मधु के अन्दर जाते ही रीमा भाभी मुंह बनाकर बड़बड़ाने लगी “मुझे क्या पड़ी है दूसरों के घरों में आग लगाने की मैंने तो तुम्हारा भला सोच कर तुम्हें आगाह करना चाह अब तुम भाड़ में जाओ मेरी बला से कल देख लेना अगर सिर पर हाथ रखकर तुम न रोईं तो मेरा नाम भी रीमा नहीं”
” क्या हुआ रीमा भाभी आप अकेले में किससे बातें कर रही हैं”? तभी पड़ोस की सलमा ने वहां आते हुए हंसकर पूछा
” अरे यह जो अपनी मधु है मैं इसे इसके पति और बहन की करतूतों के बारे में बताने लगी तो वह मुझे ही खरा खोटा सुनाकर चली गई आज कल तो अच्छाई का जमाना ही नहीं रहा सलमा मेरे पति ने सुरेश और उसकी साली को बैंगलूरू के एक होटल में देखा था वह दोनों टूर के नाम पर अय्याशी करने अलग अलग शहरों में जाते हैं मधु ठहरी सीधी साधी मैंने सोचा उसे सचेत कर दूं तो वह मुंह बनाकर कहने लगी मेरे घर में आग लगाने की जरूरत नहीं है अपना घर देखो” रीमा ने गुस्से में सलमा से कहा
” रीमा भाभी आप बिल्कुल सही कह रही हैं मेरे पति ने भी एक बार दोनों को नोएडा के माल में देखा था पर मैं तो ऐसी बातों से दूर ही रहती हूं मधु इतनी बेवकूफ तो है नहीं अगर वह सब कुछ जानते समझते हुए भी बर्दाश्त कर रही है तो वह जाने अगर वह अंजान है तो उसे दूसरों की बातों को सुनकर उस के बारे में सोचना चाहिए पर वह ऐसा नहीं कर रही है तो उसका खामियाजा वह खुद भोगेगी हमें क्या करना है आप चलिए अपना दिमाग़ ख़राब करने से कोई लाभ नहीं है” सलमा ने कहा
” तुम ठीक कह रही हो मेरा काम था उसे सचेत करना अब वह जाने उसे क्या करना चाहिए” रीमा ने कहा और दोनों अपने अपने घरों में चली गई।
उधर मधु रीमा की बात सुनकर परेशान हो गई उसके मन में भी शक का कीड़ा रेंगने लगा उसे भी रीमा की बात ठीक लगी उसने सोच लिया की इस बार सुरेश जैसे ही आएंगे वह उनसे निशा की शादी की बात करेगी अब तो निशा अच्छा कमाने लगी है यह विचार आते ही उसके मन को सुकून मिल गया।
एक सप्ताह बाद जब सुरेश और निशा लौटकर आए तो रात के डिनर के समय मधु ने मुस्कुराते हुए सुरेश से कहा,
” मैं बहुत दिनों से आपसे एक बात कहना चाह रही थी”
” क्या कहना चाहती हो कहो उसमें संकोच करने की क्या बात है”? सुरेश ने भी हंसकर कहा
” अब आप निशा के लिए कोई लड़का देखिए इसकी शादी की उम्र हो गई है” मधु ने गम्भीर लहज़े में कहा
” तुम पागल हो गई हो क्या लड़का कोई दुकान में बिकता है जो मैं देखकर ले आऊं जब कोई अच्छा लड़का मिलेगा तो शादी भी हो जाएगी सुरेश ने गुस्से में चिल्लाकर जबाव दिया
” सुरेश बहू ने ऐसा क्या कह दिया जो तुम्हें इतना गुस्सा आ गया वह ठीक ही तो कह रही है कब तक हम इस निशा को अपने घर में रखेंगे एक न एक दिन तो इसकी शादी करनी ही है निशा की शादी की बात सुनकर तुम क्यों तिलमिला उठे” ? सुरेश की मां ने गुस्से में कठोर शब्दों में पूछा
तबतक सुरेश को अपनी ग़लती का अहसास हो गया था और अपनी मां की बात सुनकर उसके और निशा के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं सुरेश ने सकपकाते हुए जल्दी से कहा ” नहीं मां मेरा मतलब वह नहीं था इतनी जल्दी लड़का कहां मिलेगा”
” तो क्या बहू ने यह कहा था कि, तुम कल ही निशा की शादी कर दो जो तुम उसके ऊपर भड़क उठे”? सुरेश की मां ने गुस्से में पूछा
” नहीं मां मैं कुछ और सोच रहा था कुछ आफिस की परेशानियां हैं मैं उसी बात को लेकर परेशान था तभी मधु ने शादी की बात छेड़ दी और मुझे गुस्सा आ गया” सुरेश ने सफाई देते हुए कहा
” सुरेश मैं अंधी नहीं हूं मुझे सब दिखाई देता है और शुक्र मनाओ की तुम्हें मधु जैसी समझदार पत्नी मिली है कोई दूसरी होती तो तुम्हें बताती की इस तरह बात करने का क्या नतीजा होता है आज के बाद अगर तुमने बहू से इस लहज़े में बात की तो ठीक नहीं होगा ” सुरेश की मां ने गुस्से में उसे घूरते हुए कहा
अपनी मां की बात सुनकर सुरेश ने अपना सिर झुका लिया निशा भी बगलें झांकने लगी फिर कुछ देर रूककर सुरेश की मां ममता जी ने मधु की ओर मुखातिब होते हुए कहा ” बहू तुम भी अपने आंख कान खोलकर रखो तुम्हारे आसपास क्या हो रहा है नहीं तो बाद में तुम्हें पछताना पड़ेगा”
ममता जी की बात सुनकर सुरेश, निशा और मधु के चेहरे पर घबराहट के भाव दिखाई देने लगे खाना खाने के बाद ममता जी अपने कमरे की ओर चली गई।
सुरेश भी वहां से चला गया मधु तारा के साथ मिलकर रसोई को समेटने में लग गई निशा कुछ देर वहां बैठी रही फिर वह भी अपने कमरे में चली गई।
रात भर किसी की आंखों में नींद नहीं थी सभी के मन में विचारों की आंधियां चल रही थीं सुबह हर दिन की तरह सभी अपने अपने कामों में मशगूल थे नियति समय पर निशा सुरेश के साथ आफिस चली गई जब शाम को वह सुरेश के साथ वापस लौटी तो सीधे अपने कमरे में ना जाकर हाल में आकर मधु के पास बैठ गई।
वही ममता जी भी मधु के साथ बैठी चाय पी रहीं थीं जब निशा वहां आकर बैठी तो तारा चाची ने व्यंग से मुस्कुराते हुए पूछा ” निशा बिटिया आज आप आफिस का काम करके थके नहीं हो जो यहां आकर बैठ गई हो रोज तो तुम सीधे अपने कमरे में चली जाती हो आपकी चाय यहीं लाऊं या तुम अपने कमरे में ही पियोगी”?
” चाची मेरी भी चाय यहीं लेकर आइए मुझे आज दीदी से कुछ बात करनी है” निशा ने मुस्कुराते हुए कहा
” मुझसे क्या बात करनी है तुम्हें”? मधु ने पूछा
” दीदी बात ऐ है कि,•••• मैं•••• आपसे कैसे••• कहूं मुझे डर लग रहा है” निशा ने डरते हुए रुक रुक कर कहा
” तुम संकोच क्यों कर रही हो जो भी कहना है खुलकर कहो” मधु ने मुस्कुराते हुए पूछा
” दीदी मैं किसी से प्यार करतीं हूं” मधु ने सर झुकाकर जल्दी से कहा
” क्या कहा तुमने•••• मधु ने चौंककर पूछा
क्रमशः
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित अयोध्या उत्तर प्रदेश