“बेटा खाना तो खा जाता….इतनी सुबह सुबह कहां जा रहा है….”राजीव को सुबह 6 बजे जाता देख अनीता ने टोका।
“क्या मां कितनी बार कहा है कि जब कहीं जाया करूं तो टोका मत करो….अरे खाना होगा तो खा लूंगा, कोई बच्चा तो नहीं हूं मैं….अच्छा खासा मूड खराब कर दिया….”गुस्से में कहते हुए राजीव बाहर निकल गया।
पास ही राजीव की बुआ, मधु बैठी हुई थीं, उनके सामने बेटे को ऐसे बोलते देख अनीता को बहुत बुरा लगा और दुख भी इतना हुआ कि आंसू छलछला गए जिन्हें रोकने का अनीता ने भरसक प्रयास किया…. हालांकि राजीव ऐसा व्यवहार पहले भी कई बार कर चुका था लेकिन मां तो मां होती है
कितना भी बुरा व्यवहार बच्चे कर लें फिर भी उनकी चिंता फिक्र मां को होती ही है और अनीता ये भी नहीं चाहती थी कि उनके बच्चों का जो व्यवहार है वो मधु को पता चलें क्योंकि सभी रिश्तेदार जहां तक कि मधु भी उसके देवर विनीत के बच्चों की तारीफ करते थकते नहीं थे और करें भी क्यों नहीं
आखिर वो बच्चे थे भी तारीफ के काबिल…अच्छे पदों पर होने के बाबजूद उनमें जरा सा भी घमंड नहीं था और न ही वह अपने संस्कारों को भूले थे….वह इतने संस्कारी बच्चे थे कि उनकी जितनी तारीफ की जाए कम है।
और दूसरी तरफ ये राजीव जिसने अपने पिता के कारोबार को ही थोड़ा आगे क्या बढ़ा दिया कि घमंड से फूला नहीं समाता था।
मधु राजीव का अपनी मां के प्रति यह व्यवहार देख बीते समय में खो गई कि ये वही भाभी हैं जिन्होंने पापा की मृत्यु के कुछ समय बाद ही बंटवारे को लेकर कितना हंगामा किया था कि मां को मजबूर होकर घर के दो हिस्से करने ही पड़े और जो पापा का कपड़े का कारोबार था उसका भी बंटवारा कर
दिया था। बंटवारे के बाद मां ज्यादातर छोटे भैया भाभी के पास ही रहती हालांकि तय ये हुआ था कि एक एक महीने दोनों बेटे जिम्मेदारी उठाएंगे लेकिन बड़ी भाभी के स्वभाव की वजह से वह बड़ी भाभी के पास कम ही रहतीं….फिर भी छोटे भैया भाभी को कोई आपत्ति नहीं थी, वह हमेशा मन लगाकर उनकी सेवा करते….राजीव छोटे भाई के बच्चों से बड़ा था और उसका पढ़ाई में भी ज्यादा मन नहीं
लगता था अतः वह दुकान में ही पिता का हाथ बंटाता और धीरे धीरे राजीव ने अपनी मेहनत और पिता के सहयोग से शहर में एक बड़ा शोरूम खोल लिया जो आज हर बच्चे, बड़े की जुंबा पर था उसके विपरीत छोटे भाई के बच्चे अभी पढ़ ही रहे थे कि भाई का एक दुर्घटना में स्वर्गवास हो गया
और भाभी और बच्चों पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा…..कहते हैं न कि सुख में तो भी सब साथ दे देते है लेकिन दुख में तो अपने भी मुंह मोड़ लेते हैं…..उन पर क्या बीत रही होगी….कैसे घर परिवार चलेगा इससे बड़े भैया भाभी को भी कोई लेना देना नहीं था…..बेचारी छोटी भाभी ने खुद को और अपने तीनों
बच्चों 2 बेटे और 1 बेटी को बड़ी मुश्किल से संभाला….भाभी भैया की दुकान को संभालने लगी आखिर घर पर खाली बैठे रहने से तो काम चलता नहीं….लेकिन जब उन्हें यह दुकान चलाने में परेशानी हुई तो उन्होंने उसे किराए पर दे दिया और खुद घर पर सिलाई का काम करने लगीं
…..सिलाई और घर के काम में मां का सहयोग भी उन्हें मिल जाता था और दुकान का किराया भी आ जाता था…..जैसे तैसे घर चल रहा था …ईश्वर की इतनी कृपा हुई कि उनके बच्चे पढ़ाई में होशियार थे
तो उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप मिल गई….और फिर कुछ सालों में अपनी मेहनत से दोनों बेटे अच्छे अच्छे पदों पर आसीन हो गए …….अब सब बहुत खुश थे…. एक बेटी थी जिसकी शादी कर दी।
कुछ वर्ष बाद मां की भी मृत्य हो गई… उसके बाद तो मधु बहुत कम या ये कहें किसी कार्यक्रम या किसी पर्व आदि पर बुलाने पर ही आती थी। अब भी वह सालभर पहले राजीव के विवाह में ही आई
थी। राजीव ने विवाह अपनी पसंद की लड़की से किया था और अब वह दोनों ऊपर की मंजिल पर रहते और नीचे भैया भाभी रहते थे और अब भी वह छोटी भाभी के बेटे श्रेय की रिंग सेरेमनी के लिए आई थी…रात को तो वह छोटी भाभी के ही यहां रुकी थी।
अनीता ने कुछ देर में खुद को संभाल मधु को सफाई देते हुए कहा,” अब क्या करे बेचारा सुबह से रात तक काम करके थक जाता है तो थोड़ा चिड़चिड़े स्वभाव का हो गया है।”
अनीता की आवाज से मधु अतीत से बाहर आ गई, ” कुछ कहा भाभी आपने….”
“हां मैं ये कह रही थी कि बेचारा थक जाता है तो थोड़ा चिड़चिड़े स्वभाव का हो गया है….लेकिन आप कहां खो गईं….”
“कुछ नहीं भाभी बस कुछ पुरानी यादें ताजा हो गईं थीं…..वैसे माफ करना भाभी राजीव का व्यवहार थकान की वजह से नहीं उसके स्वभाव की वजह से ही ऐसा है….”
मधु की इतनी बात सुनकर अनीता के दिल में छिपा दर्द बाहर आ गया, “अब क्या बताऊं मैं, ये किसी की सुनता ही नहीं…न मेरी और न तुम्हारे भैया की….और दूसरी तरफ वो बहू है उसके लिए तो जैसे हम कुछ हैं हीं नहीं….दोनों अपनी मर्जी के मालिक हैं…कोई आए कोई जाए इन्हें कोई फर्क नहीं
पड़ता….न समाज की चिंता और न हमारी…. अगर हम कभी कुछ कहें भी तो ये कहकर चुप करा देते हैं कि तुम्हें क्या मतलब कि हम कहां जा रहे हैं, क्या कर रहे हैं, कैसे रह रहे हैं…..तुम बस अपने खाने पीने पर ध्यान दो वो तो तुम्हें समय से मिल रहा है न……अब तुम्हारे भैया और मैं इस बात से और डरते
हैं कि कुछ ज्यादा कहा तो कहीं हमें छोड़कर वो और कहीं रहने न चले जाएं इसीलिए ज्यादा कुछ कहते नहीं….कम से कम इस बात की तसल्ली तो है कि हमारे बच्चे हमारी आंखों के सामने तो हैं ….अब तुम्हीं बताओ क्या करें..कैसे समझाएं इन दोनों को…”
“अब भाभी मैं क्या बताऊं इसमें….वैसे बुरा मत मानना भाभी इतने बड़े बच्चों को नहीं समझाया जा सकता…. संस्कार तो बच्चों में शुरू से ही डाले जाते हैं और अफसोस इस बात का है कि संस्कार विरासत में नहीं मिलते….”
प्रतिभा भारद्वाज ‘प्रभा’