सोच – परमा दत्त झा

आज राजेश मिश्र खुशी से भरे हुए थे कारण बहू राधा ने इनको मौत के मुंह से छीन लिया था।

हुआ यह कि राजेश बाबू एक शिक्षक थे और बड़ी मुश्किल से बेटे को बी टेक ,एम बी ए कराया था।बेटा पढ़ाई के दौरान एक विजातीय लड़की से प्रेम करने‌ लगा था और इनके मना करने तथा लाख समझाने पर भी नहीं माना और विवाह कर लिया था।

सुनो अपने समाज की लड़की से शादी कर बेटा -यह आखिरी बार समझाते हुए बोले थे।

पापा मैं सात साल से उसे जानता हूं ,उसके साथ मैं सुखी रहूंगा।-बेटे के इस जबाब ने निरूतर कर दिया।

फिर जब दिल्ली में प्रेम विवाह और अदालती शादी कर आया तो ये और पत्नी टूट गये।

एक ही लड़का ,वह भी प्रेम विवाह का शिकार। जरूर जादू टोना किया है।

साधारण किसान और प्राइवेट शिक्षक श्री राजेश मिश्र गांव में रहने लगे। औलाद से मतलब हटा लिया।अब इस ग़म से पत्नी जो दिल की मरीज थी झेल नहीं पाई और गुजर गयी।

आज राजेश बाबू अकेले तेरहवीं निपटाए और विधाता की लीला समझ रहने लगे।एक दाई लीला थी जो दोनों समय खाना बना देती थी। साधारण खाना खुद भी बना लेते थे।बहू बेटा दूर थे और यह जानबूझकर करते थे। पत्नी की मौत का इसे ही जिम्मेदार मानते थे।

मगर होनी पर कोई जोर नहीं चलता और चार साल से ज्यादा शादी के हो चुके थे।एक पोती भी हो चुकी थी जिसे देखा तक नहीं था।हां पढ़ाने के लिए लिया गया बीस लाख का कर्ज़ पाट चुके थे और जमीन भी दो बीघे खरीद लिए थे।

सो उस दिन अचानक ही सीने में दर्द हुआ तो लोगों ने फोन लगा दिया और डा कृपा कांत पाठक के पास ले गए।

डा का इलाज चल रहा था कि बहू राधा आयी और उठाकर दिल्ली गंगाराम अस्पताल में भर्ती कराया।

फिर तो सही इलाज हैऔर सेवा से ये पंद्रह दिन में पूरा ठीक हो गये।बस इलाज के दौरान बहू बेटा सेवा करते रहे।समय पर दलिया और जो भी डाक्टर कहता ये करते। परिणाम आज ये स्वस्थ्य हैं। डाक्टर के पास से घर आये तो छोटी पोती बाबा करते पास आ गई।बीमारी में भी पकड़ सीने से लगा लिया।वह भी पास सट जाती।

अब पंद्रह बीस दिन से ज्यादा इन्हें अस्पताल से आये हो गया था और दुबारा चेक अप में पूरा ठीक बताया और आज ये आराम से इलाज करवा रहे थे।

प्रेम सबसे बड़ा औषधि है जो पोती और बहू से मिल रहा था।

आज पत्नी की बरसी थी और बेटा सारा काम विधिपूर्वक कर रहा था।एक फूल माला भी चढ़ा हुआ था।

अब ये खुशी से गदगद हो गये और चिल्लाते हुए बोले-देखो भाग्यवान इसने कितनी अच्छी सेवा कर मुझे मौत के मुंह से निकाला।बहू बहुत अच्छी है।देख लो-हर लव मैरिज खराब नहीं होता।तब तक पोती बाबा ताय करती आ गयी तो ये उसे गोद में उठा कर रोने लगे।यह आंसू खुशी के थे जो दिल का मैल धो रहे थे।

“तुम अभागी रही जो सिर्फ दुख झेला , मुझे देख मैं सुख ले रहा हूं। तुम बस दोनों को आशीर्वाद दो कि वे आगे बढ़े।मेरी चिंता मत करना। भगवान तुम्हारी आत्मा को शांति दे।”

तब तक बेटा आकर पापा ब्राह्मण सब आ गये हैं बोला तो आंसू पोंछते हुए बाहर आ गए।
#दिनांक-29-9-2025

#रचनाकार-परमा दत्त झा, भोपाल।

शब्द संख्या -कम से कम,700

(रचना मौलिक और अप्रकाशित है इसे मात्र यहीं प्रेषित कर रहा हूं।)

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