परिचय – शुभ्रा बैनर्जी

“सुशीला ,वाह!!!क्या कचौरियां बनाईं हैं तुमने।मुंह में डालते ही मानो घुल गईं।अब हम समझे,कि तुम हमारी तरह होटल में किटी पार्टी क्यों नहीं करती।अरे,जब इतने कम पैसों में घर में ही खाने की व्यवस्था हो जाती है,

तब फालतू में पैसे बहाने की क्या जरूरत?मानना पड़ेगा भई तुम्हें।आम के आम ,गुठलियों के दाम।” पिंकी की बात सुनकर सारी महिलाएं हां में हां मिलाने लगी थीं।सुशीला गर्वित महसूस कर रही थी।होटल में किटी पार्टी ना कर पाने का मलाल कुछ कम हुआ अब।

हूं!!!!बड़ी सहेलियां बनती हैं,अपने पति के पैसों और रुतबे की प्रदर्शनी करने में कोई कोताही नहीं बरतती ये।पिछली बार क्या-क्या ताने दिए थे सबने,भूली नहीं थी वह।आज तो सोच ही लिया था,कि बोलती बंद कर देगी सबकी।

घड़ी की तरफ बार-बार देखते हुए पार्टी जल्दी खत्म हो जाने की राह ही देख रही थी ,सुशीला।पता नहीं राघव कब आ धमके,और बखेड़ा खड़ा कर दे। नहीं-नहीं,अभी तो पूरा एक घंटा है।बस एक गेम हो जाए,तो चैन की सांस ले वह।

बच्चे भी ट्यूशन से लौटने वाले होंगे।तभी रीना ने चुटकी ली”क्यों सुशीला, एक-एक कप चाय और मिलेगी क्या?तुम्हें जल्दी तो नहीं है ना हमें भगाने की? बार-बार घड़ी देख रही हो।अरे!इतना क्या डरना?हम कोई चोरी थोड़े ही कर रहीं हैं।

हमें भी तो अपनी दिनचर्या से अलग हट कर मनोरंजन करने का अधिकार है।मैंने तो कह के रखा है इनसे,घर में शांति चाहिए तो मेरी किटी पार्टी के बारे में कोई चिक-चिक ना करे।सारा दिन बस चूल्हे-चौके में घुसे रहना ही हमारी जिंदगी नहीं है।” 

सुशीला इतनी बेवकूफ तो थी नहीं कि रीना का ताना ना समझ पाए।संयत होते हुए बड़ी चतुराई से बोली” डरता यहां कोई नहीं है किसी से।बस जो जिम्मेदारी हमारे ऊपर है,वो आप नहीं समझ सकती।साल दो साल में एक बार सास-ससुर आते हैं गांव से।

क्या हमें पता नहीं,तब कैसी घिग्घी बंधी रहती है आपकी?अरे वो तो इसलिए आप बर्दाश्त कर लेतीं हैं कि अनाज बिकने का हिस्सा लेकर आते हैं वो।मेरी तरह सालों साल सास के साथ रहना पड़े,तब ये बोल ना निकल पाएंगे।”

देखते-देखते दो गुट बनने लगे।एक एकल परिवार में रहने वाली बहुएं,और दूसरी तरफ बूढ़े सास या ससुर को झेलने वाली बहुएं।

तभी कमली हांथ में ट्रे लिए अंदर आई।सभी की आंखें खुशी के मारे फैल गई।रीना ने मुंह बनाते हुए कहा”वाह!सुशीला,क्या ट्रेनिंग दी है तुमने अपनी बाई को।यहां मैंने चाय पीने की इच्छा जताई,और वहां बन भी गई चाय।

ज़रा हमें भी यह मंत्र दे दो सुशीला।हमारी बाईयों के कान में तो नौ मन तेल डला रहता है।जब तक बीस बार कुछ बताओ नहीं,बन ही नहीं सकता।” सभी सुशीला के भाग्य पर कुढ़कर मुस्कुरा रही थीं।

कमली ने भी बाजी पलटते हुए कहा”ऐसा काहे बोल रही हो,पंकज की मम्मी, आपकी रमा तो कितना काम करती है आपके यहां।आधे से ज्यादा खाना तो वही बना देती है।अरे! हम बाई लोग पैसे के नहीं, प्यार के भूखे हैं।

जहां दो बोल प्यार के मिले, वहां हम अपना घर समझकर काम करते हैं।अरे बहूजी, अम्मा पूछ रही हैं खीर अभी भिजवा दें क्या?” सुशीला ने घूरकर कमली को देखा, और कहा”अब चाय के साथ तो खीर कोई खाता नहीं है।कह दे उनसे , थोड़ा सबर कर लें।” 

सुशीला का कसैला चेहरा देखकर पिंकी ने कहा” ओह!तो एक बाई के साथ एक मुफ़्त में मिल जाती है तुम्हें।तभी इतना तामझाम कर पाती हो।मैं‌ भी सोचूं,इतने सारे आइटम कब और कैसे बना ली तुम?”

रसोई से खांसने की आवाज सुनाई दी तो सुशीला अंदर गई।थोड़ी देर बाद ही बैठक में फिर महफ़िल जम गई।अब किटी पार्टी समापन की ओर अग्रसर थी।सुशीला ने कमली को आवाज लगाई, पर जवाब नहीं कमली की अम्मा निकलीं, हांथ में खीर से भरी कटोरियां एक बड़ी सी थाली में लिए।

साड़ी बहुत सुंदर तो नहीं, पर करीने से बांधी हुई थी।कमर ना ज्यादा झुकी ना, ज्यादा तनी।चेहरे में गजब का तेज बता रहा था कि अपने जमाने में बहुत सुंदर रही होंगी।सुशीला के कुछ कहने से पहले ही उन्होंने खीर की कटोरियां बढ़ानी शुरू कर दी।अब सुशीला का पारा चढ़ने लगा था।

चेहरा देखकर ही तो सब समझ आ जाएगा, इन चटोरियों को।बीमारी का बहाना बनाकर सात साल काट दिए।पिछले चार साल से किटी ज्वाइन की है, कभी ऐसा मौका नहीं आया।ये कमली भी कहां मर गई? क्या बोलूं सबके सामने?

सोच ही रही थी सुशीला, कि पिंकी ने कहा”बैठ जाओ अम्मा? काहे खड़ी हो? टेबल में रख दो थाली।अरे, हम सब तो आपकी बेटियों के जैसे हैं।बैठ लो थोड़ा , संकोच ना करो।”, 

अम्मा ने एक स्टूल को सरकाया और बैठ गई।यह देखकर तो सब सकते में आ गईं।क्या ठाठ है अम्मा के?स्टूल में ही बैठ गई।अरे बाप रे,हमारे घरों में तो बाईयों की ऐसी हिम्मत नहीं होती।आंखें मटकाकर एक दूसरे को इशारे करते हुए सुशीला ने देख लिया।

तुरंत त्वरित कार्रवाई करते हुए कहा” आप अंदर चले जाइये।और किसी चीज की जरूरत है नहीं।जाइये आप।”उसकी वाणी में सख्त आदेश था।यह सुनहरा मौका भला सहेलियां कैसे जाने दे सकतीं थीं?

सुशीला के सम्मान पर प्रहार करते हुए रीना ने कहा” अरे,बैठने दो ना सुशीला।इनके हाव-भाव से तो यही लगता है कि ,ऐसे ही बैठती हैं हमेशा।तुम अब झूठी शान क्यों बघारने लगी?अच्छा है भई,बदलाव आ रहा है समाज में।तुम्हें देखकर हमने भी एक नई बात देख ली,सीख ली।एक बाई को इतना मुंह लगाकर रखती हो,तभी तुम्हारी जीहुजूरी करती होगी।”

अब सुशीला की हालत खराब होने लगी।हे भगवान,इन औरतों का मुंह कभी बंद ही नहीं होता।दूसरों के घरों में घुसने की बीमारी कहां जाएगी?अब कहीं बुढ़िया ने पलटकर कुछ कह दिया ,तो बेइज्जती तो उसकी ही होगी।

तभी बुढ़िया ने उठते हुए कहा” बेटा,अपने घर का काम करने से कोई बाई थोड़े ही बन जाता है।बाई भी तो इंसान ही हैं ना।पैसे की खातिर कोई आफिस जाता है,कोई खेत जाता है,कोई स्कूल,कोई दुकान।

ये बर्तन भाड़ा करती हैं।हुए तो सब बराबर ना।हमारे समय हम औरतें ही मिलकर घर के सारे काम कर लेतीं थीं,बाई की जरूरत ही नहीं पड़ती थी।अब परिवार छोटे हो गए,तो काम भारी लगने लगा।तुम सभी को ढेर सारा आशीर्वाद।सदा सुहागन रहो।दूधो नहाओ पूतों फलो।”

” अरे बाप रे!सुशीला,इस बुढ़िया की इतनी लंबी ज़ुबान।गंवार से थोड़ा हंस कर बतिया लो , तो ये सर में चढ़ जाती हैं।सच कहते हैं सब। इन्हें इनकी औकात में ही रखना चाहिए।नमिता ने आंखें तरेर कर कहा।

तभी कमरे में राघव घुसते हुए बोला”वाह! अम्मा,तुमने हींग वाली कचौरी बनाई है क्या?बाहर गली में घुसते ही नाक में जो खुशबू आई ना,कि दौड़ते हुए पहुंचा हूं।अरे गज़ब,यहां तो महिलाओं की महफ़िल जमी है।सुशीला,तुमने बताया नहीं , कि आज तुम पार्टी करने वाली हो।अम्मा से आज तुमने कचौरी बनवा ही ली।चलो अच्छा किया, मुंह का स्वाद बदलेगा आज।”

सभी औरतों के मुंह खुले के खुले रह गए” हैं!!!!!अम्मा,ये राघव बाबू की अम्मा हैं।इतने बड़े अधिकारी की अम्मा हैं ये।हमें तो सुशीला ने बताया था कि सास बीमार रहतीं हैं।अपने कमरे से बाहर नहीं निकलतीं। डॉक्टर ने मना किया है किसी को उनके कमरे में जाने के लिए।अब तक जिस गंवार औरत को कमली की अम्मा समझ रहे थे,

वो सुशीला की सास हैं? “रीना ने कह ही डाला , तो राघव ने अम्मा को पकड़कर अपने पास चौकी पर बिठाते हुए कहा” जी हां, भाभी जी, ये गंवार औरत मेरी मां है।बहुत कम उम्र में शादी हो गई थी इनकी।ज्यादा पढ़ लिख नहीं पाईं थीं।

पांचवीं तक पढ़ीं हैं।अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए खुद हमारा स्कूल का थैला लेकर जाती थीं स्कूल।हमें(भाई-बहन) छोड़कर आ जातीं, फिर छुट्टी के समय पहुंच जातीं।दीदी को और मुझे शहर के कॉलेज में भेजा था, बाबूजी से जिद करके।गांव में अपनी जमीन में स्कूल बनवाया।बाबूजी जी के जाने के बाद सब अकेले संभाला इन्होंने।यहां आना ही नहीं चाहती थी।

वो तो बड़ी मुश्किल से राजी हुई हैं।अपनी कोठी को हॉस्टल बनवा दिया।दो कमरे छोड़कर सब कुछ स्कूल के नाम कर दिया है इन्होंने।आज इनकी वजह से ही मैं इतना बड़ा अधिकारी बन पाया।दीदी डॉक्टर है।हम शहरों में अपने मां-बाप से दूर रहकर सोचते हैं कि आजादी से जी रहें हैं, पर ऐसा नहीं है।आप सभी के पति आज जिस भी पद या व्यवसाय में है, अपने माता-पिता की वजह से ही हैं।

आप लोगों को अपने माता-पिता जितने प्यारे हैं, उतने पति के माता-पिता पराए क्यों लगते हैं? सुशीला , तुम भी तो गांव में अपने ननिहाल में पली बढ़ी हो।अम्मा ने एक शादी में तुम्हें देखकर अपने बेटे के लिए पसंद किया था।

सोचा था उन्होंने, गांव से जुड़ी है, तो गांव की माटी की खुशबू समझ पाएगी।तुमने उन्हीं अम्मा को बीमार बताकर कभी किसी से मिलवाया भी नहीं।और अम्मा तुम सच में क्यों गंवार बनती रहीं इतने दिनों तक।कभी मुझे भी नहीं बताया, अपनी बहू का रवैया।आज जल्दी ना आता , तो आज भी सच नहीं जान पाता।बस अब बहुत अपमान सहन कर लिया तुमने।

ये बंगला, गाड़ी सब बहू को देकर चलो हम कहीं और चलकर रहेंगे।जहां कोई तुम्हें गंवार ना कह पाऊंगा, ना समझेगा।

तुम तो हजारों -लाखों लोगों के जीवन में ज्ञान की रोशनी बांटती हो, ख़ुद इस औरत की मूर्खता के अंधेरे में जी रही हो।गंवार होती हैं ऐसी ही औरतें, जो बड़ों का सम्मान करना नहीं जानती।अरे किटी पार्टी कर लेने से ही सभ्यता की कसौटी नहीं होती।सभ्यता हमारे आचरण में होनी चाहिए।”

” बस कर ना रघु,औरतों के बीच‌ तू कब से बोलने लगा?ये हम औरतों की बात है,हम ही प्यार से निपटा लेंगे।हमें‌ कमजोर मत समझना तू।हम लड़ें -भिड़ें,कितनी भी बुराई करें एक दूसरे की,पर हम सास बहू एक दूसरे के पूरक हैं।

हमारा सुख सांझा,दुख सांझा।हमारी तकलीफ सांझा।हमारे दर्द सांझा।हम एक दूसरे से अलग कभी नहीं है,बस सोच और नजरिया बदला है,बदलते वक्त के साथ।तू अब बहू को कुछ ना कह।बड़े चाव से पार्टी रखी थी उसने,तू रंग में भंग मत कर।तुझे मेरी कसम है रघु।”,अम्मा ने रघु का हांथ अपने सर पर रख कर कहा ।

सुशीला की तरफ सारी महिलाएं धिक्कार से देख रहीं थीं।सुशीला को ज्ञात हो चुकी  थी  अपनी भूल।अम्मा के चरणों में गिरकर पश्चाताप के आंसू से अपना पाप धोने लगी।अम्मा तो मां थीं ना, झट से सुशीला को उठाकर अपने सीने से लगा लिया।

शुभ्रा बैनर्जी 

#ये गंवार औरत मेरी मां है

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