मधु के जीवन में खुशियां ही खुशियां थीं सुरेश जैसा प्यार करने वाला पति देवी जैसी सास उसके मातापिता का आशीर्वाद और उसकी छोटी बहन निशा का साथ मधु जब भी मायके जाती निशा के लिए और अपने मातापिता के लिए ढेरों उपहार लेकर जाती वह अपने आस पड़ोस में रहने वाले गरीब बच्चों के लिए भी कपड़े खिलौने लेकर जाती सभी मधु की तारीफ करते और उसे ढ़ेरों दुआएं देते मधु
की खुशियों को देखकर सभी खुश थे सिवाय निशा के निशा को मधु की खुशियां रास नहीं आ रही थीं पर मधु को इसका जरा भी भान नहीं था कि,उसकी छोटी बहन जिसे वह अपनी जान से ज्यादा प्यार करती है वह उससे ईर्ष्या करती है वह सिर्फ़ दिखावे के लिए प्यार का नाटक कर रही है धीरे धीरे समय अपनी गति से आगे बढ़ता रहा निशा ने इंटरमीडिएट की परीक्षा पास कर ली और इधर मधु की शादी को भी दो साल पूरे हो गए थे।
जब निशा की आगे की पढ़ाई की बात उठी तो मधु ने कहा की वह निशा को अपने साथ लखनऊ ले जाएगी वह मेरे पास रहकर अपनी आगे की पढ़ाई पूरी करेगी निशा भी यही चाहती थी उसे भी मधु जैसा सुख सुविधाओं से भरा जीवन चाहिए था।जब मधु ने अपने मातापिता से निशा को अपने साथ ले जाने की बात की तो वह लोग तुरंत तैयार हो गए।
मधु निशा को अपने साथ लखनऊ लेकर आ गई वहां उसका एक अच्छे कालेज में एडमिशन करा दिया धीरे धीरे निशा को शहर की हवा लगने लगी उसका मन पढ़ाई में कम फैशन में ज्यादा लगने लगा मधु ने देखा निशा जब घर में होती तो सुरेश के आगे पीछे ही घुमती रहती सुरेश किसी काम के लिए मधु को आवाज लगाते तो मधु के वहां पहुंचने से पहले ही निशा वहां पहुंचकर वह काम कर देती
मधु अपनी बहन के प्रेम में अंधी थी उसे उसकी चालाकियां समझ नहीं आ रही थीं मधु कभी कहती की “निशा रहने दो यह मेरा काम है” तो निशा नाराज़ होने का नाटक करती और बहुत प्यार जताते हुए कहती” दीदी आपके पास कितना काम रहता है मां जी का काम भी तो आप करती हैं मुझसे मां
जी का काम नहीं हो पाता तो मैं सोचती हूं कि, जीजाजी का ही कुछ काम मैं कर दूं जिससे आपको कुछ सहूलियत हो जाए अगर आपको अच्छा नहीं लगता तो आज के बाद मैं जीजाजी का कोई काम नहीं करूंगी आप कहेंगी तो भी नहीं मैं तो आपको अपनी बहन समझकर आपकी मदद करना चाहतीं हूं और आप तो मुझे पराया समझती हैं मैं तो यहां आपके घर को अपना घर समझकर रह रहीं हूं कहीं
ऐसा तो नहीं है दीदी की आप यह समझती हों की मैं आपके पति पर डोरे डालने की कोशिश कर रही हूं अगर ऐसा है तो मैं आज के बाद जब तक जीजाजी घर पर रहेंगे मैं उनके सामने नहीं आऊंगी” निशा ने एक नया ही पैंतरा चला जिसमें मासूम मधु फंस गई उसने निशा को प्यार से डांटते हुए कहा
” आज के बाद ऐसी बात की तो मैं तुझे थप्पड़ मारूंगी तू मेरी छोटी बहन है मुझे तूझ पर पूरा विश्वास है तू कभी भी मेरा विश्वास नहीं तोड़ेगी आज से तू अपने जीजाजी का काम किया कर मैं तुम्हें नहीं मना करूंगी” उसके बाद निशा ने सुरेश के हर काम को अपने जिम्मे ले लिया अब मधु को भी आसानी होने लगी उसने भी सुरेश के काम की ज़िम्मेदारियां धीरे धीरे छोड़ दीं।
मधु की सास और घर में काम करने वाली तारा चाची ने मधु को आगाह भी किया की वह सुरेश के काम को खुद करे निशा को न करने दें कहीं बाद में निशा और सुरेश की नजदिकियां उसके जीवन में तूफ़ान न ले आएं।पर मधु ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया और समय अपनी गति से आगे बढ़ता रहा।
अब निशा सुरेश के साथ ही कालेज जाने लगी शाम को उसकी के साथ लौटती मधु ने पूछा भी की अब तुम्हें कालेज से लौटने में देर क्यों हो जाती है तब निशा ने कहा “दीदी परीक्षाएं शुरू होने वाली हैं कोर्स पूरा नहीं हुआ है इसलिए एक्स्ट्रा क्लास चल रही है इस वजह से देर हो जाती है”
मधु ने निशा की बातों पर आंख बंद करके विश्वास कर लिया परीक्षाएं ख़त्म हो गई और रिजल्ट भी आ गया निशा का ग्रेजुएशन पूरा हो गया तब मधु ने अपने मातापिता से कहा कि, निशा के लिए कोई अच्छा लड़का ढूंढते हैं जिससे समय पर उसकी शादी कर दें तब उसकी मां ने कहा “बेटी बिना दान
दहेज के कोई अच्छा लड़का नहीं मिलेगा इसलिए हम लोगों ने सोचा है कि,अगर दामाद जी निशा की नौकरी लगवा दें तो उसे अच्छा घर परिवार मिल जाएगा आज कल के लड़के नौकरी वाली लड़कियां चाहते हैं”
मधु के मातापिता की बातों में सच्चाई थी तब मधु ने सुरेश से कहा की वह निशा की कहीं नौकरी लगवा दें आपकी तो इतनी अच्छी जान पहचान है।
सुरेश ने कहा ठीक है मैं कोशिश करता हूं और कुछ दिनों बाद ही एक शाम सुरेश ने घर आकर मधु को खुशखबरी दी ” मधु मधु तुम कहां हो यहां आओ” मधु जो रसोई में काम कर रही थी उसे सुरेश की खुशी में डूबी आवाज सुनाई दी सुरेश की आवाज सुनकर मधु और निशा दोनों ही हाल में आ गई मधु ने वहां आते हुए पूछा ” क्या बात है आप इतने खुश क्यों हैं”?
” बात ही ऐसी है तुम सुनोगी तो तुम भी खुशी से झूम उठोगी” सुरेश ने हंसते हुए कहा
” ऐसी कौन सी खुशी मिल गई है जो तुम इतना खुश हो रहे हो बेटा “? सुरेश की मां ने गम्भीर लहज़े में पूछा
” मां निशा को नौकरी मिल गई और वह भी मेरे आफिस के बगल वाले आफिस में तनख्वाह भी बहुत अच्छी है अब निशा हर दिन मेरे साथ ही आफिस जाएगी और मेरे साथ ही आएगी उसके आने जाने की समस्या भी ख़त्म हो गई” सुरेश ने ख़ुश होकर कहा उसकी खुशी को उसके चेहरे पर साफ़ साफ़ देखा जा सकता था।
” तुम तो इतना खुश हो रहे हो जैसे नौकरी निशा को नहीं तुम्हें मिली है” सुरेश की मां ने सुरेश को घूरते हुए कहा
अपनी मां की बात सुनकर सुरेश सकपका गया उसने जल्दी से बात बदलते हुए कहा ” मां मैं मधु के लिए ख़ुश हूं वह निशा के लिए बहुत परेशान थी उसकी उदासी मुझसे देखी नहीं जा रही थी आज जब निशा की नौकरी की खबर मुझे मिली तो मैं मधु के लिए खुश हो रहा हूं अब मुझे मधु के चहरे पर उदासी नहीं दिखाई देगी”
” भगवान करे यही बात हो” इतना कहकर सुरेश की मां वहां से चली गई।
निशा कनखियों से सुरेश को देख रही थी उसके चेहरे पर रहस्यमई मुस्कान थी सुरेश भी निशा को देखकर मंद मंद मुस्कुरा रहा था पर इन सबसे बेखबर मधु के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान फैलीं
हुई थी उसने सुरेश को प्यार से देखते हुए कहा ” आप कितने अच्छे हैं जो मेरे मातापिता और बहन की परेशानियों को अपना समझते हैं मैं आप जैसे पति को पाकर धन्य हो गई निशा देखा मैं न कहती थी तेरे जीजाजी तेरी नौकरी लगवा देंगे अब बहुत मेहनत लगन और ईमानदारी से नौकरी करना जिससे तेरे जीजाजी का नाम ख़राब न हो”
” जी दीदी आप निश्चित रहिए मैं पूरी ईमानदारी से अपना काम करूंगी जीजाजी को मुझसे कोई शिक़ायत नहीं होगी मैं पूरी तरह उन्हें ख़ुश रखूंगी वह मेरे काम को देखकर मुझे शाबाशी देंगे” निशा ने रहस्यमई मुस्कान के साथ सुरेश को देखकर कहा
मधु सुरेश और निशा की मुस्कुराहट के रहस्य को समझ ही नहीं सकी क्योंकि जिसका मन पवित्र होता है वह दूसरो को भी अपनी तरह मासूम और पवित्र ही समझते हैं मधु निशा और सुरेश की चालाकियों से बेखबर थी उसने हंसते हुए कहा,
“आज तो खुशी का दिन है मैं खाने में कुछ मीठा बना लेती हूं तब तक आप हाथ मुंह धोकर डाइनिंग हॉल में आ जाइए” मधु ने कहा और रसोई की तरफ़ चली गई••••
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डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित अयोध्या उत्तर प्रदेश