खंडहर  रेड लाइट एरिया – रीमा महेंद्र ठाकुर

आकाशी निस्तेज आंखों से बस दीवार को घूरे जा रही थी, दीवार पर चिपकी छिपकली कब से शिकार पर नजर रखे हुए थी! आकाशी उठना चाहती थी, पर जिस्म टूट रहा था’अचानक से छिपकली ने झपट कर शिकार को अपने मुंह मे डाल लिया, वो एक छोटा सा कीट था जो खुद को बचाने की … Read more

मैं ऐसा कभी नहीं कर सकती…. रश्मि प्रकाश

गरिमा की आँखों से अविरल आँसुओं की धारा बह रही थी…. उसका इस तरह अपमान होगा वो सोच ही नहीं पा रही थी…. बड़ी भाभी ने जो अपमान किया वो तो वो बर्दाश्त भी कर लेती पर क्या माँ को भी मुझ पर भरोसा नहीं रहा….सालों से इस घर में अपनी सेवा के परिणामस्वरूप ऐसा … Read more

अपमानित वजूद का बदला – तृप्ति शर्मा

आज सविता के हाथ जितनी तेजी से ताली बजाने के लिए उठ रहे थे उतनी ही तेजी से अविरल धारा उसके गालों को भी भिगोती जा रही थी । उसकी नन्ही कोमल सी बिटिया सृष्टि ,जिसे पाकर उसे पहली बार मां शब्द की अनुभूति हुई थी ,उस वक्त सविता अचानक से जिम्मेदार हो गई थी … Read more

स्मृतियों के झरोखों से – वीणा

स्मृतियों के झरोखों से – वीणा जब पीछे मुड़ कर देखती हूं तो दिखते हैं वे लड़के जो उछाल देते थे एक दिलफेंक मुस्कान उनकी ओर देखने पर या गिरा देते थे कागज का एक टुकड़ा उनके समीप से गुजरने पर जिस पर लिखा होता था  रटा रटाया जुमला–मैं तुम्हे प्यार करता हूं अकेले कही … Read more

*मिलना याद रखना* – *नम्रता सरन “सोना”*

अक्षर अक्षर तुमको पढना… कितना तसल्ली देता है, जितना समझती जाती हूँ तुमको  उतनी ही अबूझ पहेली तुम… मेघ सदृश बरसते हो बूंद बूंद समा जाते हो रूह मे… . थाम लेते हो क्षण में जीवन सागर का झंझावात, बाजू मेरे थामें नही पर महसूस होते हो तुम ही इर्द गिर्द…. कितने मौसम बीते तुम्हें … Read more

कृष्णा ,तुम्हे आना होगा  –  नम्रता सरन “सोना”

नारी,  जो माँ है  बहन है,बेटी है, छलनी हुए आँचल में  मुँह दबा रोतीं है .   द्रौपदी , तुम तो भाग्यवान थीं  तुम्हे कृष्ण मिले , दुर्योधन तो तब भी थे .   हम किसे पुकारें  बिखरी पड़ी यहाँ वहाँ  अस्मिता हमारी , घायल तन ,और  द्रवित मन लिए  तार-तार हुई नारी.   दुर्योधनों … Read more

अधिकारों को आग लगा दी है – गीता वाधवानी

नई नवेली बहू सुरभि घर में आ चुकी थी। आशा जी का बेटा सौरभ उसे ब्याह कर लाया था। सुरभि और सौरभ एक ही ऑफिस में साथ काम करते थे।       आशा जी एक शांत, गहरे व्यक्तित्व की स्वामिनी थी। माथे पर बिंदी, बालों का जूड़ा, दोनों हाथों में सिर्फ एक एक सोने की चूड़ी, गले … Read more

मेरा अंश !! – पायल माहेश्वरी

” चलो जाने देते हैं सब हमारी तरह समझदार नहीं होते हैं  ” मैंने आदतनुसार उससे कहा और उसने अपनी बड़ी बड़ी पलकें झपकाकर मेरा समर्थन किया, उसके चेहरे पर एक स्मित हास्य वाली मासूमियत आ गई और एक बार फिर मैं उसका व मेरा अपमान भूल गयी।  आप सोच रहे होंगे की वो कौन … Read more

भीड़ के उसपार ! – रमेश चंद्र शर्मा

अचानक पैंतालीस  साल बाद शहर के शॉपिंग मॉल में अनीता और संकेत की मुलाकात हो गई । अनीता “संकेत, आप यहां ! इस शॉपिंग मॉल में ! कितने वर्षों बाद आपको देखा, बिल्कुल नहीं बदले”! संकेत “जीवन में बहुत कुछ बदला है। आज अचानक तुम्हें देखकर अतीत में लौट जाने का मन हो रहा है”। … Read more

एक पीर गूंगी सी – विजया डालमिया

विभा ने सोचा भी नहीं था कि उसकी सामान्य तरीके से हँसकर की गयी बातचीत का यह अंजाम होगा ।कुछ दिनों पहले ही तो फोन के माध्यम से दोनों जुड़े थे ।वह भी एक खूबसूरत गलती की वजह से। हुआ यूँ था कि विभा से रॉन्ग नंबर डायल हो गया था । उसने तुरंत फोन … Read more

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