रवि और मेघा ने जब नए घर की चाभी सुरेश जी और सुधा जी को देते हुए कहा कि,” पापा – मम्मी जिस घर का सपना आप हमेशा से देखा करते थे अब पूरा हो गया।ये लीजिए अपने सपनों के आशियाने की चाभी।
” सुरेश जी की आंखें नम हो गई और सुधा जी के होंठों पर मुस्कान थी और आंखों में आंसू थे।आज बेटे – बहू ने घर की चाभी ही नहीं पकड़ाई थी बल्कि उनके उस सपने को साकार किया था जो वो पूरी उम्र देखा किए थे।
छोटी सी कमाई और बहुत बड़े परिवार की जिम्मेदारी। महीना खत्म बाद में होता था लेकिन तनख्वाह तो पहले ही खत्म हो जाती थी। बहनों – भाइयों को पढ़ाया – लिखाया उनका विवाह कराया । उसके बाद अपने परिवार की जिम्मेदारी उठानी थी।
रवि के पैदा होने के बाद दोनों ने फैसला लिया की दूसरा बच्चा नहीं करेंगे। इसी को अच्छी शिक्षा देकर इतना काबिल बनाना है की हमारे बेटे को हर दिन की समस्याओं से कभी भी जूझना ना पड़े।
कहते हैं ना इंसान के अच्छे संस्कार और कर्म उसको उसका फल जरूर देते हैं। भगवान की असीम कृपा थी की रवि बहुत ही मेघावी छात्र था और संस्कार तो माता पिता से विरासत में मिली थी।
बारहवीं में राज्य स्तर पर अव्वल रहा। प्रतियोगी परीक्षाओं में बेहतर परिणाम निकला और बड़े इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश तो मिला ही साथ ही में वजीफा भी मिला। जिससे उसकी पढ़ाई लिखाई में ज्यादा धन राशि नहीं लगी। रवि ने बचपन से देखा था कि पापा ने कितना संघर्ष किया था।
रात में मां को अक्सर कहते सुना था कि काश हमारा अपना घर होता तो हम ऐसे दर-बदर की ठोकरें नहीं खाते।
सुबह उठकर पानी के लिए संघर्ष करना पड़ता था। सरकारी नल में पानी आते ही मोहल्ले की औरतें लाईन में लग जातीं थीं। आधे समय बिजली नहीं होती थी।
खासकर गर्मियों में जैसे ही सोने जाओ या परिक्षाओं के समय बिजली गुल हो जाती थी।उन दिनों तो एक बड़ा प्रोजेक्ट रहता था की शाम से ही छत पर पानी डालकर ठंडा करना है वरना छत भी परिस्थितियों की तरह आग ही उगलती थी।
वो दिन आज भी आंखों में बसा हुआ था जिस दिन रवि ने पैर छूकर आशीर्वाद लिया था की,”पापा – मम्मी मुझे नौकरी मिल गई है
बहुत बड़ी कम्पनी में और इतनी तनख्वाह है की दोनों हाथों से उड़ाओगे तो भी खत्म नहीं होगा।अब आप के सारे कष्ट खत्म हो गए हैं। खूबसूरत जिंदगी जीने की तैयारियां शुरू कर दो आप दोनों।”
सुरेश जी और सुधा जी ने रसोई घर से गुड़ ले जाकर घर के मंदिर में रखकर भगवान को बहुत धन्यवाद दिया था।
हे!” ईश्वर आप से मुझे कभी भी शिकायत नहीं रही। आपने जो कुछ भी दिया हमने सिर माथे पर रखा लेकिन आज आपको दिल से शुक्रिया कहने का
बहुत मन कर रहा है कि आपने रवि जैसा बेटा देकर हमारी जिंदगी में खुशियां हीं खुशियां भर दी।आप हमेशा इसके साथ रहना प्रभु ” सुधा जी हांथ जोड़ कर भगवान जी से प्रार्थना कर रही थी।
सच भी है अगर औलाद लायक हो तो माता-पिता का जीवन सफल हो जाता है और उसका संघर्ष कभी भी याद नहीं आता है दर्द बन कर।
रवि की शादी मेघा से हुई,जो कालेज में उसकी जुनियर थी। रवि ने अपने परिवार के बारे में सबकुछ साफ – साफ बताया था कि वो अपने माता-पिता की देखभाल और सेवा जिंदगी भर करेगा और मेघा तुम्हें भी उन्हें दिल से अपनाना होगा। मेघा की मां नहीं थी पिता ने ही पाल पोस कर बड़ा किया था। मेघा को सुधा जी के रुप में मां मिल गई थी।
घर में सुख-समृद्धि और अपनों का प्यार था।
एक साल के बाद ही रवि ने मकान खरीद लिया था।बैंक से लोन मिल गया था और मम्मी – पापा को सरप्राइज दिया था। घर बहुत सुंदर था।
सभी के लिए पर्याप्त जगह थी। रवि ने मम्मी से कहा,” मम्मी आपका कमरा पूजा घर के पास ही है।खुश हो आप? आप हमेशा से ऐसा ही घर चाहती थी ना। “घर के बाहर तख्ती पर भी ‘ सुधा सदन ‘ लिखवा था।
बेटा,” तुम्हारे जैसा बेटा देकर ईश्वर ने मुझे सबकुछ दे दिया था।अब तो कोई भी अभिलाषा शेष रही ही नहीं।बस पोते – पोती का मुंह देख लूं तो ईश्वर कभी भी ले जाए
कोई शिकायत नहीं है अब तो जिंदगी से” सुधा जी की बातों से मेघा के गाल गुलाबी हो गए थे और रवि भी शरारती अंदाज में मेघा को कोहनी से मारा था। मेघा शर्माती हुई कमरे में चली गई थी।
बड़े ही धूम-धाम से गृह प्रवेश हुआ था। पूजा में सुरेश जी और सुधा जी ही बैठे थे।सुधा जी ने कई बार रवि और मेघा से जिद किया था की वो दोनों पूजा में बैठ जाएं पर बेटे – बहू दोनों ने मना कर दिया था कि ये घर आपका है इसलिए पूजा में आप दोनों ही बैठोगे।
“सचमुच रवि के पापा मैंने कल्पना ही नहीं किया था की हमारा भी घर होगा एक दिन। जहां मैं स्वतंत्र रूप से रहूंगी, कोई बंदिशें नहीं ना मकान मालिक का डर।” सही कहा सुधा तुमने….” हमारे पूर्वजों का आशीर्वाद है और ऊपर वाले की कृपा वरना आज कल के बच्चों को देखो जो अपनी दुनिया में मस्त हो जाते हैं मां – बाप को भूलकर।”
लाॅन में एक छोटी मेज और दो कुर्सियां रख दिया गया था।सुधा जी और रवि जी की सुबह-शाम की चाय और कुछ पुरानी यादों का पिटारों का गवाह बना करता था वो जगह।
माता पिता को खुश देखकर रवि दूर से ही मुस्कराया करता की वो उनको खुशियां दे पाया जिसके वो हकदार थे।
मेघा जल्दी ही मां बन गई थी और एक कम्पलिट परिवार बन गया था सुधा सदन। जहां तीन पीढियां की खिलखिलाहट थी और हर कोनों में बड़ों का आशीर्वाद बसा था।
माता पिता के सपने जब बच्चों के सपनों के साथ जुड़ जाते हैं तो एक मकान मंदिर बन जाता है।यही तो संस्कृति है हमारे देश की। जहां माता पिता को भगवान का दर्जा दिया जाता है। कुछ औलादें
अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त होकर अपनी ही दुनिया में खो जाते हैं तो बहुत कष्ट होता है देख कर। आपके आशियाने में अपनों की उपस्थिति किसी पूजा से कम नहीं है।घर घर तभी कहलाता है जब सभी लोग चाहे वो बड़े हों या छोटे अपने हर रिश्तों के प्रति इमानदार होते हैं।
बड़े जैसा व्यवहार करेंगे छोटे भी वहीं से सीखते हैं इसी को तो संस्कार कहते हैं। इसीलिए अपने परिवार के हर सदस्य को स्नेह की धागों से बांध कर रखना चाहिए जिससे हर इंसान खुल कर अपनी जिंदगी जी सके।
प्रतिमा श्रीवास्तव नोएडा यूपी