आज पंद्रह अगस्त की सुबह थी । अन्य दिनों की अपेक्षा आज की सुबह बड़ी खुशनुमा थी। राष्ट्र भक्ति के गीत माहौल को देशभक्ति से ओत-प्रोत बना रहे थे। जहां कुछ बच्चे सफेद यूनिफॉर्म में सजे
पी टी के लिए पंचायत भवन की ओर बढ़ रहे थे तो वहीं दूसरी ओर कुछ छात्रायें
रंग-बिरंगी पोशाकें पहने अपने नृत्य की प्रस्तुति देने जा रहीं थीं।
प्रकृति भी पीछे नहीं रही आज स्वतंत्रता दिवस की खुशी एवं उत्साह में वर्धन करते हुए हल्की -हल्की फुहारें भी पड़ रहीं थीं। किन्तु किसी को इनकी परवाह नहीं थी।सबका गंतव्य एक ही था पंचायत भवन जहां वे झंडारोहण का कार्यक्रम देखने जा रहे थे।
पंचायत भवन के सामने छोटा-सा मैदान था उसी में यह कार्यक्रम आयोजित किया जाता था। झंडा नियत स्थान पर लगा दिया गया था।उसी के नीचे सात-आठ प्लास्टिक की कुर्सियां रखी हुई थीं जिन पर सरपंच जो कि कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे
एवं गांव के अन्य गणमान्य व्यक्तियों को बैठना था। सामने एक फटा-पुराना फर्श बिछा था जिस पर कतार में स्कूली बच्चे बैठे थे। कुर्सियों से थोड़ी दूर एक ओर कार्यक्रम में भाग लेने वाले बच्चे जमीन पर बैठे थे। बच्चों का उत्साह देखते ही बन रहा था।
अभी अरूणोदय की लालीमा खत्म हो कर प्रखर तेज किरणों का वातावरण में आगमन हुआ था। बरसाती मौसम होने की वजह से सूर्य की किरणें में बहुत तेज नहीं था। कुल मिलाकर वातावरण बहुत ही सुहाना बना हुआ था।आठ बजे झंडारोहण का कार्यक्रम होना तय था। धीरे-धीरे
ग्रामवासी भी आने शुरू हो गये। गणमान्य लोग आकर कुर्सीयों पर बैठ गए। तभी सरपंच पति भी आए जिन्हें मुख्य अतिथि के रूप में झंडारोहण करना था ।
अब थोड़ा यहां के माहौल से हटकर आपको सरपंच पति एवं उनके पारिवारिक पृष्ठभूमि का परिचय करवा दूं।इस गांव में सरपंच की सीट महिला प्रत्याशी के लिए निर्धारित थी सो श्रीमती बिमला देवी सरपंच चुनी गईं।
उनके पति श्री जोगाराम जी एक खाते-पीते साधन संपन्न किसान परिवार के एकलोते बेटे थे। उन्होंने चौथी कक्षा तक पढ़ाई कर स्कूल से नाता तोड लिया और आवारा गर्दी करने में समय बिताते। पढ़ाई में मन नहीं लगा दोस्तों के साथ खेलना , घूमना-फिरना यही उनकी दिनचर्या रही।
चूंकि परिवार संपन्न था तो बिमला देवी जो बारहवीं कक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण थीं उनका विवाह इनसे हो गया। किन्तु अपने अहम् एवं अक्खड़ स्वभाव के कारण ये उनकी इज्जत न कर अपने पांव की जूती समझते।
चुनाव में महिला सीट का फायदा लेने के लिए बिमला देवी को खड़ा तो कर दिया और उनकी शैक्षणिक योग्यता को भी भुना लिया। प्रभावी परिवार होने के कारण वे जीत भी गईं किंतु उन्हें कभी पंचायत भवन नहीं जाने दिया और खुद ही सारा काम देखते केवल पेपर्स पर उनके हस्ताक्षर करवा लेते।
सो आज भी जब झंडारोहण करने के लिए वे सरपंच पति की हैसियत से उपस्थित थे वहीं इस समय सरपंच बिमला देवी घरेलू कार्यों में व्यस्त थीं।वे पशुओं के बाड़े की सफाई कर छत पर उपले थाप रहीं थीं।अब वापस पंचायत भवन लौटते हैं जहां कार्यक्रम होना था।
सरपंच पति द्वारा ध्वजारोहण किया गया। राष्ट्रीय गान के पश्चात बच्चों के कार्यक्रम की प्रस्तुति देनी प्रारंभ कर दी।
तभी वहां एक व्यक्ति आकर सरपंच के बारे में पूछताछ करने लगता है। सरपंच कौन है मैं उनसे मिलना चाहता हूं।जिस व्यक्ति से पूछा उसने सरपंच पति की ओर इशारा कर दिया।वह जाकर उनसे बोला क्या आप ही सरपंच हैं।
हां कोई शक है क्या इसमें।
किन्तु सरकारी आदेशानुसार तो यह सीट महिला सरपंच की है फिर आप कैसे।
अरे इतनी छोटी सी बात न समझे क्या तू। मेरी पत्नी सरपंच है तो इस नाते मैं सरपंच पति हुआ, तो सरपंच हुआ न।
यह ध्वाजारोहण आपने किया है।
हां, नहीं तो क्या तूने किया है।
यह कानूनन गलत है।
अरे तू होवे कौन है यह सब बताने वाला चल अपना रास्ता नाप। फिजूल में ही कार्यक्रम में विघ्न डालने आ पहुंचा, है कौन तू।
मैं कोई भी हूं किन्तु सरपंच से मिलना चाहता हूं।
अरे वह अनपढ़ , गंवार मेरी पत्नी है वह क्या करेगी यहां आकर।वह तो घर के कामों में,ढोर ढंगर को सम्हालने में व्यस्त रहती है।सरपंची का काम वो क्या जाने, काम तो मैं ही देखूं हूं।
आप उन्हें एक बार यहां बुलवाइए।
अरे तेरी समझ में न आवे क्या।वह क्या तेरे से मिलने आवेगी और यहां मुंह उघाड़कर बड़े बुजुर्गो के सामने कुर्सी पर बैठेगी क्या।
अरे वह औरत है और औरत पांव के नीचे ही अच्छी लागे है सिर पर नाचती नहीं।वह तो नहीं आवेगी तू अपने रास्ते चला जा तेरे को क्या परेशानी है।
परेशानी है तभी तो कह रहा हूं।
सरपंच पति जो स्वभाव से ही गुस्सेल एवं लड़ाई झगड़ा करने वाला था अभद्र भाषा पर उतर आया और उसे धकियाने लगा। तभी उनका ड्राइवर एवं पुलिसमैन वहां आए और बोले ये आप क्या कर रहे हैं। जानते हैं आप किसके साथ अभद्रता करने जा रहे थे। ये हैं हमारे नये
जिलाधीश महोदय।
अब तो सरपंच पति का धकियाने के लिए उठा हाथ वहीं थम गया और बड़ी ही विनम्रता से बोला सर आप। असल में सवाईमाधोपुर जिले के जिलाधिकारी अभी दो माह पूर्व ही वहां आए थे जिन्हें अभी कोई ज्यादा नहीं जानता था और जहां वे खड़े थे वह गांव था मलारना डूंगर
जहां की यह घटना थी।
अब तो सरपंच पति की सारी हेकड़ी निकल गई। गिड़गिड़ाते बोले बैठिए सर और स्वयं उन्हें कुर्सी खिसका कर दी।इस घटना के कारण कार्यक्रम बाधित हो रुक चुका था।सब इस वार्तालाप को सुन रहे थे।
सर आदेश दीजिए।
इतनी देर से आदेश ही तो दे रहा था कि सरपंच महोदया को बुलवाइए पर आप सुन ही कहां रहे थे।
सर आपको पहचाना नहीं। गल्ती के लिए माफ करें अभी बुलवाता हूं किसी को भेजकर पत्नी को तुरंत पंचायत भवन बुलाया।बेचारी घर के कामों व्यस्त थी सो आनन-फानन में घूंघट निकाले वह पंचायत भवन पहुंच गई।
जिलाधीश महोदय को नमस्कार कर वह एक ओर खड़ी हो गई। उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था।वह बड़ी घबराई सी सोच रही थी कि ये सब क्या हो रहा है। उसे क्यों बुलाया गया है।
उसे खड़ी देख वह बोले आप बैठें खड़ी क्यों हैं। किन्तु वह सब गांव के लोगों और अपने पति के सामने कुर्सी पर बैठने से सकुचा रही थी।
पुनः कहने पर वह सकुचाती सी भयभीत हो अपने पति की ओर देखते हुए कुर्सी पर बैठ गई। दो-तीन प्रस्तुति बच्चों की रह गईं थीं सो उन्हें पहले करवाया गया ताकि बच्चे परेशान न हों। फिर कार्यक्रम समाप्ति पर जिलाधिकारी ने बिमला देवी से स्वयं कार्य न सम्हालने के प्रति नाराजगी दर्शाई।
बोले जिस काम के लिए ग्रामीणों ने आपको चुना है वह अपनी जिम्मेदारी आपने अपने पति को किस अधिकार से सौंप दी। आज आपके स्थान पर उनके द्वारा ध्वजारोहण करना कानूनन गलत है।वे आपके पद का उपयोग कैसे कर सकते हैं। क्या आवश्यक दस्तावेजों पर भी आपके स्थान पर आपके पति ही हस्ताक्षर करते हैं।
तब वह घबराकर कर बोली नहीं सर हस्ताक्षर तो मैं ही करती हूं वे तो केवल काम सम्हालते हैं।
आप क्यों नहीं आती पंचायत भवन और स्वयं काम क्यों नहीं देखतीं।
पति की घूरती आंखों को देख वह भयभीत हो कर कुछ नहीं बोली।
जिलाधीश महोदय को उसकी स्थिति समझते पलभर भी नहीं लगा। फिर बोले आप कुछ पढ़ी-लिखी हैं हस्ताक्षर कर लेतीं हैं या अंगूठा लगातीं हैं।
सर मैं प्रथम श्रेणी से बारहवीं पास हूं सो हस्ताक्षर कर लेतीं हूं।
किन्तु आप अपना काम आगे से स्वयं सम्हालें।जैसा कि आपके पति कह रहे थे आप अनपढ़ हैं काम नहीं सम्हल सकतीं।
धीरे -धीरे समझने से सब आ जाएगा ।यह आपके लिए चेतावनी है कि अगले वक्त जब फिर मैं दौरे पर आऊं तो आप काम करतीं मिलें न कि आपके पति। और सुनिए सरपंच पति आप पति होने के नाते इन्हें यहां आने से नहीं रोकेंगे और इन्हें पूर्ण सहयोग देंगे।
ये सरपंच पति कोई पोस्ट नहीं है जिसे आप अपनाकर बैठे हैं।यह आपका कोई नैतिक अधिकार नहीं है, आगे से आप सरपंच के कार्यों में अनाधिकार दखल देने का प्रयास नहीं करेंगे।आज तो आपको चेतावनी देकर छोड़ रहा हूं आगे फिर आने पर यदि सही स्थिति नहीं मिली तो आवश्यक कार्रवाई के लिए तैयार रहें। वैसे भी आपका व्यवहार बड़ा ही अशोभनीय है।
सरपंच पति शर्म एवं अपमान महसूस कर रहे थे।वे स्वयं अनपढ़ होते हुए भी पढ़ी-लिखी पत्नी को अनपढ़ , गंवार कह कर अपने रुतबे एवं पुरुषोचित अहम के कारण दबाकर रखना चाहते थे किन्तु आज उनका दांव उन पर ही भारी पड़ गया।
शिव कुमारी शुक्ला
जोधपुर राजस्थान
3-8-25
स्व रचित एवं अप्रकाशित
विषय****लेखिका बोनस प्रोग्राम द्वितीय कहानी
दोस्तों आज कल चलन है कि जहां भी महिला सरपंच, और वार्ड पार्षद होती हैं उनके पति सरपंच पति और पार्षद पति के रूप में स्वयं कार्य करते हैं और महिलाओं को आगे नहीं आने देते। जबकि सरकार का मकसद महिलाओं को आगे बढ़ाने का था जिसका दुरुपयोग हो रहा है।
हालांकि सब ऐसा नहीं करते अधिकांश स्थानों पर महिलाएं सुचारू रूप से काम कर रहीं हैं और कई स्थानों पर जहां महिलाएं पढ़ी-लिखी नहीं है उनके पति उनके कार्यों में अपेक्षित सहयोग भी करते हैं। किन्तु कुछ लोगों ने माहौल खराब कर रखा है।