वृंदा, कल समय पर तैयार हो लेना , मानव का रिश्ता तय हो गया और बहू को अंगूठी पहनाने चलना है तुम्हें और बुआ जी को हमारे साथ ।
भाभी, मम्मी जी को कह दूँगी, अभी तो वो मंदिर गई है पर माफ़ करना , मैं नहीं जा पाऊँगी …..
क्यों….. नहीं-नहीं चलना है । होने वाली चाची सास के बिना हम नहीं जाएँगे । विपिन भैया तो आजकल बिज़नेस के सिलसिले में सिंगापुर गए हैं, पर तुम्हें, बुआ जी को और राधिका तथा आयुष को ज़रूर चलना है । तुम्हारे भैया तुम्हें बुआ जी और बच्चों को लेने सुबह आ जाएँगे ।
अरे भाभी , मेरी बात तो सुनें…..
मैं कुछ नहीं सुनती, बस तैयार रहना … फ़ोन रखती हूँ ।
इतना कहकर आरती ने अपनी बुआ सास की बहू वृंदा के साथ बड़े अपनेपन से जेठानी होने का हक़ जताया । तभी उनके पति भावेश आए और होने वाली बहू के लिए जाने वाले सामान के बारे में पूछते हुए आरती से बोले——
आरती! मैं गाड़ी में पेट्रोल डलवाने जा रहा हूँ , देख लो अच्छी तरह , कोई सामान रह गया हो तो अभी ले आऊँगा वरना बाद में मुझे मत कहना ।
मैंने तो अपने हिसाब से सब कर लिया, अब किससे पूछूँ, ना देवर, ना जेठ ना ननद …..कभी-कभी तो अकेली पड़ जाती हूँ । पड़ोसियों से पूछो तो सारी बात बताने के बाद कह देते हैं——
….. वैसे हर घर के अलग-अलग रिवाज होते हैं, एक बार घर के बड़ों से पूछ लेना । भई , कोई भूल-चूक ना हो जाए ।
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ले देकर एक बुआ जी हैं , आधे से ज़्यादा समय तो मंदिर में गई मिलती हैं, कभी फ़ोन नहीं उठाती । कभी कुछ तो कभी कुछ…अपने मायके में पूछो तो जवाब आता है—-
आरती , अपनी ससुराल के रीति-रिवाज के हिसाब से कर । मायके के रिवाज मत लगाना । पहली शादी है तेरे घर में….गलती मत कर बैठना ।
बस मेरा तो दिल काँप जाता है जी ! इसलिए सब बुआ जी से ही पूछकर कर रही हूँ….. वो तो अच्छा है कि कम से कम वे अपने मायके के रिवाज जानती है वरना पगला जाती मैं तो ।
अच्छा….अच्छा बौखलाओ मत । कुछ भूल भी गए तो वहाँ से ख़रीद लेंगे ।
अगले दिन आरती के पति अपने घर से मात्र एक घंटे की दूरी पर रहने वाली अपनी बुआ और उनकी बहू तथा पोते- पोती को लेकर आ गए , उधर आरती के दोनों भाई-भाभी भी तय समय के अनुसार उनके घर पहुँच गए । चलने से पहले आरती ने फिर से कहा—-
मैं भूली तो नहीं ना कुछ? बुआ जी, चलने से पहले कुछ करना तो नहीं?
अपने देवी-देवताओं को नमन करके चलना , बहू ! सब काम राज़ी-ख़ुशी हो जाए । ये मानव क्यूँ इतना सजा- धजा खड़ा है?
दादी, मैं भी तो चलूँगा आपके साथ….है ना मम्मी?
बहू, हमारे मायके में तो यह रीत नहीं थी , तूने नई बनाई क्या ? शादी से पहले….
वो दरअसल बुआ जी, आजकल लड़के जाने लगे हैं ना तो ….
जो शादी से पहले मानव को लेकर जाएगी तो मैं तो ना जाऊँगी बहू ! लड़की वालों के घर में भी बड़े-बुजुर्ग होंगे, क्या सोचेंगे भला कि लड़का अपनी ही शादी पक्की करने पहुँच गया । भावेश! मेरे लिए टैक्सी मँगवा दे , वृंदा और बच्चे तुम्हारे साथ चले जाएँगे ।
चलने दो ना मम्मी जी! थोड़ा बहुत तो जमाने के हिसाब से भी कर लेना चाहिए ।
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देख वृंदा, और सारी बात , पर रीति- रिवाजों के साथ यूँ मज़ाक़ , मुझे पसंद नहीं । एक तरफ़ तो ये आरती कह रही कि बुआ, अपने मायके के क़ायदे- क़ानून के अनुसार बताओ और दूसरी तरफ़ शादी से पहले लड़के को ससुराल में ले जाने को तैयार कर दिया , चला दिया ना दोगला रिवाज ।
ख़ैर मानव एक समझदार लड़का था । बात उलझती देख खुद ही बोल उठा —-
मम्मी, मैं तो अपनी दादी के हिसाब से चलूँगा । दादी ने कह दिया कि शादी से पहले लड़का नहीं जाता तो उनकी बात मानी जाएगी ।
इस तरह मानव को छोड़कर सब लोग रवाना हो गए । लड़की वालों ने बड़े ही शानदार तरीक़े से स्वागत सत्कार किया । चाय नाश्ते के बाद दादी ने आरती को हुक्म दिया—-
आरती , अब शुभ मुहूर्त है इसलिए भोजन से पहले ही बहू की अंगूठी की रस्म कर लो । पंडित जी भी आ चुके हैं ।
बुआ जी का आदेश पाते ही आरती ने अपनी समधिन से होने वाली बहू राशि को लाने के लिए कहा और खुद सामान निकाल कर , साड़ियाँ, सोने का सेट और श्रृंगार का सारा सामान सजा दिया ।
पंडित जी ने मंत्रोचार आरंभ किए तथा आरती ने वृंदा के साथ मिलकर राशि के कंधों के चारों तरफ़ साड़ी लपेटकर लाल चुनरी ओढ़ाई, चूड़ियों से कलाइयाँ भर दी , माथे पर बिंदी लगाई तथा चमचमाता सोने का हार , कानों के झुमके और उँगली में अंगूठी पहनाकर , कान के पीछे नज़र का टीका लगा दिया । बहू की गोद में मिठाई का डिब्बा और नारियल रखकर आरती ने राशि से कहा——
बेटा, बुआ जी हमारे घर की सबसे बड़ी हैं , चलो उनका आशीर्वाद ले लो ….
तभी लड़की की बुआ ने आगे बढ़कर आरती से कहा—
बहनजी , राशि की माँग में सिंदूर तो लगा दीजिए…..
सिंदूर….. विवाह से पहले ? विवाह से पहले तो शायद सिंदूर नहीं लगाया जाता ? मैं सिंदूर की डिब्बी तो लाई हूँ पर केवल सुहाग के सामान के रूप में…..क्यों बुआ जी?
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आरती बहू सही कह रही है, हमारे यहाँ विवाह की वेदी पर ही सिंदूर लगाया जाता है और हम अपने रीति रिवाज के हिसाब से ही रस्म निभाएँगे ।
पर बुआ जी , मैं केवल हल्का सा सिंदूर माँग में लगाने के लिए कह रही हूँ शगुन के लिए ।
हरगिज़ नहीं, सिंदूर केवल एक रस्म अदायगी नहीं है । मंत्रों के साथ पति के हाथों ही फेरों के समय स्त्री की माँग भरी जाती है, जिसके साथ वर-वधू का भावनात्मक जुड़ाव होता है । क्यों पंडित जी , क्या मैं ग़लत कह रही हूँ?
नहीं माताजी, आपका कहना भी सही है । पर जो यजमान सिंदूर की रस्म निभाते हैं मैं केवल सुख- शांति के लिए ही मंत्रोच्चार करता हूँ ।
इसके बाद वधू पक्ष के लोग बुआ जी के दिए तर्क के सामने निरुत्तर हो गए और उन्होंने बुआ जी की बात सहर्ष स्वीकार करते हुए अपने मेहमानों को विवाह की तारीख़ निकलवाने तथा सूचित करने का आग्रह करते हुए विदा किया ।
करुणा मलिक