मान्या स्कूल से आते ही बाथरूम में घुस गई । जब स्कूल से निकली उस समय आकाश में हल्के-हल्के बादल छाए थे। रिक्शा पकड़ने में जल्दी भी की पर अचानक तेज बारिश शुरू हो गई और मान्या घर पहँुचते-पहँुचते पूरी तरह से भीग गई। नहाने के बाद बढ़िया कड़क सी चाय बनाकर बालकनी में बैठ गई ।
बाल भी भीग गए थे ,एक बार तो सोचा कि ड्रायर कर लेती हँू पर फिर यह सोचकर कि सरदी थोड़े ही है ,सूख जाएँगे , वह बालकनी में चाय का आनंद लेने लगी। अक्सर स्कूल से आने के बाद मान्या बालकनी में ही बैठती थी क्योंकि घर के अंदर बैठने से नींद आ जाती और फिर देर रात तक सो नहीं पाती थी। फोन अंदर चार्जिंग पर लगा दिया । पूरे दिन बच्चों के साथ सिर खपाकर किसी फोन को अटेंड करने का भला कही मन करता है ? प्रताप भी दो दिन के आॅफिस टूर पर गए हैं। तभी फोन की घंटी बजी। प्रताप का फोन था-
हैलो मान्या , कल रात सड़क दुर्घटना में सुशांत नहीं रहा । मैं घर पहँुच रहा हँू । क्या मेरे साथ अंतिम संस्कार के लिए चल सकोगी ? शायद मम्मीजी को इस समय तुम्हारी सबसे ज्यादा जरूरत होगी ?
हाँ प्रताप , आ जाओ । मैं तुम्हारे साथ चलँूगी। कैसा भी था पर मम्मीजी का तो बेटा ही था।
वह सामने की बालकनी में बैठकर प्रताप का इंतजार करने लगी । तभी उसकी नजर सामने खेलते बच्चों पर गई जो टीचर-टीचर खेल रहे थे। उन्हें यह खेल खेलता देख मान्या को याद आ गया कि बचपन में वे दोनों भाई-बहन भी ऐसे ही खेलते थे । उस समय भला किसे पता था कि मान्या के भाग्य में टीचर बनना ही लिखा है। सच ही है , भविष्य का किसी को नहीं पता । पढ़ाई पूरी करने के बाद भी नौकरी के बारे में तो सोचा भी नहीं था।
मम्मी-पापा भी यही चाहते थे कि जो करना है ,शादी के बाद करना। जिस दिन सुशांत के साथ सगाई हुई , मम्मी चहककर बोली- कभी सोचा भी नहीं था कि मान्या इतने बड़े धर में जाएगी अब तो नौकरी का प्रश्न ही नहीं उठता । दो-दो पेद्रोल पंप हैं , गैस ऐजेंसी हैं। वे लोग ही औरों को नौकरी पर रखते हैं। वैसे भाभी ने कह दिया कि मान्या घर में खाली बैठने वाली नहीं है। बड़ा मन करेगा तो चली जाया करना ,सुशांत के साथ दफ्तर।
कभी-कभी मान्या को मम्मी की बातों में अहंकार की बू भी आती थी। वह शादी करके राजसी ठाठ भोगने लगी । शादी के पहले छह महीने तो मौज मस्ती में ही गुजर गए। उसके बाद एक दिन सुशांत बोला- मान्या डार्लिंग , बहुत हो चुका रोमांस । अब काम भी देखना है। तुम अपने तरीके से जिंदगी जीने के लिए आजाद हो ।
मेरे घर आने-जाने का कोई समय नहीं होता तो प्लीज कभी टोका-टाकी मत करना । मान्या साधारण मध्यमवर्ग की लड़की , उसे लगा- भई इतना बड़ा बिजनेस है तो मेहनत तो करनी ही पड़ती होगी। और फिर जो नौकरी पेशा लोग होते हैं वे कौन सा चैबीसों घंटे पत्नी के पास रहते हैं? ज्यादा से ज्यादा दस बजे तक आ जाया करेगा।
अब मान्या का समय अपनी सास और ननद के साथ गुजरने लगा । सास तो बिल्कुल मम्मी जैसी थी। ननद महक के साथ उसकी खूब पटती थी । मान्या को आज भी याद आती हैं अपनी सास की बातें। वे अक्सर कहती- मान्या बेटा , तुम भी आॅफिस ज्वाइन कर लो। इस तरह सुशांत के साथ भी रहोगी और बाहर निकलने से तुम्हारा आत्मविश्वास भी बढ़ेगा।
पर मम्मी आप भी तो घर पर ही रहती है। मुझे बोरियत नहीं होती ।
अरे बेटा , हमारा जमाना अलग था। अब हर लड़का चाहता है कि उसकी पत्नी किसी हीरोइन की तरह लगे ,केवल सुंदरता में ही नहीं , फैशन में , नाॅलिज में , हर चीज में तेज तर्रार । तुम अभी काॅलिज से निकली ही हो तो तुम्हें अभी आदत है। एक बार घर में रहने का रूटिन बन गया तो वैसी ही आदत पड़ जाती है।
मान्या ने सास की हर बात को हँसी में उड़ा दिया । धीरे-धीरे उसे आराम की आदत पड़ गई। सुबह दस-दस बजे तक सोना ,पूरा दिन फोन पर ,घूमना-फिरना। पर एक दिन इन सबसे भी मन भर जाता है। मान्या के विवाह को पाँच साल हो गए। अब हर कोई परिवार कोे आगे बढ़ाने के बारे में सवाल करने लगा। लोगों को लगता था कि जानबूझकर अभी तक बच्चे की प्लांिनंग नहीं की जबकि सच्चाई दूसरी थी।
माँ के जोर देने पर सुशांत मान्या को बिजनेस टूर पर ले तो जाता था पर मान्या गाइड के साथ घूमती । सोशल मीडिया पर उसकी फोटो देखकर लोगों को लगता कि मान्या तो सपनों सी जिंदगी जी रही है। बिजनेस पार्टी में जाने के नाम से उसे घबराहट होती और वह होटल के कमरे में अकेली बैठी रहती। हर रोज झगड़े। सुशांत की मान्या में कोई दिलचस्पी नहीं थी। जिस तिरस्कार को मान्या तकरीबन पिछले तीन सालों से मन ही मन झेल रही थी
आखिर एक दिन सुबह-सुबह वो सुशांत ने खुले शब्दों में बयां कर दिया- जाहिल गँवार औरत, मैंने तो यह सोचकर शादी की थी कि चुपचाप पड़ी रहोगी वरना क्या तुम मेरे लायक थी ? सोचा था कि जहाँ घर में इतने नौकर है तुम भी बिना सवाल के ,खुद भी रहोगी और मुझे भी शांति से रहने दोगी । पर तुम तो अधिकार मँागने लगी । एक बच्चा तक तो पैदा कर नहीं पाई ,बांझ कहीं की । आगे से कभी कोई प्रश्न किया तो घर से निकाल दँूगा।
तभी धड़ाम से दरवाजा खुला और मान्या की सास जोरदार तमाचा मारते हुए चीखी-वाह बेटा , बिल्कुल अपने बाप पर गया है। या यँू कहँू कि उससे भी दो हाथ आगे ही है। कम से कम उसने जीवन काटने के लिए औलाद तो पैदा कर दी थी। बांझ मान्या नहीं बल्कि नपँुसक तू है जो अपनी पत्नी का सम्मान करना भी नहीं जानता ।
मैं आज तक इसलिए खामोश रही कि मेरे बच्चों के सामने उनके पिता की असलियत प्रकट ना हो । मैं तो इस गलतफहमी में जी रही थी कि मेरे सुशांत में मेरा भी खून है। यदि उसे अपने पिता की अय्याशियों का पता चल गया तो शायद वो अपनी माँ का अपमान सह नहीं पाएगा। पत्नी क्या सिर्फ बच्चे पैदा करने के लिए ही होती है?
मान्या , अपना सामान पैक करो । भगवान का शुक्र है कि कोई बच्चा नहीं हुआ वरना तुम भी मेरी तरह समझौता करने की साोचती । जो मेरे साथ हुआ वो तुम्हारे साथ नहीं होगा। मैं खुद गवाही दँूगी , तुम्हारे सम्मान और अधिकार के लिए ।
सचमुच मान्या की सास ने कठोर कदम उठाया । वकील से मिलकर उसका तलाक करवाया और अच्छी खासी रकम ,उसके नाम करवाई।
जिस दिन केस की अंतिम तारीख थी उस दिन फैसले के बाद मान्या सास के गले लगकर खूब रोई । रोते-रोते मान्या बोली- मम्मी जी , काश मैंने आपकी बात मानकर आॅफिस जाना शुरू कर दिया होता।
नहीं बेटा , यह समस्या का हल नहीं था। मुझसे वादा करो कि सम्मान के साथ जिओगी और हमेशा अपनी इस माँ के साथ अपना सुख-दुख साझा करोगी ।
तलाक के बाद मान्या अपने मायके चली गई। महीने में एक बार सुशांत की माँ अवश्य आती। उनके ही समझाने पर मान्या ने एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी के लिए आवेदन किया और पढ़ाने लगी। धीरे-धीरे उसका खोया आत्मविश्वास लौटा।
फिर एक दिन मान्या ने मम्मीजी को प्रताप के बारे में बताते हुए फोन पर कहा- मम्मी , मेरे साथ पढ़ाने वाली मेरी सहेली का भाई है प्रताप । पिछले एक साल से जान-पहचान है। मैं चाहती हँू कि एक बार आप भी मिल लें। वैसे मम्मी-पापा और भइया मिल चुके हैं। मै आपसे मिलने के बाद ही अपना फैसला बताऊँगी।
तभी नीचे से कार के हाॅर्न को सुनकर मान्या की तंद्रा टूटी और वह सुशांत के अंतिम संस्कार में जाने के लिए भारी कदमों से सीढ़ियाँ उतरने लगी।
करुणा मलिक