रत्ना , नाश्ता लग गया है । हम सब इंतज़ार कर रहे हैं – रवि ने अपनी पत्नी को कहा । क्या आज बहू की तबियत ठीक नहीं? उसके पिता बोले । रवि की माँ बोली – रवि ! तुम अपना और रत्ना का नाश्ता कमरे में ही ले जाओ । आराम से वही खा लेगी । मैं थोड़ी देर में आती हूँ । यह कहकर मालिनी ने बहू-बेटे का नाश्ता लगाकर दे दिया ।
क्या बात है मालिनी ? बहुत दिनों से देख रहा हूँ कि रत्ना कुछ बदल सी गई है । ना ठीक से बात करती है और ना ही तुम्हारे साथ रसोई में हाथ बँटाती – सतीश जी बोले । ज़माना बहुत बदल गया है जी ! अब लड़की को नहीं, माँ- बाप को तालमेल बैठाना पड़ता है । आप चिंता मत कीजिए, जहाँ दो बर्तन होते हैं, खटकते तो है ही ।
सतीश जी कुछ नहीं बोले । उन्हें मालूम था कि मालिनी बहुत समझदार है , कैसी भी स्थिति हो वह कोई न कोई तरकीब निकालकर सब ठीक कर लेती है । रविवार का दिन था । कामवाली भी छुट्टी पर है, यह सोचकर मालिनी ने मन ही मन निर्णय किया कि रवि के सामने पेशकश रखेगी कि रत्ना और पोते आरव के साथ घूमफिर आए तथा लंच भी बाहर कर ले ।
ग्यारह बजे तक सारा कार्य समाप्त कर मालिनी रवि के कमरे में गई, देखा कि रवि अपने फ़ोन में लगा है और रत्ना बेड पर मुँह फुलाए बैठी है कैसी तबीयत है बेटा ? कुछ खाया ? मालिनी ने सहज रूप से कहा । रवि, छुट्टी का दिन है । बेटा! रत्ना और आरव को बाहर घुमाफिरा ला । यही तो दिन हैं , जब आरव के साथ तुम समय बिता सकते हो । एक बार बच्चा बड़ी क्लास आ गया तो चाहकर भी नहीं जा पाते । पर माँ, रत्ना की तबियत ठीक नहीं- रवि बोला ।
मालिनी ने वातावरण को हल्का बनाने के इरादे से कहा – भई , तेरी पत्नी है, अब मनाना तो तुम्हें आना चाहिए । देखती हूँ, तुम्हारे पापा ने आरव का होमवर्क करवा दिया होगा, उसे भी तैयार कर देती हूँ । थोड़ी देर में रवि- रत्ना और आरव चले गए । मालिनी ने स्वयं को आश्वस्त किया कि रत्ना को कुछ नहीं हुआ, वह केवल अपनी ओर ध्यान खींच रही है या अपना अलग घर ख़रीदने की रट दोहरा रही है ।
रत्ना हमेशा इस तरह का व्यवहार करती मानो रवि पर माता-पिता का कोई अधिकार नहीं है । क़रीब दो महीने बाद रत्ना के मम्मी- पापा आरव के जन्मदिन पर उनके यहाँ आए । मालिनी और सतीश जी हर साल आरव के जन्मदिन पर सुबह शांति हवन अवश्य करवाते थे । इस वर्ष मालिनी ने अपने समधी- समधिन को विशेष रूप से स्वयं आमंत्रित किया कि वे हवन के समय अवश्य आएँ । संयोग कुछ ऐसा हुआ कि रत्ना को केवल हवन के लिए दो/तीन घंटे की छुट्टी मिल सकी ।
हवन संपन्न होने के पश्चात रत्ना जल्दी जल्दी में आफिस चली गई । आफिस पहुँचकर उसने फ़ोन करके अपने माता-पिता से कहा कि शाम को पार्टी के लिए दुबारा आ जाना , अब घर जाकर आराम करें । जब मालिनी ने यह बात सुनी तो वे बोली – यह भी तो आपका ही घर है । आप क्यों बार-बार आना जाना करेंगी ।
दिन का काम हो ही गया । बाक़ी का काम चंपा निपटाएगी, बड़ी मुश्किल से तो पास बैठकर गपशप करने का मौक़ा मिला है । मालिनी के मनुहार पर दोनों वहीं रुक गए । शाम के लिए रवि और रत्ना ने पार्टी का आयोजन घर के लॉन में ही किया था । खाना वगैरहा सब बाहर से मँगवाया था ।
इसलिए मालिनी और सतीश जी निश्चिंत बैठे बातें कर रहे थे । पाँच बजे रवि और रत्ना आ गए । अपने मम्मी-पापा को देख रत्ना हैरान हो बोली – आप दोनों सुबह से यहीं हैं ? मैंने राजेश को फ़ोन कर कहा था कि आप दोनों को ले जाए । मालिनी के साथ पूरा दिन रह रत्ना की मम्मी का संकोच समाप्त हो गया था । बेटी की बात सुन वे बोली – तुमने क्या सोचा कि तुम्हारे एक फ़ोन पर राजेश हमें लेने आ जाएगा ? अब तो राजेश पर केवल सीमा का अधिकार है ।
माँ- बाप , भाई-बहन सारे रिश्ते भी भू ल चुका है । ऐसा अधिकार जमाती है कि वो माँ भी न जमाए , जिसने नौ महीने पेट में रखा , रात- रात भर जागकर खून – पसीना एक कर अपने सीने से लगाए रखा ………….. वो न जाने भावुकता में क्या- क्या बता गई और अंत में उनकी आँखों से आँसू बहने लगे ।
मालिनी ने उन्हें चुप कराया । फिर बड़ी कुशलता से रत्ना की मम्मी का ध्यान किसी दूसरे विषय की ओर ले गई । बहुत अच्छी तरह पार्टी समाप्त हुई और सभी मेहमान आरव को आशीर्वाद दे चले गए । अगले दिन उठी तो देखा कि रत्ना चाय की ट्रे हाथ में पकड़े उनका इंतज़ार कर रही थी – चलिए मम्मी, आज बाहर लॉन में चाय पीते हैं ।
मुझे आफिस लेट जाना है । मालिनी महसूस कर रही थी कि हर वक़्त ” तुम पर मेरा अधिकार है ” कहने और सोचने वाली रत्ना कह रही है- रवि ! तुम पर मेरे साथ- साथ अलग- अलग रूपों में परिवार के हर सदस्य का अधिकार है । मालिनी ने मन ही मन अपने ईश्वर और समधिन का आभार प्रकट किया ।
करुणा मलिक