अरे भाई सुरैया कहां हो तुम सुबह से चाय का रास्ता देख रहा हूं लेकिन अभी तक तुम्हारा कुछ अता- पता ही नहीं है।पहले तो तुम जॉब करती थी तो व्यस्त रहती थी.. मन को तसल्ली थी लेकिन अब तो रिटायर हो गई हो तो लगता है और भी ज्यादा बिजी हो गई हो।
अरे क्या करूं आज नींद लग गई ..विभु रात को सोने नहीं देता है ,बार-बार जगाता है तो नींद पूरी नहीं हो पाती है।
अरे तो उसकी मां को संभालने दो ना वह देखेगी अपने बच्चे को..
अब उसे इतना अनुभव नहीं है ना ..इसके अलावा वह सारे दिन जॉब करती है तो थककर सो जाती है। कई बार बच्चा गीले में ही पड़ा रहता है।
वह तो कहती है कि डायपर लगा देते हैं पर डायपर से उसे रैशेज हो जाते हैं जिससे जलन होने से वह पूरे दिन चिड़चिड़ाता रहता है इसलिए मेरा मन नहीं मानता तो मैं उसको अपने पास सुला लेती हूं।
शालू मुझे मटर दे जा.. छीलकर रख देती हूँ और पालक भी साफ कर दूंगी शाम के लिए ..अभी फ्री बैठी हूं।
हे भगवान!! जाने किस मिट्टी की बनी हो तुम.. जरा देर शांति से नहीं बैठ सकतीं। कोई बात करना चाहो तो वह भी नहीं कर सकते।
कहिए न सुन रही हूं मैं.. हाथ ही तो बिजी हैं, कान आपकी बातें सुनने के लिए बिल्कुल फ्री हैं.. सरिता ने मुस्कुराते हुए कहा।
तभी आदित्य की आवाज सुनाई देती है..मां जरा यहां आना किचन में.. कुछ जरूरी काम है।
हां क्या काम है??
बहुत दिनों से आपके हाथ के ढोकले नहीं खाए.. आज बना दो न मेरी प्यारी मां .. आपके हाथों जैसा स्वाद शालू के हाथ में नहीं है।
हुंह.. चमचागिरी में तो जवाब नहीं है इसका.. अपने मतलब के लिए कितना मीठा बन जाता है यह.. मुंह बिचकाते हुए उसके पिता मन ही मन बड़बड़ाने लगे।
जरा देखेंगे आप कौन घंटी बजा रहा है?
बिल्कुल देखेंगे.. भला आपका आदेश कैसे टाल सकते हैं। अब यही काम तो रह गया है हमारे पास.. चैन से अखबार भी नहीं पढ़ सकते.. कभी यह कर दो कभी वह कर दो।
ओफ्फो..जरा सा उठना भी इन्हें ऐसा लगता है मानो कौन सा बड़ा काम बता दिया है .. जब तक ऑफिस में लगे रहते थे तब तक ही ठीक थे अब तो हिलना भी दुश्वार है।
लो तुम्हारा परम प्रिय सुरेश माली आया है अब दो घंटे बागवानी में बिताएंगी मैडम..
आपके लिए सेवंती की पौध लाया हूं मैडम ,कहां लगानी है आप बता दीजिए।
अभी आती हूं..आप भी चल रहे हैं क्या? बगीचे में चलकर कुछ काम करते हैं …देखते हैं पहले जिन फूलों के पौधे बोए थे वह निकले या नहीं।टमाटर भी लग रहे थे देखो पक गए हों तो चलो टमाटर तोड़ लाते हैं।आज जूस के लिए लौकी भी नहीं है अपनी बेल में लगी होगी तो उसको भी ले आते हैं।
तुम फिर शुरू हो गईं..अरे चैन से बैठो ना थोड़ी देर मेरे पास.. रिटायरमेंट के बाद हमने सोचा था कि हम सारा समय खाली अपने साथ अपनी खुशी से गुजरेंगे।
अरे अभी भी तो अपनी खुशी से ही गुजार रहे हैं हम सारा समय ..इसमें हमारे साथ कौन सा बंधन है। #रिटायरमेंट का मतलब होता है अपनी मर्जी से अपने समय को जीना और मुझे तो इसी में खुशी मिलती है तो मैं जी रही हूं ना.. इससे बड़ी खुशी कहां है मेरे लिए।
अच्छा तुम ही बताओ अगर बच्चा रो रहा हो मैं उसको न संभालूं तो क्या अच्छा लगेगा या बहू जल्दी-जल्दी काम कर रही हो और मैं सब्जी भी ना उसको काट कर दूं तो क्या उसको अच्छा लगेगा। वह जल्दी-जल्दी बर्तन पटक के भागेगी या हमको स्वादिष्ट खाना नहीं दे पाएगी तो हम शिकायत करेंगे.. यह ठीक रहेगा क्या?
घर में खींचतान हो यह मैं नहीं चाहती ..इससे अच्छा है ना कि हम साथ में मिलजुल कर काम करें और हम साथ में एक घर में ही तो हैं फिर तुमको ऐसा क्यों लगता है कि मैं बिजी रहती हूं या इसे फुर्सत नहीं कहते ..अरे अपने शौक पूरा करना ही तो हमारा सपना था ।मेरा शौक तो यही है ना कि मेरा परिवार खुश रहे तो वह मैं कर रही हूं।
वैसे भी इस उम्र में जितने हाथ – पैर चलते रहेंगे उतना ही अच्छा रहेगा। अगर बैठ गए तो जकड़ कर रह जाएंगे फिर सबका मुंह ताकते रहो कि कोई हमारी सेवा कर दे।
#रिटायरमेंट नौकरी से होता है जनाब जिंदगी से नहीं और एक स्त्री कभी रिटायर नहीं होती उसके लिए उसका खुशहाल घर – परिवार ही उसकी जिंदगी होता है। जब घर में सुख – शांति होगी तभी सही अर्थों में रिटायरमेंट का सुख ले पाएंगे हम।
समझ गए हम अच्छी तरह से कि आगे से कभी तुम्हारे व्यस्त होने की शिकायत करने की हिम्मत नहीं करेंगे वरना तुम हमारी ही क्लास लगा दोगी और अब हममें लेक्चर सुनने की सामर्थ्य नहीं है.. हंसते हुए पराग ने कहा।
चलो अच्छा है देर आए दुरुस्त आए
#रिटायरमेंट
कमलेश राणा
ग्वालियर