मंजरी का विवाह एक सम्पन्न परिवार में हुआ था,वह बहुत खुश थी। चूंकि वो एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार से थी,तो उसके लिए यह शादी किसी सपने के पूरी होने जैसे थी।वो अपने को बहुत किस्मतवाली मानती थी । वह सुबह जल्दी उठने से लेकर घर के सारे कार्यों की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले चुकी थी। सास ससुर संतुष्ट थे उससे, और हों भी क्यों न घर के कामों में कुशल थी मंजरी,आधुनिकता की चकाचौंध से दूर परिवेश मे पली बढ़ी थी, तो बहुत सादगीपूर्ण व्यक्तित्व था उसका। उसके पति पंकज दूसरे शहर में नौकरी करते थे,वे यदाकदा ही घर आते और अनमने से रहते,अपने माता पिता से भी ज़्यादा मतलब नहीं रखते थे।
मंजरी कुछ ज़्यादा ही घरेलू लड़की थी और घर परिवार के कामों के प्रति समर्पित थी तो कुछ दिनों तक तो उसने अपने पति के व्यवहार पर ध्यान न दिया,पर धीरे धीरे उसे यह बात खटकने लगी कि पंकज और उसमें अभी भी बहुत दूरियां थीं। पंकज मंजरी को अपने साथ ले जाने का नाम तक नहीं लेते,वो मन मारकर रह जाती।
मंजरी के ससुर उसके प्रति बहुत वात्सल्य रखते थे,पर सासू मां का झुकाव बेटे की तरफ ज्यादा था। हालांकि मंजरी दोनों के लिये बहुत सेवाभाव रखती थी।पर उसके निजी जीवन में बहुत रिक्तता थी। कुल मिलाकर मंजरी को अपना जीवन तब और कठिन दिखाई देने लगा जब उसे यह पता चला कि पंकज की शादी उनकी मर्जी के खिलाफ हुई है,
वो किसी और को चाहते थे। इसी खींचातानी में दो साल बीत गए,इस वक़्त में मंजरी ने भरपूर कोशिश की अपने वैवाहिक जीवन को बचाने की और कुछ हद तक वह सफल भी होने लगी थी। पंकज के व्यवहार में धीरे धीरे परिवर्तन आ रहा था,वे पत्नी के प्रति नरम हो रहे थे। उनका अतीत धूमिल पड़ रहा था,वो अपना वर्तमान अपनाने को कदम बढ़ा रहे थे। उनके माता पिता लगातार पोते पोती की रट लगाकर बैठे थे, पंकज ने भी सोच लिया अब मंजरी के साथ परिवार बढ़ेगा तो सब ठीक हो जाएगा।बच्चों के साथ ज़िंदगी की गाड़ी पटरी पर आ जायेगी,पंकज को बच्चे बहुत पसंद थे।
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लेकिन कभी कभी ज़िंदगी भी इम्तिहान लेने की कमर कस लेती है और ऐसी ही परीक्षा की घड़ी मंजरी के सामने हाथ पसार कर खड़ी थी। सास ससुर और पतिदेव अपने आंगन में नन्ही किलकारियां सुनने को आतुर थे,पर न जाने क्यों मंजरी सहमी हुई थी…. ।एक साल बाद डॉक्टरों के यहाँ चक्कर लगने शुरू हुए ,पता चला मंजरी गर्भ धारण ही नही कर सकती। उसके दोनों फ़ॉलोपीएन ट्यूब बन्द थे, बच्चेदानी में भी खराबी थी। मंजरी के घरवालों ने पंकज के परिवार से यह बात छुपाये रखी थी और जानकारी के अभाव में उसका इलाज भी नहीं कराया था। उनकी लापरवाही का खामियाजा आज मंजरी अपने जीवन को दांव पर लगाकर भुगतान कर रही थी।
यह सच जानने के बाद पंकज को गहरा सदमा लगा,चूंकि शादी पहले ही बेमन से की थी तो यह बहुत बड़ी वजह थी इस शादी को न निभा पाने की……उधर मंजरी टूट सी गयी थी, उसके माता पिता की लापरवाही से उसका जीवन नरक बन गया था। पंकज की माँ भी यह जानने के बाद कि उनका वंश आगे नहीं बढ़ेगा,बहू के खिलाफ हो चुकी थीं। उन्होंने मंजरी के सामने ये प्रस्ताव तक रखा कि हम अपने बेटे की दूसरी शादी करेंगे,तुम चाहो तो घर मे रह सकती हो और चाहो तो छोड़ कर जा सकती हो। दोनों तरफ से ही मंजरी की हार थी,
फिर भी वो अपने माता पिता के बारे में सोचकर चुप रही क्योंकि वो अभी तक शादी में लिया हुआ कर्ज़ उतार रहे थे।
पंकज के पिता ने यह शादी ज़बरदस्ती कराई थी,तो उन्होंने हर सम्भव प्रयास किया बेटे बहू की गृहस्थी को बचाने की,पर वे असफल रहे। पंकज ने फैसला किया कि अब वो मंजरी के साथ नही रह सकता,क्योंकि जिस आधार पर वो ज़िन्दगी में आगे बढ़ने को तैयार हुआ था आज वो आधार ही धराशायी हो चुका था……मंजरी का रो रोकर बुरा हाल था,उसे अपनी ज़िंदगी काली स्याही जैसी दिख रही थी जिस पर अब कोई और रंग नहीं चढ़ सकता था।
मंजरी तो बदनसीबी को ही अपना भाग्य मान चुकी थी,वो तो पंकज की दूसरी शादी के लिए भी तैयार थी। पर जब उसके भाई और माता पिता को यह सब पता चला तो उन्होंने अपनी बेटी की लाचारी को अनुभव करके पहले आपस मे बातचीत करके मसले को हल करने की कोशिश की पर जब बात नही बनी तो उन सबने कोर्ट के चक्कर लगाने शुरू किए, मंजरी बेबस थी, उसकी ज़िंदगी दूसरों के हाथों का खिलौना बन के रह गई थी।
आये दिन कचहरी जाना और वकीलों के उल जुलूल सवालों के जवाब देना उसकी अनचाही दिनचर्या का हिस्सा बन चुका था। कहाँ वो किसी के घर की लाज बनने चली थी और कहाँ उसी की लाज की निर्लज्जता से धज्जियां उड़ाई जा रही थीं।
महीनों दौड़भाग करने के बाद जब तलाक हो गया तो कचहरी के बाहर ही उसका सामना पंकज से हुआ,पंकज ने नफरत से मुंह फेर लिया….मंजरी ने पास जाकर बोला,”जानते हो आपमें और मुझमें क्या फर्क है??? तो सुन लीजिये कि अगर शादी के बाद मुझे ये पता चलता कि आप पिता नही बन सकते तो भी मैं कभी भी आपको छोड़कर नहीं जाती। दुनिया शायद मुझे ही बांझ कहती फिर भी मैं किसी से न कह पाती कि कमी आपमें है। मैं उसी कमी को अपनी किस्मत मान लेती…. और आपने भरे समाज मे मेरी धज्जियां उड़ा के रख दीं।
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हम बच्चा गोद भी ले सकते थे,आप मेरा इलाज भी करा के देख सकते थे ,पर आपने मुझे बीच मंझधार में छोड़ने का फैसला किया। पर मेरी एक बात याद रखियेगा कि भविष्य में आप हर सुख सुविधा से परिपूर्ण हो सकते हैं,लेकिन कभी सुकून से नही जी पाएंगे।।”
यह कहकर मंजरी अपने माता पिता के साथ चली गई….पंकज अपराधबोध लिए वहीं खड़ा रह गया क्योंकि उसने तो प्रयास भी नहीं किया था मंजरी का इलाज कराने का ,उसकी पीड़ा को समझने का,उसकी मनोदशा को पढ़ने का,उसके मन का दर्द बांटने का….आखिर पति होने के नाते इतना फ़र्ज़ तो उसका भी था।
जीवन अपनी गति से चल रहा था,कुछ समय बाद पंकज ने शादी कर ली। इस बार जो पत्नी आयी वो बस देखने मे ही गोरी त्वचा की थी,मन से उतनी ही काली या यों कहें कि स्वभाव में मंजरी के एक दम विपरीत….मंजरी की तेज आवाज आज तक किसी ने नहीं सुनी थी और अब जो बहू आयी थी ,वो बीच आंगन में खड़े होकर सबकी इज़्ज़त उतारती थी।
उसने पंकज को औलाद का सुख तो दे दिया पर और सारे सुखों से वंचित कर दिया। पंकज अपने आप को बड़ा असहाय महसूस करता जब अपने माँ बाप की बेइज्जती होते देखता और हर वक़्त लड़ाई झगड़े में उलझा रहता। दूसरी पत्नी की वजह से आए दिन लड़ाई झगड़ा और गाली गलौज उसके जीवन का हिस्सा बन चुकी थी ।उसको पहले दिन से अपनी पत्नी से सम्मान नही मिला,भावनात्मक सम्बल नही मिला। आज वो मंजरी के एकाकीपन की पीड़ा को महसूस कर पा रहा था।उसकी आत्मा उसको कचोट रही थी कि ये सारी मानसिक प्रताणनाएं उसको उस सहनशीलता की प्रतिमूर्ति को बिखेर देने के कारण ही मिल रही हैं।
आज पंकज के बच्चे ज़रूर थे पर उसका सुख,चैन,घर की शांति,बुजुर्ग माता पिता की संतुष्टि,उसका आत्मविश्वास,उसका सुकून,उसके पति होने का सम्मानित एहसास,घर का एक एक कोना मंजरी को ढूंढ रहे थे। और शायद पंकज को यह एहसास हो गया था कि मंजरी शायद वाकई किस्मत वाली थी जो इस भावनाविहीन परिवार से उसका संबंध टूट गया। ये परिवार और पंकज स्वयं मंजरी के योग्य नहीं था।
सच ही कहा गया है कि जो आप दूसरों को देते हैं, प्रकृति आपको वही लौटाती है। अपना किया हुआ लौट कर ज़रूर आता है । तो क्यों न कुछ अच्छा ही किया जाए। क्यों न हम किसी के लिए छोटी सी सही पर खुशी की वजह बनें न कि दुख की।
धन्यवाद।
सिन्नी पाण्डेय
# किस्मतवाली