फूल चुभे कांटे बन – भाग 15 – डॉ कंचन शुक्ला : Moral Stories in Hindi

  मधु निशा के कमरे के बाहर खड़ी थी एक बार उसके मन में आया छुप कर किसी की बात सुनना अच्छी बात नहीं मुझे यहां से जाना चाहिए तभी उसे सुरेश की गर्व से भरी हुई आवाज सुनाई दी ” मैंने तुमसे कहा था ना निशू की मधु को बेवकूफ बनना बहुत आसान है अब देखो वह हमारे बच्चे की आया बनकर उसकी देखभाल कर रही है और हम यहां एक दूसरे के साथ प्रेम में डूबे हुए प्यार के सागर में गोते लगा रहें हैं” 

सुरेश की बात सुनकर मधु चौंक गई उसे विश्वास नहीं हुआ की यह सुरेश की आवाज है पर सच तो सच था,

  ” यह तो है मधु को शीशे में उतारना बहुत आसान है वह बहुत जल्दी दूसरों की बातों में आ जाती है मुझे तुमसे शादी  करने के लिए मधु के सामने कितना नाटक करना पड़ा की मैं आगे पढ़ना चाहतीं हूं मुझे नौकरी करना है मेरे इस नाटक में मेरी मां ने भी मेरा बहुत साथ दिया उन्होंने ही मधु के मन में यह बात डाली की मेरे नौकरी करने से मुझे अच्छा लड़का मिल जाएगा” निशा ने हंसते हुए कहा

  ” यह तो तुम्हारी मां ने बिल्कुल सही कहा था तुम्हें मेरे जैसा अच्छा लड़का मिल तो गया हम टूर के बहाने कभी नैनीताल, कभी शिमला,कभी ऊंटी और कभी बैंगलूरू जाकर एक दूसरे की बांहों में बंधकर शादी से पहले हनीमून बनाते थे हमने तो शादी से पहले ही सुहागरात बनाई थी बेचारी मधु यही समझती थी की मैं आफिस के काम से टूर पर जाता हूं ” सुरेश ने बेशर्मी से कहा और निशा को शायद अपने पास खींच लिया

  ” यह क्या कर रहे हैं अभी थोड़ी देर पहले ही तो आपने प्यार किया था छोड़िए मुझे आपको तो इसके सिवा कुछ सुझाई ही नहीं देता ” निशा की नज़ाकत दिखाते हुए कहा

  ” तुम हो ही इतनी हाट की मैं तुमसे दूर रह ही नहीं सकता मैं जितना तुम्हें प्यार करता हूं मेरी प्यास बुझने की जगह और भड़क जाती है तुम्हारी इन्हीं अदाओं का तो मैं दीवाना हूं ” सुरेश की बेशर्मी से भरी आवाज़ आई

  ” क्यों क्या मधु तुम्हें सुख नहीं देती थी ” ? निशा ने पूछा वह अपनी बड़ी बहन को नाम लेकर बुला रही थी

  ” नाम न लो मधु का उसमें तुम्हारे जैसा जोश कहां क्या तुम्हें लगता नहीं है जबसे मैंने तुम से जिस्मानी सम्बन्ध बनाना है तब से मैंने उस मधु को छूआ भी नहीं एक दो बार जबरदस्ती उसके नज़दीक जाना पड़ा उसके पहल करने के कारण अगर मैं ऐसा नहीं करता तो उसको हमारे सम्बन्धों पर शक हो जाता ” सुरेश ने निशा को अपनी बाहों में भरते हुए कहा

  “अरे इतनी कसकर क्यों दबा रहें हैं मुझे दर्द होता है प्यार से करिए मैं बहुत नाज़ुक हूं” निशा ने नज़ाकत दिखाते हुए कहा

  ” जानता हूं पर क्या करूं तुम्हें बांहों में भरने के बाद सब भूल जाता हूं “सुरेश ने कहा

” निशा तुमने भी  मोहन को बीच में लाकर ऐसा नाटक रचा की मधु को विश्वास हो गया की तुम्हारे पेट में जो बच्चा है वह मोहन का है और उससे तुम्हें धोखा दे दिया और तुम्हारे झांसे में मधु फंस गई ” सुरेश ने बेहयाई से हंसकर कहा। 

  ” मधु का पति पांच साल से उसकी नाक के नीचे  मेरी बाहों  में रात गुजारता है और उसे भंनक भी नहीं लगी जबकि वह समझती है की उसका पति सिर्फ उसे प्यार करता है ” निशा ने बेशर्मी से हंसकर कहा

  ” क्या करूं तुम जैसी कमसिन लड़की को प्यार करने के बाद उस बूढ़ी औरत के नज़दीक जाने का मन ही नहीं होता था इसलिए मैंने यह नाटक रचा अगर मैं सीधे सीधे मधु और मां से कहता की मुझे निशा से शादी करनी है तो दोनों में से कोई तैयार नहीं होता हो सकता है की मधु कोर्ट जाने की धमकी देती तो मेरी नौकरी ख़तरे में पड़ सकती थी  हमने जो नाटक रचा था उससे सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी” सुरेश ने गर्व से कहा

  ” अब हम दोनों प्यार भरे दिन गुजारेंगे और हमारा बच्चा वह मधु पालेगी” सुरेश ने कहा

  ” लेकिन मुझे एक ही बात का डर है कहीं मधु मेरे बच्चे को अपने वश में न कर ले तो मैं क्या करूंगी कहीं उसने मेरे बेटे के कान मेरे खिलाफ भरे तो क्या होगा” निशा ने शंका जताई

  ” तुम इसकी चिंता न करो एक तो मधु ऐसी है नहीं और जब बच्चा तीन साल का हो जाएगा तो उसे तुम अपने पास रखना तब तक वह स्कूल जाने लगेगा तब उसके देखभाल की ज्यादा जरूरी नहीं होगी तब हम अपने बच्चे को उसके पास नहीं जाने देंगे अगर उसने ज्यादा दिमाग दिखाया तो मैं उसे घर से बाहर निकाल दूंगा तुम चिंता न करो मेरी जान ज़िन्दगी का आनन्द उठाओ यह समय लौटकर नहीं आएगा ” इतना कहकर सुरेश ने निशा को अपनी बाहों में जकड़ लिया क्योंकि फिर निशा की कोई आवाज सुनाई दी थी शायद सुरेश ने अपने होंठों से निशा के होंठों को बंद कर दिया था।

  मधु सुरेश और निशा की बात सुनकर स्तब्ध रह गई उसके सोचने समझने की शक्ति क्षीण हो गई थी उससे खड़ा नहीं हुआ जा रहा था वह गिरने ही वाली थी की उसने दीवार का सहारा ले लिया फिर लड़खड़ाते कदमों से चलती हुई किसी तरह अपने कमरे तक पहुंची वहां उसने देखा बच्चा दूध पीकर रो गया था और घड़ी रात्रि के 3 बजा रही थी सुबह होने में समय था अभी रात बाकी थी पर मधु के जीवन में अब कभी सुबह का सूरज नहीं निकलेगा क्योंकि उसके अपनो ने ही उसके जीवन में सूरज की रोशनी को अमावस्या की रात में बदल दिया था 

  मधु निर्जीव सी बिस्तर पर लेट गई उसकी आंखों से नींद कोसों दूर हो गई थी शायद हमेशा के लिए आज इतना बड़ा धोखा खाकर भी मधु की आंखों में एक भी आंसू नहीं थे वह जैसे पत्थर की बन गई थी उसकी आंखों में वीरानी छाई हुई थी और चेहरा भावशून्य था वह बिस्तर पर लेटे लेटे कुछ सोच रही थी फिर अचानक उसके चेहरे पर कठोरता दिखाई देने लगी उसके चेहरे को देखकर ऐसा लग रहा था कि, उसने कोई बहुत ही महत्वपूर्ण निर्णय लिया है क्या इसका पता या तो ईश्वर का था या खुद मधु को निर्णय लेने के बाद मधु उठी इस समय सुबह के 5 बजे थे वह उठकर सीधे बाथरूम में चली गई •••••

क्रमशः

  डॉ कंचन शुक्ला

स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित अयोध्या उत्तर प्रदेश 

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