई?? नहीं, नहीं, राजू ना समझ है। वह भले ही हमें भूल जाए पर हम उसे कैसे भुल सकते हैं। आखिर वह हमारी औलाद है, हमारे कलेजे का टुकड़ा है।”

       सुदेश ख्यालों में खोया ही था कि अचानक वह अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ और सामने की ओर भागा। शायद उसे किसी अनहोनी का अंदेशा हो चुका था। सड़क के बीचों बीच तीन से चार साल का बच्चा खड़ा था। शायद वह किसी को खोज रहा था।

               अभी सुदेश ने उस बच्चे को अपने आलिंगन में पकड़ा ही था कि एक जोर के टक्कर के साथ सुदेश सड़क के दूसरे किनारे पर जा गिरा। सुदेश को टक्कर कार ने मारी थी। बच्चा सुदेश के गोद में सुरक्षित था। पर सुदेश के सिर से खून बह रहा था। उसके कमर और पीठ में भी चोट आयी

थी। जो उसके कराहने की आवाज से साफ पता चल रहा था। देखते-देखते सुदेश को चारों तरफ से भीड़ ने घेर लिया। कार वाले का तो कोई अता पता न था। शायद वह डर के मारे भाग चुका था।

              कुछ लोग सुदेश से उसका हाल समाचार पूछ ही रहे थे कि तभी भीड़ को चीरता हुआ लगभग तीस, बत्तीस साल का एक युवक सुदेश के पास पहुँचा और उस बच्चे को गोद में लेते हुए चिल्लाने लगा – “हाय, मेरा बच्चा, मेरा बच्चा। राहुल तू ठीक तो हैं ना?”

            उस शख़्स को देखते ही सुदेश के चेहरे पर मुस्कान आ गई थी। यह शख़्स कोई और नहीं बल्कि सुदेश का बेटा राजू था और सुदेश ने जिसकी जान बचाई थी, वह उसका पोता। 

         राजू ने अपने बेटे को चूमते हुए बोला – “भगवान का लाख-लाख शुक्र है कि तुम ठीक हो।” तभी भीड़ से एक आदमी ने कहा कि शुक्रिया अदा करना है इस बाबा का करो। जिन्होंने तुम्हारे बेटे की जान बचाई है। राजू जब बूढ़े की ओर घूमा तो उसकी आँखें आँसूओं से डबडबा गई। 

       राजू रोते हुए बोला – अरे, पापा आप! पापा मुझे माफ़ कर दो। मैंने आपको छोड़कर बहुत बड़ी गलती की है। बेटे को खोने का दर्द क्या होता है। आज मुझे पता चल गया। मैं आपको छोड़कर आया था ना इसलिए शायद ऊपर वाला मुझे यह सबक सिखाना चाहता था। मुझे माफ कर दो, अब मैं आपका साथ कभी नहीं छोडूंगा।

लेखक : नीरज श्रीवास्तव

पता     : मोतिहारी, बिहार

सीख : 

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि :  

1. हमें कोई भी गलत कर्म नहीं करना चाहिए क्योंकि हमारे कर्मों का फल हमें अवश्य मिलता है। 

2. औलाद कितना बुरा क्यों ना हो? पर हर माँ बाप के लिए वह कलेजे का टुकड़ा होता है।

नोट : कहानी कैसी लगी। प्रतिक्रिया अवश्य दीजियेगा। आपकी समीक्षा हमारे लिए अमूल्य निधि है। धन्यवाद।

 ये कहानी मैंने पहले किसी प्रतियोगिता के लिए लिखा था। जिसमें मुझे द्वितीय स्थान प्राप्त हुआ था। मैं यह कहानी आपके मंच पर पब्लिश करने ले लिए भेज रहा हूँ। कृपया इसे भी अपने मंच पर स्थान दें।  धन्यवाद 🙏

कहानी : टूटती साँसे।

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