प्रगति, जागृति, रचना तीनों ही लड़कियों के कारण ज्योति को घर में सास के बहुत ताने सुनते पड़ते थे सास हमेशा यही ताने मारती कि——– एक बेटा होता घर का बारिस होता कम से कम—– वंश का नाम तो——- बना रहता! लेकिन——— बहू के तो तीन लड़कियां हो गईं यह सब सुनकर ज्योति दुःखी तो हो जाती, पर पति—–
अभिनव हमेशा उसको समझाते कि मुझे तो अपनी बेटियों पर गर्व है मैं उन्हें पढ़ा लिखा कर अच्छा ऑफिसर बनाऊंगा कोई कुछ भी कहे———– तुम घर में किसी की भी बातों पर ध्यान मत दिया करो।
देखते देखते तीनों बच्चियां बड़ी हो गईं और प्रगति और जागृति दोनों इंजीनियर बन गईं—— दोनों की शादी भी इंजीनियर लड़के से हुई! प्रगति के पति पियूष——- और जागृति के पति विशाल थे। दोनों बेटियों को अच्छा घर परिवार मिला अब रचना सबसे छोटी थी वह योग्य डॉक्टर बनी अभिनव ज्योति और उनके दादा जी ने तो——
पूरे मोहल्ले को मिठाई बांटी कि रचना मोहल्ले की—– शान है! डॉक्टर बन गई और अस्पताल भी— इसी शहर में खोलने का उसका विचार है!—- यह देखकर—– सारे मोहल्ले वालों ने जो यह बोलते थे कि तुम्हारे तो तीन-तीन लड़कियां हो गईं पर—– उन लड़कियों की योग्यता देखकर
सभी खुश हो गए और उन्हें भी खुशी हुई कि एक मोहल्ले को योग्य डॉक्टर तो मिला परंतु रचना की दादी के मन में—- लड़के लड़की का भेद-भाव बना रहा वह ऊपरी मन से खुश हो के आशीर्वाद तो देतीं पर यही कहतीं एक लड़का होता तो अच्छा था।
रचना की शादी डॉक्टर सिद्धांत से तय कर दी गई सिद्धांत और रचना दोनों एक साथ ही मेडिकल कॉलेज में पढ़े थे।और एक दूसरे को चाहते भी थे! सिद्धांत के माता-पिता नहीं थे पर—- एक बड़ी दीदी थी—- दीदी जीजा जी भी विदेश में ही इंजीनियर थे सिद्धांत शहर में—-
अकेला ही रहता था रचना के माता-पिता को भी सिद्धांत बहुत पसंद था! बहुत सुशील और योग्य लिवर का डॉक्टर था सुंदर भी था उन्होंने सिद्धांत से यही कहा बेटा चिंता नहीं करो तुम्हारे माता-पिता भी हम ही हैं तुम हमारे दामाद भी हो और बेटा भी—– सिद्धांत इतने अच्छे परिवार को पाकर बहुत खुश हुआ और 1 साल में रचना और सिद्धांत की शादी भी करदी गई।
रचना और सिद्धांत दोनों ही योग्य डॉक्टर थे—— और देखते-देखते उनकी प्रसिद्धि इतनी बढ़ गई कि उन्होंने अपना—– इसी शहर में एक क्लीनिक खोला जिसका नाम “रचना सिद्धांत” हॉस्पिटल रखा गया इस अस्पताल का भी दूर-दूर तक नाम हो गया क्योंकि उन्होंने—- अपने हॉस्पिटल में—- विदेश के डॉक्टरों से कांटेक्ट करके सभी मरीजों की सुविधाओं के लिए— उपयोगी साधन उपलब्ध किये और समय-समय पर कभी विदेश से और कभी शहर के योग्य डॉक्टरों को अस्पताल में सलाह के लिए और इलाज के लिए बुलाया जाने लगा।
एक दिन अचानक—– रचना की दादी की बहुत ज्यादा तबीयत खराब हो गई और उनको सांस लेने में दिक्कत होने लगी उनका खाना पीना भी छूट गया था रचना ने उनका इलाज शुरू किया और सेवा की फिर उन्हें अपने हॉस्पिटल में एडमिट करके—- रचना सिद्धांत ने विदेश से एक्सपर्ट डॉक्टर को बुलाया—– तब पता चला कि उनके लिवर में इंफेक्शन हो गया है उनके बचने के चांन्स कम थे लेकिन——–
रचना और सिद्धांत ने विदेश के डॉक्टर के द्वारा दादी की जान बचा ली यह देखकर दादी की आंखों में आंसू आ गए—- उन्होंने रचना और सिद्धांत को गले से लगाया और बोलीं रचना तुम मेरी पोति नहीं पोता ही हो! आज तुमने मेरी जान बचाकर और मेरी इतनी सेवा करके लड़की का महत्व मुझे समझा दिया। जहां सब डॉक्टरों ने मेरी जीने की—— उम्मीद ही छोड़ दी थी रचना तुमने जी जान से मेहनत करके मुझे बचा लिया और मैं——
लड़के लड़की में जिंदगी भर फर्क करती रही तुम्हारे दादा जी ने भी मुझे समझाया पर—— मुझे किसी की बात समझ में नहीं आई और अपनी बहू को ताने मारती रही आज मुझे अपनी पोती “रचना पर गर्व है” रचना ने भी अपनी दादी को गले लगाते हुए कहा——-आज “मैं शर्म नहीं गर्व हूं”।
तो दोस्तों मेरी कहानी कैसी लगी लड़कियां और लड़कों में कभी फर्क नहीं करना चाहिए लड़कियां भी अपनी जिंदगी की शान होती हैं उन पर “शर्म नहीं गर्व करना चाहिए” और लड़कियां भी लड़कों की तरह ही अपने माता-पिता और अपने परिवार के लोगों की सेवा करती हैं।
सुनीता माथुर
मौलिक अप्रकाशित रचना
पुणे महाराष्ट्र