तमाशा – लतिका श्रीवास्तव :

Short Story in Hind

शहर का व्यस्ततम चौराहा….शाम का समय। भारी भीड़,आवा जाही का शोर,एक के बाद एक वाहनों का पैदल यात्रियों का अनवरत तांता लगा था। वहीं फुटपाथ पर एक स्त्री बेहद अव्यवस्थित वेशभूषा जीर्ण वस्त्रों से अपने तन को ढंक पाने में पूर्ण अक्षम हालात की मारी निढाल पड़ी थी।आती जाती  छिद्रान्वेषण करती तीखी नजरों से आहत उसकी #आँखें नीची  हो जाती थीं।

प्रत्येक आने जाने वाला उसे देख फूहड़ कमेंट कर रहा था।

शर्म और हया बेच खाई है।बीच चौराहा ही मिला था अंग प्रदर्शन कर भीख मांगने  के लिए ,छी छी दूर हट आज का दिन खराब कर दिया जितने मुंह उतनी बातों का बाजार उसके चारों तरफ गर्म हो रहा था।

ऐसी ही स्त्रियों के कारण सारी स्त्री जाति की आंखे नीची हो जाती हैं ।अभी कोई छेड़छाड़ की हरकत होगी तो पूरा लांछन दूसरे पर आ जाएगा एक धनाढ्य महिला ने अपने बेटे के साथ कार से उतरते हुए ताना मारा तो बेबस स्त्री की आँखें जमीन में गड़ गईं ।

तभी एक युवक तेजी से आया और उस धनी महिला के कांधे पर लहरा रहे कीमती शॉल को खींच कर  उस स्त्री को उढ़ा दिया।

तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरी मां को हाथ लगाने की सरेआम शॉल खींच लिया धनी महिला का बेटा आपे से बाहर हो गया।

और…तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरी मां की बेबसी का मजाक उड़ाने की सरेआम तमाशा बनाने की युवक ने भी तेजी से प्रत्युत्तर दिया।

फिर उस महिला की तरफ मुड़ा ” सुनिए,स्त्री जाति की आंखें नीची तब हो जाती हैं जब आप जैसी स्त्रियां एक स्त्री की बेबसी की खिल्ली उड़ाती हैं अगर अपने कंधे पर पड़ा ये शॉल ही आप इस स्त्री को दे देतीं तो ना आपको ना इसे आँखें नीची करनी पड़ती!!

अब उस महिला की #आंखे नीची हो गईं थीं।

क्या तुम इस स्त्री के पुत्र हो उसने जाते जाते पूछा ।

नहीं …पर अभी यह मेरी मां है युवक ने दृढ़ता से कहा और अपने थर्मस से पानी निकालकर स्त्री को पिलाने लगा।

भीड़ छंटने लगी थी।तमाशा खत्म हो गया था।

#लघुकथा

आँखें नीची होना#लज्जित होना(मुहावरा आधारित लघुकथा)

लतिका श्रीवास्तव

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