सुबह से ही विजय बाबू सिर दर्द से परेशान थे। दोपहर होते-होते बुखार भी आ गया। गाड़ी चलाकर डाॅक्टर के पास जा नहीं सकते थे। कैब बुलाकर जा सकते थे, लेकिन आलस बस डाॅक्टर से फोन पर
ही बात कर लिए। डाॅक्टर साहब परिचित थे। मौसमी बुखार था। घर में विजय बाबू के साथ एक नौकर रहता था। उसे ही दवा लाने के लिए भेजने वाले थे,उसी समय उनका दोस्त तिवारी जो उसी काॅलोनी में रहता था, उनसे मिलने आया। उनकी हालत देखकर थोड़ी नाराजगी भी दिखाई।
“कहते हो दोस्त और दोस्त का कर्तव्य निभाने का मौका नहीं देते हो। एक फोन कर देते मैं सुबह ही आ जाता।”
“ऐसी बात नहीं है दोस्त। डाॅक्टर से बात हो गयी है। मौसमी बुखार बताया है। ये दो दवाई लेने को बोला है।”
“मैं अभी दवाई लेकर आता हूँ।”
तिवारी जी दवाई लाने चले गये और विजय बाबू अपने अतीत के गलियारे में भ्रमण करने लगे।
चार साल पहले ऐसे ही मौसमी बुखार से पीड़ित थे। उसी साल पत्नी भी जीवन के सफर में अकेला छोड़ चली गयी थी। जैसे ही बड़े भाई साहब को पता चला दूसरे ही दिन सुबह-सुबह भाभी के साथ पहुँच गये। दस दिन मेरे पास रहे। मेरी खूब देख-भाल हुई। बड़े भाई-भाभी माँ-बाबूजी जैसे
स्नेह करते हैं, मुझे ऐसा विश्वास था। मेरी पत्नी शीला जब शादी के पाँच साल बाद भी माँ न पायी थी तो बड़ी दुखी रहती थी। न जाने कितने हकीम डाॅक्टर, ओझा-गुनी के पीछे भागती रहती थी।भाभी ने अपने मुन्ना को शीला की गोद में डाल दिया और कहा-
“आज से मुन्ना तुम्हारा बेटा है।”
मुन्ना के साथ शीला भी खुश रहने लगी। इसी बीच मेरा स्थानांतरण हो गया। मुझे दूसरे शहर जाना पड़ा। पत्नी के साथ मुन्ना भी मेरे साथ गया। परमात्मा की कृपा स्थान का फेर था या मुन्ना को प्यार करते-करते ममता ने अंगड़ाई ली और शीला गर्भवती हुई। इस खुशी को हमने सबसे पहले भैया
-भाभी के साथ साझा किया। जिस गर्मजोशी की उम्मीद थी वैसा अनुभव तो नहीं हुआ, फिर भी दोनों ने खुशी जाहिर की। दो- तीन महीने बाद ही भैया आकर मुन्ना को अपने साथ ये कहकर ले गये कि बहू को अभी आराम की जरूरत है। मुन्ना जाना नहीं चाहता था और न शीला जाने देना चाहती थी फिर भी मुन्ना चला गया। हफ्ता भर शीला उसके लिए रोती रही।…
वक्त गुजरता गया और एक प्यारी सी बिटिया शीला की गोद में किलकारी भरने लगी। शीला की देखभाल के लिए उसकी बड़ी बहन आई थी। भाभी ने भी आकर छठ्ठी-संस्कार में बढ़-चढ़कर भाग लिया।…
गुड़िया छ महीने की हो चुकी थी। हमलोग होली में अपने पैतृक घर भैया-भाभी के पास गये। बड़े ही उल्लासपूर्ण माहौल में होली का त्योहार मना। भैया-भाभी का प्यार समेटे हमलोग वापस आ गये। अब तो शीला हर त्योहार भाभी के साथ ही मनाना चाहती थी। होली-दिवाली से लेकर करवा चौठ तक।
जब जाते थे बड़ों का आशीर्वाद और प्यार लेकर लौटते थे, लेकिन बीच-बीच में भाभी का यह कह देना कि गुड़िया तो बेटी है शादी के बाद ससुराल चली जायेगी। मुन्ना ही चाचा-चाची के बुढ़ापे का सहारा है-शीला के दिल को कचोट देता था, लेकिन बात मजाक में निकल जाती थी। कालांतर में मुन्ना भी मेरे
ही पास रहकर पढ़ाई करने लगा। गुड़िया और मुन्ना सगे भाई- बहन के तरह अपनी- अपनी पढ़ाई में लग गये। अपने लक्ष्य को प्राप्त किए। मुन्ना की नौकरी रेलवे में लग गयी और काॅलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद गुड़िया की शादी हो गयी। लड़का गुड़िया की पसंद का ही था। कितना सुख संतोष और
प्रेम था हम दोनों भाइयों के परिवार में। अचानक न जाने किसकी नजर लग गयी। मामुली बीमारी में पत्नी ने साथ छोड़ दिया। घर काटने को दौड़ता था। एक साल की नौकरी बची थी। सोचा था, भैया तो यहाँ आकर नहीं रह सकते हैं मैं ही वहाँ जाकर रहूँगा।
दो साल पहले मुन्ना बैंक से लोन लेने के लिए गारंटी के तौर पर मेरे घर का कागजात लेना चाहा, लेकिन वह घर हमने गुड़िया के नाम कर दिया था। सारी पैतृक सम्पत्ती मुन्ना के नाम से था। जैसे ही भैया-भाभी को पता चला एक झटके के साथ मुझे पराया कर दिया। मेरी गलती यही थी कि मैं ने भैया से पूछा नहीं था। मुझे विश्वास था कि भैया को इसमें कोई आपत्ति नहीं होगी। आज भैया मेरा फोन भी नहीं उठा रहे हैं। तो क्या इतने दिनों का प्यार दिखावा था? यह स्नेह सम्पत्ती के लिए था?
इन्हीं ख्यालों में इस तरह डूबे थे कि पता ही नहीं चला कि दोस्त दवाई और पानी का गिलास लिए कब से खड़ा है।
स्वरचित
पुष्पा पाण्डेय
राँची,झारखंड।
विषय- सिर्फ दिखावा से काम नहीं चलेगा