शादी को दस साल हो गए थे उसकी।इन दस साल में पहली बार रक्षाबंधन पर अपने मायके आ रही थी। शादी के पाँच महीने बाद ही अमेरिका में जॉब लग गई थी पति की और फिर दोनों वही शिफ्ट हो गए। समय बीतता गया लेकिन व्यस्तताओं के चलते तबसे दो ही बार घर आ पाई थी ।एक, छोटी बहन की शादी में और दूसरी बार
,माँ बीमार थी,तो उनसे मिलने । हर साल राखी भेजती थी अमेरिका से लेकिन शादी के बाद यह पहली राखी थी जब घर जाने का मौका मिला था।
फ्लाइट में बैठते ही मन पुरानी यादों की और उड़ चला। दो बहने ही थी, भाई नहीं था।लेकिन पापा ने कभी रक्षाबंधन पर भाई की कमी महसूस नहीं होने दी। पापा दोनों बहनों से राखी बंधवाते थे।दोनों बहनों में लड़ाई शुरू हो जाती
“पहले मैं राखी बाँधूँगी”
“नहीं, पहले मैं”
“मैं बड़ी हूँ, इसलिए पहले मैं”
“पहले मैं, क्योंकि मैं छोटी हूँ”
दोनो के पास अपने अपने तर्क होते।लेकिन लड़ाई आगे बढ़ती, इतने में पापा दोनों हाथ आगे करते और कहते
“लड़ो मत, दोनों एक साथ बाँधो”
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यही क्रम हर साल चलता रहा और दोनों बहने बड़ी हो गई लेकिन राखी बांधने के लिए “पहले मैं,पहले मैं” की नोकझोंक तब भी बरकरार रही।और फिर दस साल ऐसे बीते कि उसका त्यौहार सूना ही रहा। हाँ मगर संतुष्टि थी कि छोटी बहन आ जाती थी तो पापा का हाथ कभी सूना नहीं रहा।
फ्लाइट लैंड हुई और कुछ ही देर में वह अपने घर पहुंच गई। जोरदार स्वागत हुआ, सब गले मिले, खूब सारी बातें की। अगले दिन दोनों बहने पापा को राखी बांधने के लिए तैयार हुई।दोनों टीके की थाली लेकर चली। बड़ी ने छोटी की तरफ देखा और छोटी ने बड़ी की तरफ।
” पहले तू बांध”
” नहीं, मैं बाद में, पहले तू”
“हर बार तू पापा को राखी बांधती है, इस बार भी तू ही पहले बांध”
“मैं तो हर बार बांधती हूँ, इस बार पहले तू”
साल बीत गए थे। बहने बड़ी हो गई थी और समझदार भी। मगर नोकझोंक आज भी थी हाँ मगर अब वजह बदली हुई थी। “पहले मैं, पहले मैं” की जगह “पहले तू,पहले तू” ने ले ली थी।पापा खतरे की स्थिति भांप चुके थे।इससे पहले कि लड़ाई और बढ़ती… पापा दोनों हाथ आगे कर चुके थे।
शिखा जैन
स्वरचित