मुँह में ज़बान – विभा गुप्ता

   ” ये क्या बहू, तूने मिसेज़ पंडवानी को मना क्यों नहीं कर दिया।जब देखो कटोरा लेकर कभी चीनी तो कभी दही माँगने चली आती है।चार बार तो मेरे सामने ही आ चुकी है..पीछे में तो…।” निर्मला जी अपनी बात पूरी कर पाती, उससे पहले ही रजनी बोल पड़ी,” जाने दीजिये ना मम्मी, पड़ोसी ही तो … Read more

मोह मायके का – रश्मि प्रकाश 

“ क्या बात है बहू कब से तुम्हें आवाज़ दे रही हूँ तुम सुन ही नहीं रही हो और अब देखो यहाँ बैठकर ना जाने किन ख़्यालों में खोई हुई हो… क्या बात है परेशान लग रही हो?” सुनंदा जी अपनी बहू अवनी से बोली  “ मम्मी जी आपको तो पता ही है मायके में … Read more

बेटी का घर बसने दो भाभी – मंजू ओमर 

हेलो अंकिता क्या कर रही हो बेटा क्या करूंगी मम्मी, खाने की तैयारी कर रही हूं। अभी अभी तो ऑफिस से आई होगी थोड़ा आराम कर ले बेटा खाने में लग गई। नहीं तो बाहर से कुछ आर्डर कर ले। अरे नहीं मम्मी बुढ़िया  को घर की दाल रोटी खानी है ।और रोज-रोज  बाहर का … Read more

गऊ – गीता वाधवानी

” देवकी के पापा, मुझे तो देवकी की बहुत चिंता हो रही है,विवाह तो कर दिया हमने उसका, परंतु इतनी सीधी लड़की ससुराल में कैसे रहेगी,ना जाने इतनी सीधी गाए जैसी लड़की, आज के कलयुग में कैसे पैदा हो गई, इसे तो सतयुग में पैदा होना चाहिए था,ना मुंह में जुबान और ना हाथों को … Read more

रिश्ते भावनाओं से निभाये जाते हैं – डॉ बीना कुण्डलिया 

आज बेला जी भीतर से आनंदित आँगन में बैठी गुनगुना रही उनकी बहु माया रसोईघर में व्यस्त तभी फोन की घंटी घनघनाती है। बहु माया दौड़कर फोन उठाती है… हाँ,हाँ क्यों नहीं कैसी  बात करती हो । जरूर आओ मानसी इसमें पूछने वाली क्या बात हुई भला ? तुम्हारा ही घर है जब मर्जी चली … Read more

ससुराल वाले बड़ी बहू को इंसान क्यों नहीं समझते – सरिता कुमार 

एक गांव में बड़े प्रतिष्ठित शिक्षक का घर है । बहुत बड़ा सा घर , बड़ा दरवाजा , घर के आगे बड़ा सा ओसारा, अंदर बड़ा सा आंगन और पीछे बड़ा दालान जहां दर्जनों अनाजों की कोठियां बनाई हुई है । सभी कोठियों में गेहूं , धान , अरहर , मूंग , सरसों और तोड़ी … Read more

बहू ने ना बोलना सीख लिया

कल शाम से ही जया जी की नजरें अपनी बहू रुची के चेहरे के पर ही रह रह कर दौड़ रही थी। क्योंकि जब से उनकी बहू रुची पड़ोस में रहने वाली अपनी सहेली नीति के यहां जाकर आई थी। तब से ही उसका मन उखड़ा उखड़ा लग रहा था। जया जी का बार-बार मन … Read more

“हाय रे दैया ये क्या हुआ” – ज्योति आहूजा

आगरा शहर में एक भरी-पूरी फैमिली रहती थी—सास, ससुर, दो बेटे, दो बहुएँ और एक ननद। घर में इन दिनों एक खास रौनक थी, क्योंकि एक समीप के रिश्तेदार की शादी का न्योता आ चुका था। अलमारियों  एवं ट्रंक के ताले खुल गए थे, मैचिंग ज्वेलरी और सूट-साड़ियों का सिलेक्शन हो रहा था, मिठाइयाँ आ … Read more

रक्षाबंधन का वचन -शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

भागवंती और भगवान दास एक दूसरे से बहुत प्रेम करते थे।बड़ा भाई,भगवान दास अपनी बहन भागो को कंधे पर बिठाए घुमाए फिरता था पूरा गली-मोहल्ला।घर से किसी भी काम के लिए निकले,बहन भागो पहले से तैयार रहती। मां जानकी जी तंग आकर कहतीं कभी-कभी “क्यों रे,तू तो बड़ा है।ऊंट की तरह हो गया है,समझ अभी … Read more

घमंड – शुभ्रा मिश्रा : Moral Stories in Hindi 

अरे! सविता जी कहाँ रह रही है आजकल आप? दिखाई ही नहीं दे रही है।जब से बेटे के यहाँ से आई हूँ आप दिखाई ही नहीं दी। बाजार में सविता जी को देखकर पुष्पा जी नें उन्हें पुकारा।कहाँ रहूंगी घर पर ही हूँ,सविता जी नें एकदम फीकी अभिव्यक्ति दी।हाँ जी अब तो घर पर ही … Read more

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