रेखा ने सारी अलमारी छान मारी पर एक भी सूट या साड़ी ऐसी नहीं लगी जो अपनी देवरानी स्वाति के विवाह के बाद के पहले जन्मदिन पर भेंट कर सके । उसे सात महीने में ही स्वाति से अपनी छोटी बहन की तरह इतना प्यार हो गया था कि सास की उनका आपसी मोल्डोवा आँखों में खटकने लगा था ——
बड़े चोंचले दिखाए जा रहे हैं देवरानी को….. सब पता है मुझे , क्यों इतना प्रेम उमड़ता है । बड़े घर की लड़की है…. दोनों कमाते हैं । इतनी बात तो बावला भी समझ जाएगा कि देवरानी के आगे-आगे क्यूँ घूमती है तू ?
नहीं माँ…. ऐसी बात नहीं, मैं तो छोटी बहन समझती हूँ बस । वो भी तो बड़ी बहन की तरह इज़्ज़त करती है । रिश्ता तो दोनों तरफ़ से निभता है ।
क्या मतलब ? रिश्ता दोनों तरफ़ से निभता है? मुझे सुना रही है या कल्पना के लिए कह रही है?
रेखा का मन तो किया कि कह दे , हाँ तुम दोनों माँ- बेटी के लिए ही कह रही हूँ पर वह चुप रही और सास देर तक बड़बड़ाती रही । उसे याद आया कि जिस दिन गुड़िया का जन्म हुआ उसी दिन उसकी ननद का जन्मदिन था । बेटी के आने की खबर मिलते ही उसके पति कैलाश ने तुरंत बहन को बुला लिया था और शाम को केक लेकर आए तो एक ही केक पर “बुआ- भतीजी “ देखकर सास तुनकते हुए बोली थी —-
बेटी के ही केक में बहन को बहका – फुसला दिया … रेखा ने समझाया था या बेटी का बाप बनते ही तुझमें इतनी बुद्धि आ गई ?
कैलाश ने हँसी में बात टाल दी पर रेखा के मन पर बात जा लगी । क्या माँ को नहीं पता कि पूरा दिन बेटा कैसे खटता है? बाबूजी की दवाइयों का खर्च, देवर की महँगी पढ़ाई, नाते- रिश्तेदारी का निर्वाह, ये सब कितनी मुश्किल से चलता है? वैसे उसकी ही गलती है सारी …. रेखा ने ही तो पति को कहा था कि आज दीदी का जन्मदिन है । शाम को केक लेते आना , यहीं काट लेंगे, उन्हें अच्छा लगेगा कि दोनों बुआ- भतीजी एक ही दिन आई थी । अब पता नहीं, केक पर केवल उनका नाम न लिखवाकर बुआ- भतीजी लिखवाने का आइडिया कैलाश के दिमाग़ में कहाँ से आया ?
गुड़िया के पहले जन्मदिन पर भी ऐसा ही क्लेश हुआ । दोनों पति- पत्नी का मन था कि थोड़े से जान- पहचान वालों को बुलाकर केक कटवाकर चाय- नाश्ते का प्रबंध कर लें पर माँ ने दो दिन पहले ही कह दिया ——
केक कटवाना है तो दो केक मँगवा लेना और कल्पना की ससुराल वालों को ख़ास निमंत्रण देना , उन्हें भी तो पता चले कि हम आज भी किस शान- शौक़त से अपनी बेटी का जन्मदिन मनाते हैं? मेहमानों की लंबी चौड़ी लिस्ट देखकर कैलाश बोले—-
रहने देते हैं । अभी तो गुड़िया बहुत छोटी है, इसे क्या पता कि जन्मदिन क्या है । इतने लोगों को बुलाने से बजट गड़बड़ा जाएगा । केशव की फ़ीस भी इसी महीने जानी है ।
बस रेखा ने गुड़िया के पहले जन्मदिन पर सुबह हलवा बनाया और पति- पत्नी अपनी बेटी को मंदिर ले गए हालाँकि शाम के समय कल्पना ने अपने घर भोजन पर निमंत्रित किया …. केक भी काटा गया । रेखा इंतज़ार करती ही रह गई कि शायद बुआ केक काटते समय गुड़िया को गोद में लेकर उसके जन्मदिन की औपचारिकता निभाएगी ।
समय तो निकल जाता है , बस यादें रह जाती हैं । पढ़ाई पूरी होते ही केशव की अच्छे हॉस्पिटल में नौकरी भी लग गई और उसी के साथ काम करने वाली डॉक्टर स्वाति से विवाह भी हो गया । स्वाति के मन में अपने जेठ- जेठानी का दर्जा बहुत ऊँचा था , वह बहुत व्यस्त होने के बावजूद भी रेखा का हाथ बँटाने की कोशिश करती …. बस उसके इसी स्वभाव ने रेखा का मन जीत लिया । वह उसे बिल्कुल अपनी बहन की तरह प्रेम करती थी । क़रीब दो हफ़्ते पहले ही केशव और स्वाति ने पहले हॉस्पिटल की नौकरी छोड़कर दूसरे बड़े हॉस्पिटल में नौकरी ज्वाइन की थी और वहीं उन्हें रहने का बड़ा घर भी मिल गया था । जब स्वाति ने घर वाली बात रेखा को बताई तो उसने कहा—-
तुम इतना संकोच क्यों कर रही हो? वैसे भी कभी नाइट ड्यूटी है … कभी दिन , कभी तुम दोनों की अलग-अलग…. कोई बात नहीं, पर शनिवार की शाम को घर आने की कोशिश किया करना ।
हाँ…. तू तो अकेली ही राज करना चाहती है पूरे घर में। वैसे तो छोटी बहन कहती फिरे … चार दिन में ही भारी दिखने लगी छोटी बहन ?
सास ने ताना मारकर स्वाति को भड़काने की कोशिश करते हुए कहा ।
पर स्वाति के ऊपर इन बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा बल्कि देवरानी-जेठानी का प्यार गहराता ही गया ।
अचानक अलमारी खंगालते- खंगालते रेखा की नज़र एक पैकेट पर पड़ी …. खोलकर देखा तो उसमें वहीं ऊन की बुनी जैकेट निकली , जिसे उसने कल्पना के लिए बनाया था और उसने यह कहकर लेने से मना कर दिया था कि—-
वाह भाभी ! बची- कुची ऊन की जैकेट बनाकर क्या जताना चाहती हो कि मैंने कभी जैकेट नहीं देखी ? आपको तो इतना भी नहीं पता कि ये रंग- बिरंगी जैकेट देखकर मेरी सास- जेठानी क्या सोचेंगी?
दीदी! पर उस दिन बाज़ार में तो आप मल्टीकलरस का ऊनी स्वेटर ढूँढ रही थी ? मैंने तो यही सोचकर आपके लिए बनाया कि आपको पसंद आएगा । फिर उपहार की क़ीमत नहीं, दिल देखा जाता है देने वाले का ।
बहस बहुत करने लगी है आजकल तू ….. इसका रहना- सहना देखा है ना तैने, ये ना पहनती कभी घर के बने स्वेटर…..हमें अच्छी तरह पता है, तेरे दिल का भी और देने की नियत का भी …. बातों से बहलाना तो खूब जानती है तू ।
उस समय चुपचाप रेखा ने वह जैकेट पैक करके रख दी थी । जैकेट को देखते ही रेखा ने सोच लिया कि प्यार से एक-एक फंदे से बुनी यह जैकेट ही स्वाति को उपहार में देगी , वही इस जैकेट की सच्ची हक़दार है ।
उसने बिना किसी को दिखाए और बताए जैकेट बड़ी ख़ूबसूरती से पैक कर दी और देवरानी के जन्मदिन के लिए खाने- पीने का इंतज़ाम करने लगी । वैसे केशव ने घर में कुछ भी बनाने से मना कर दिया था पर रेखा का मन नहीं माना । उसने स्वाति के मन पसन्द दो- चार व्यंजन बना लिए । केशव ने अपने दो- चार मित्रों के परिवार को , बड़ी बहन को और स्वाति के परिवार को भी बुलाया था ।.
केक कटने के बाद सभी ने स्वाति को उपहार दिए । बाहर के लोगों के जाने के बाद कल्पना ने स्वाति को उपहार खोलकर दिखाने के लिए कहा । रेखा का दिया उपहार खुलते ही कल्पना ने बनावटी हँसी हँसते हुए कहा—-
वाह रेखा भाभी ! अब ये जैकेट स्वाति के चेप दी ….. हद है आपकी भी ….
पर स्वाति ने कल्पना के हाथों से जैकेट छीनते हुए कहा—-
अमेजिंग…… दीदी आपमें ये टैलेंट भी है ? कोई कह ही नहीं सकता कि हैंडमेड है …. आपके हाथ में तो जादू है….
कहते- कहते स्वाति ने तुरंत वह जैकेट पहन ली । रेखा को सबसे ज़्यादा ख़ुशी तब हुई जब अगले दिन उसने स्वाति के व्हाटसप्प स्टेटस पर अपने दिए उपहार के फ़ोटो देखे और देवरानी की तरफ़ से लिखा गया “ विशेष धन्यवाद “ पढ़ा ।
करुणा मलिक
# उपहार की क़ीमत नहीं, दिल देखा जाता है ।