आज करुणा देवी बैंक से रुपए निकालने के लिए गई। बैंक में कैशियर ने बोला कि आपके अकाउंट में सिर्फ डेढ़ लाख रुपए का ही बैलेंस है।
करुणा देवी को 5 लाख रुपये की जरूरत थी। करुणा देवी परेशान होकर पास तक की कुर्सी पर ही बैठ गई। वे सच में पड़ गई
कि अकाउंट तो मेरे और मेरे पोते के नाम पर है तो कहीं उसी ने तो, यह सोचकर वह घबरा गई।
वे थके कदमों से चलकर घर आई और सोचने लगी की पोते से कैसे पूछूं, कहीं बेटे को बुरा लग गया तो मेरा क्या होगा।
फिर जैसे तैसे उन्होंने दिन निकाला खाना तो खाने की इच्छा भी नहीं हो रही थी।उनकी तो मानो भूख ही खत्म हो गई थी।
वह तो बार-बार यही सोच रही थी कि 85 लाख में से सिर्फ डेढ़ लाख रुपए ही बचे हैं। यही सब सोचते सोचते हुए अपने बीते दिन याद कर रही थी
जब उनके पति जिंदा थे और कैसे उनके पति उनकी हर फरमाइश पूरी करते थे, उनको अलग-अलग खाना बनाने का बहुत शौक था
वह मिठाई तो बाजार से कभी लेकर भी नहीं आई थी , सब कुछ वे अपने हाथों से ही बनती थी और उनके पति जो भी जरूरत का समान चाहिए होता था ,
वे ले आते थे। जब भी बच्चों को जरूरत होती थी वह अपने अकाउंट से पैसा निकाल कर बिना हिसाब के उनको दे दिया करती थी
और आज उनको बच्चे अब पैसा देने को भी मना करते हैं।इन्हीं सब परेशानियों से बचने के लिए वह बैंक से पैसा निकालने के लिए गई थी।
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शाम तक उन्होंने मन बना दिया था कि एक बार आखिर बेटे से पूछ ही दिया जाए। जब परिवार के सब लोग एक साथ बैठे थे
तो उन्होंने आखिर पूछे दिया कि मेरे अकाउंट से पैसे कहां गए। उनका बेटा और पोता एक दूसरे को देखने लगे। शायद उन्हें समझ आ गया
कि अब तो मां को पता चल ही गया। पिता और पुत्र दोनों ने एक दूसरे को आंखों ही आंखों में इशारा किया
और करुणा जी का बेटा बोला, वह पैसा आपका नहीं था, मेरे पिताजी का था, आपने नहीं कमाया था।
करुणा देवी एकदम निरुत्तर हो गई और सोचने लगी की क्यों एक पति अपनी मृत्यु के बाद पत्नी को सारे अधिकार देता है
और अपनी संपत्ति का नॉमिनी पत्नी को बनाता है। आज करुणा जी को समझ आ रही थी कि वे अब एक लाचार औरत बनकर रह गई है,
मकान तो पहले ही बेटे के नाम ही था अब चुपचाप घर में रहती है और जब खाना मिलता है तो खा लेती है।
स्वरचित
अमृत