साथ – नीरज श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

कभी-कभी न चाहते हुए भी हम उस पल के साक्षी बन जाते हैं। जिसकी कल्पना हमने गलती से भी ना की हो। आज ऐसे ही पल के साक्षी नीरज और सुषमा बन चुके थे। 

         दर्द और वेदना की तूफानी लहरों ने आज सुषमा की आँखों में एक भयावह शैलाब को जन्म दे दिया था। रात्रि अपने चरम पर थी। पर सुषमा की आँखों में नींद की जगह नीर भरे हुए थें। जो अपनी व्यथा सुषमा से कह रहे थे।

         नीरज वहीं सुषमा के बेड के बगल में बैठा, अपने हाथों से सुषमा के आँसू पोंछ रहा था। पर सुषमा के आँसू थे। जो रुकने का नाम ही न ले रहे थे। 

बेचारी सुषमा एक सड़क हादसे में अपनी बायीं हाथ गवा बैठी थी और आज वह हॉस्पिटल की दहलीज पर बेबस और लाचार पड़ी हुई थी। 

सुषमा ने नीरज से रोते हुए कहा – “नीरज मुझे माफ़ कर दो। मैं तुम्हारा साथ न निभा पायी। अब मैं इस हालत में तुमसे शादी न कर सकूँगी। तुम अपने लिए कोई दूसरी लड़की देख लो।”

सुषमा की आँखों से बहते आँसुओं के बावजूद भी सुषमा की आँखों में नीरज के प्रति आपार प्रेम की परछाई साफ-साफ दिख रही थी।

नीरज ने सुषमा के आँसुओं को पोंछते हुए बोला – सुषमा मैं अब पीछे न हट पाऊँगा। मैंने तुमसे साथ निभाने का वायदा किया था। अब यह संभव नहीं।

सुषमा : नीरज! मैं तुम पर बोझ नहीं बनना चाहती। मुझे माफ़ कर दो और मेरी बात मान लो।

नीरज – सुषमा, तुम्हारा साथ तो मेरी लिए प्राण वायु है। अगर तुम नहीं तो मेरा भी कोई अस्तित्व नहीं। मैं जियूँगा भी तो तुम्हारे संग और मरुँगा भी तो तुम्हारे संग। दुनिया की कोई ताकत अब हमें अलग नहीं कर सकती।

सुषमा – पर नीरज! तुम्हारे मम्मी-पापा भी तो अब इस शादी के लिए राजी नहीं हैं। मुझे सब पता चल गया है। मेरी सहेली रीना ने मुझे सब कुछ बता दिया है।

नीरज – तुम्हें ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है। वह सब तुम मुझ पर छोड़ दो। मम्मी-पापा से कैसे बात करना है? वह मैं जानता हूँ।

सुषमा की आँखों में आँसुओं की धारा अब और तीव्र हो चली थी लेकिन यह आँसू खुशी के थे जो सुषमा के भीतर एक जीवंत ऊर्जा का संचार कर रहे थे।

 सुषमा ने नीरज से कहा – मुझे गर्व है कि मैंने तुमसे प्यार किया। आज तुमने साबित कर दिया कि प्रेम की ताकत ही सबसे बड़ी ताकत है वरना मैं तो आज सिर्फ एक जिंदा लाश से कम न थी।

नीरज ने मुस्कुराते हुए बोला – अब बस भी करो और कभी सपने में भी मत सोचना कि मैं तुम्हारा साथ छोड़ दूँगा।

सुषमा दाईं हाथ से आँसू पोंछते हुए बोली : तो अब घर चले।

नीरज : ओके मैडम, आप जैसा कहें।

अपने हाथ में सुषमा का हाथ थामे नीरज हॉस्पिटल से अपने घर की ओर लौटने लगा। दोनों अभी गली के आखिरी छोर तक पहुँचे ही थे कि उन्होंने किसी पुरुष की स्पष्ट और कड़क आवाज सुनी जो पीछे से आई थी, “नीरज, रुको।”

यह आवाज सुन तो जैसे दोनों ही डर गये। नीरज ने पीछे मुड़कर देखा तो पीछे मोहित खड़ा था। जो नीरज का दोस्त था। मोहित ने नीरज को एक पल गौर से देखा और बोला – “मैं तुम्हारा फैसला समझ गया। अब हाथ पकड़ा है तो इसे कभी न छोड़ना।”

लेखक : नीरज श्रीवास्तव 

              मोतिहारी, बिहार

सीख : 

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि :  

1. सच्चा प्रेम सदैव आत्मिक सुंदरता ही देखता है भौतिक नहीं। 

2. भौतिक सुंदरता समय के साथ नष्ट हो जाती है जबकि आत्मिक सुंदरता समय के साथ-साथ बढ़ती ही जाती है।

नोट : यह कहानी कैसी लगी। प्रतिक्रिया अवश्य दीजियेगा। आपकी समीक्षा हमारे लिए अमूल्य निधि है। धन्यवाद।

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