” यहां बैठे हुए मुझे क्या देख रहे हैं जीजाजी जाइए कपड़े बदलकर डाइनिंग हॉल में जल्दी से आ जाइए कल से मैं आपके साथ ही आफिस जाऊंगी और आऊंगी तब देखते रहिएगा अपनी स्मार्ट साली
को यहां अगर मां जी ने आपको मेरे साथ देख लिया तो हजार सवाल करेगी और ऐसा भी हो सकता है कि, दीदी के मन में भी शक का कीड़ा रेंगने लगे यह हमारे लिए अच्छा नहीं होगा अभी हमें संयम से काम लेना होगा ” निशा ने बहुत अदा से कहा और वहां से जाने लगी सुरेश ने उसको पकड़ने की कोशिश की पर निशा मुंह चिढ़ाते हुए भाग गई।
थोड़ी देर बाद सभी डाइनिंग टेबल पर बैठे डिनर कर रहे थे खाना खाते हुए निशा ने कहा “दीदी मुझे कल से ही आफिस जाना है मेरे पास अच्छी साड़ियां नहीं हैं आप मुझे अपनी कुछ साड़ियां दे दीजिए उसके बाद मैं अपने लिए साड़ियां खरीद लूंगी”
” अरे निशा इसमें पूछने की क्या बात है तुम्हें मधु की जो साड़ियां पसंद हैं वह तुम ले लो मधु वैसे भी बाहर बहुत कम जाती है उसकी सभी साड़ियां अलमारी की शोभा बढ़ा रही हैं तुम पहनोगी तो उनके दाम वसूल हो जाएंगे ” सुरेश ने हंसते हुए तुरन्त कहा
” सुरेश तुम यह क्या कह रहे हो जो साड़ियां बहू की हैं उन्हें निशा क्यों पहनेंगी वह अपने लिए दूसरी साड़ियां खरीद ले तुम ने बिना बहू से पूछे निशा से कैसे कह दिया”? सुरेश की मां ने गुस्से में कठोर शब्दों में कहा
” अरे मां मैं तो इसलिए कह रहा था कि, मधु की साड़ियां सिर्फ़ अलमारी में पड़ी हुई हैं ” सुरेश ने सकपका कर जल्दी से कहा
” मां जी यह ठीक कह रहे हैं मेरी साड़ियां अलमारी की शोभा बढ़ा रही हैं निशा पहनेंगी तो उनके दाम वसूल हो जाएंगे वरना अलमारी में पड़े पड़े उन्हें कीड़े काट देंगे ”
मधु ने मुस्कुराते हुए कहा
मधु की बात सुनकर निशा के चेहरे पर अजीब सी चमक आ गई जिसे मधु ने नहीं देखा पर तारा चाची की नज़रों से निशा के चेहरे की खुशी छुपी नहीं रह सकी।
जब सभी डिनर के बाद अपने कमरे में चले गए तो मधु अपनी सास को उनके कमरे में लेकर जाने लगी तब तारा चाची भी उसके साथ चल रही थीं कमरे में पहुंचकर जब मधु ने अपनी सास को बिस्तर पर लिटाया तो तारा चाची भी उसकी सहायता करती रहीं यह काम तारा चाची मधु के साथ हर दिन
करती थीं जब मधु वहां से जाने लगी तो तारा चाची ने मधु को रोकते हुए कहा ” बहू मैं तो इस घर की नौकरानी हूं मुझे तुम्हें कुछ कहने का अधिकार नहीं है पर इतना जरूर कहूंगी कि, किसी पर भी अंधविश्वास नहीं करना चाहिए फिर वह चाहे कोई कितना ही अपना सगा क्यों न हो विश्वासघात अपने ही करते हैं बहू रानी पराए नहीं क्योंकि हम विश्वास भी अपनो पर ही करते हैं आगे तुम्हारी मर्ज़ी तुम खुद समझदार हो”
” तारा बिल्कुल सही कह रही है बहू तुम अपनी बहन को ज्यादा छूट न देना की वह तुम्हारा घर ही बर्बाद कर दे आज कल किसी का कोई भरोसा नहीं है” मधु की सास ने भी गम्भीर लहज़े में कहा।
” मां जी मुझे अपने पति और बहन पर पूरा भरोसा है वह दोनों कभी भी मेरे विश्वास को नहीं तोड़ेगें वह दोनों मुझे बहुत प्यार करतें हैं” मधु ने नाराजगी भरे स्वर में कहा जैसे उसे अपने पति और बहन की बुराई अच्छी न लगी हो।
” ठीक है बहू आज के बाद हम इस विषय पर कोई बात नहीं करेंगे ईश्वर करे तुम्हारा विश्वास जीत जाए और हम दोनों के मन की शंका सिर्फ़ शंका बनकर रह जाए अब जाओ बहू सुरेश तुम्हारा इंतज़ार कर रहा होगा” मधु की सास ने कहा और अपनी आंखें बंद कर ली
मधु भी कमरे से बाहर निकल गई तारा चाची ने कमरे की लाइट बंद की और वहीं एक तरफ़ लगे बिस्तर पर लेट गई वह अपनी मालकिन के साथ उनके कमरे में ही सोती थीं।
दूसरे दिन सुबह मधु पूजा करने के बाद जब रसोई में आई तो उसने देखा कि, निशा नाश्ता बना रही है उसे नाश्ता बनाते हुए देखकर मधु ने मुस्कुराते हुए कहा ,
“निशा तुम क्यों नाश्ता बना रही हो जाओ तैयार हो तुम्हें आफिस जाना होगा मैं नाश्ता तैयार कर देती हूं”
” दीदी आज मुझे और जीजाजी को थोड़ा जल्दी जाना है इसलिए मैंने अपना और जीजाजी का नाश्ता बना लिया है आप अपना और सभी का नाश्ता बना लीजिए” निशा इतना कहकर अपना और सुरेश का नाश्ता लेकर रसोई से बाहर निकल गई।
मधु अवाक खड़ी निशा को जाते हुए देखती रही पहले उसके मन में शक का कीड़ा काटने लगा लेकिन तुरंत उसने खुद से कहा मैं भी कितनी पागल हूं आज उन लोगों को जल्दी जाना था तो उसने नाश्ता बना लिया इसमें इतना परेशान होने की क्या बात है मैं कुछ ज्यादा ही सोचने लगी यह सब मां जी और तारा चाची की बातों का असर है।
फिर वह ख़ुशी ख़ुशी नाश्ता तैयार करने में लग गई उधर सुरेश और निशा आफिस के लिए तैयार होकर हाल में आ गए सुरेश ने मधु को हाय कहा और निशा के साथ घर से बाहर निकल गए निशा ने आज मधु की ही सिल्क की पीले रंग की साड़ी पहनी हुई थी उसने अपने बालों को खुला छोड़ रखा था
आंखों में काजल लगा था उसने होंठों पर हल्के मैरून रंग की लिपिस्टिक लगाई थी वह आज बहुत ही सुन्दर और स्मार्ट लग रही थी मधु अपनी बहन को देखकर उसकी बलाएं ली और कहा “आज तुम बहुत सुन्दर लग रही हो कहीं किसी की नज़र न लग जाए”
धीरे धीरे समय का पंक्षी पंख लगाकर उड़ने लगा देखते देखते एक साल का समय बीत गया इस बीच तो सब कुछ सामान्य रूप से चल रहा था बस सुरेश और निशा के आफिस के टूर बहुत जाने लगे थे जिसके बारे में एक बार सुरेश की मां ने सुरेश से पूछा भी था ” सुरेश इधर तुम आफिस के टूर पर बहुत जाने लगे हो और निशा भी महीने में दो बार टूर पर जाती है और एक सप्ताह के बाद वापस आती है पहले तो तुम इतना टूर पर नहीं जाते थे”?
” मां हमारे आफिस की नई ब्रांच दूसरे शहरों में खोली गई हैं इसलिए टूर पर ज्यादा जाना पड़ता है और जहां तक निशा की बात है उसका काम शुरू से टूर वाला ही था तो उसे तो टूर पर जाना ही पड़ेगा” सुरेश से खाना खाते हुए बताया।
सुरेश ने अपनी मां को जबाव तो दे दिया पर उसके मन में अंतर्द्वंद्व चलने लगा कहीं उसकी मां की बातों का असर मधु की सोच पर न पड़ जाए नहीं तो उसका बसा बसाया घर संसार उजड़ सकता है।
दूसरे दिन जब सुरेश और निशा टूर पर जाने के लिए घर से निकले तो उनके जाने के बाद मधु गेट बंद करने लगी तभी पड़ोस की रीमा भाभी ने मधु के पास आते हुए कहा,
” मधु इधर मैं देख रहीं हूं की तुम्हारे पति टूर पर बहुत जाते हैं और तुम्हारी बहन भी उनके साथ रहती है जरा उन दोनों की लगाम खींचकर रखना कहीं वह दोनों शादी न कर लें तुम अपनी बहन की शादी क्यों नहीं कर देती”
” भाभी मुझे अपने पति और बहन पर पूरा भरोसा है वह ऐसा कुछ नहीं करेंगे लोगों को तो दूसरों के घरों में आग लगाने में बहुत मज़ा आता है लोग अपना घर नहीं देखते” इतना कहकर मधु ने गेट बंद किया और घर के अंदर चली गई•••••
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डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित अयोध्या उत्तर प्रदेश