रिटायरमें – रश्मि झा मिश्रा 

“.…चलिए ना हम भी कहीं चलते हैं घूमने… शादी के दस साल हो गए… अभी तक हम कहीं भी घूमने नहीं गए…!”

” घूमने नहीं गए… उसके पीछे की वजह भी तो देखो… कितनी जिम्मेदारियां हैं हमारे सर पर… और घूमना क्या मुफ्त में होता है…!”

” अरे… मैं कहां कह रही मुफ्त में होता है… लेकिन सब हेलीकॉप्टर से ही थोड़े ही घूमते हैं… चलिए ना मां को भी लेते चलेंगे… कितना खुश होंगी…!”

” मां की चिंता तुम मत करो… मां सब धाम घूम चुकी है… पापा की नौकरी ही थी रेलवे में… खूब घूमे हैं हम बचपन में…!”

” पर मैं तो नहीं घूमी ना…!”

” अरे बाबा ठीक है… तुम्हें भी घुमा दूंगा… थोड़ा बच्चे बड़े हो जाएं…!”

 बच्चों के बड़े होते-होते बच्चे बाहर निकल गए… अपने-अपने भविष्य की तलाश में… एक दिन माहेश्वरी जी ने उदास स्वर में अपने पति से कहा…

” अब तो लगता है घूमने फिरने का, तीर्थाटन करने का सपना… सपना ही रह जाएगा… बच्चे बड़े होते-होते घर से बाहर चले गए… अब तो चलिए कहीं…!”

” तुम चिंता मत करो… सब मिलकर चलेंगे… पांच छः साल में रिटायरमेंट है… रिटायरमेंट के बाद काम ही क्या रहेगा मुझे… सारी जिंदगी जिम्मेदारियां निभाते बीत गई… अब रिटायरमेंट के बाद निश्चिंत होकर मैं और तुम पूरा देश घूमेंगे…!”

 माहेश्वरी जी कितने ही प्रयास करके थक जातीं… लेकिन रामेश्वर जी के पास जो यह नया बहाना था… उसके आगे सारी बातें ओछी हो जाती थी…

 पांच साल कैसे बीत गए… दोनों बेटों का ब्याह हो गया… गुड़िया जैसी दो बहुएं आ गईं… सौरभ और राघव दो बेटे थे माहेश्वरी जी के… सौरभ अपनी पत्नी के साथ विदेश चला गया… उसकी नौकरी वहीं लगी थी… मगर राघव मां पापा के साथ ही रहता था… वहीं कुछ काम धंधा करने लगा था…

 रामेश्वर जी ने बड़ा ही खूबसूरत घर बनाया था… रिटायरमेंट से पहले घर बनकर तैयार हो गया… राघव अपनी पत्नी के साथ इसी घर में रहता था… रिटायरमेंट के साल भर के भीतर ही रामेश्वर जी बहुत बीमार पड़ गए… बेटों की लाख कोशिशों के बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका…

 जीवन के अंतिम क्षणों में माहेश्वरी जी का हाथ थामे रामेश्वर जी ने आंखों में आंसू भर उनसे क्षमा याचना की… “मुझे माफ करना माहेश्वरी… अपने सुख के दिनों में मैं तुम्हारी इच्छा का सम्मान नहीं कर पाया… सोचा था रिटायरमेंट के बाद, सबसे बेहतरीन सुख और शांति का समय मिलेगा… हम साथ में घूमते फिरते जीवन का आनंद लेंगे… लेकिन समय देखकर कोई कार्य नहीं होता… समय रहते होता है… यह भूल गया था मैं…!”

 माहेश्वरी जी कुछ ना बोल पाईं… रामेश्वर जी चले गए…

 एक शाम माहेश्वरी जी बाहर आंगन में… आराम कुर्सी पर माथा टेके… हाथ में तुलसी माला फेरते बैठी थी… राघव अभी दफ्तर से नहीं आया था… घर में बच्चों की चहल-पहल हो रही थी… रितु बच्चों के पीछे लगी हुई थी… राघव दफ्तर से आकर सीधे मां के पास वाली कुर्सी पर बैठ गया…

” मां अगले हफ्ते हम जाएंगे…!”

 माहेश्वरी जी ने अचानक आंखें खोल दी…” कहां जाएंगे…!”

” महाकाल के दर्शन करने… सोच रहा हूं पहले तुम्हें वहीं से घुमा लाऊं… यहां से अधिक दूर भी नहीं है ना इसलिए…!”

 माहेश्वरी जी ने अपनी आंखें फिर बंद कर ली..… “रहने दो राघव… जिनके साथ घूमना था वह तो रहे नहीं… अब कहीं जाने का मन भी नहीं होता…!”

” नहीं मां… चलो न… सिर्फ हम तुम चलेंगे… अच्छे से दर्शन करके लौट आएंगे…!”

” क्यों रितु और बच्चे नहीं जाएंगे…!”

” नहीं रितु का अभी मन नहीं… मैंने पूछा था… वह बोली… मां को घुमा लाओ… अभी बच्चों को लेकर जाना बहुत समस्या होगी… बच्चे थोड़े बड़े हो जाएं तब जाएंगे…!”

 माहेश्वरी जी चुप हो गईं… रात को खाना खाने के बाद, जब रितु कमरे की लाइट बंद करने आई तो माहेश्वरी जी ने उसे अपने पास बुलाया…

” रितु बेटा… इधर तो आओ…!”

” जी मां… क्या हुआ… कुछ चाहिए क्या…!”

” नहीं बेटा… कुछ नहीं चाहिए… तुम कहीं घूमने नहीं जाना चाहती हो क्या…!”

” अरे मां.… मन तो करता है… पर कितनी जिम्मेदारियां हैं अभी… आप तो जानती हैं… आप जाइए ना अभी… हम लोग बाद में जाते रहेंगे… अभी बहुत समय है… बच्चे थोड़ा बड़े हो जाएं… समझदार हो जाएं… तब जाएंगे…!”

” नहीं बेटा… ऐसा कभी मत कहना… समय कभी बहुत नहीं होता… जब जो मौका मिले… प्रभु जो रास्ता दिखाएं… बस उसी पर चले चलना… तुम्हारे ससुर जी भी हर समय बस यही कहा करते थे… रिटायरमेंट के बाद अभी नहीं… लेकिन भगवान कब रिटायर कर दें… इसका लेखा उन्हीं के पास होता है… मुझे तो तुम लोगों के साथ ही जाना है… तुम सब जाओगे तभी मैं जाऊंगी… वरना नहीं…!”

 रितु हंस पड़ी…” ठीक है मां… जैसा आप कहें… अगले हफ्ते हम सब जाएंगे… और जहां भी जाएंगे साथ ही जाएंगे… ठीक है ना…!”

” हां बेटा… यह ठीक है…!” माहेश्वरी जी ने प्यार से रितु के सर पर हाथ फेरा और चैन से सो गईं…

रश्मि झा मिश्रा 

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