**माँ के आँसुओं का हिसाब** – डॉ० मनीषा भारद्वाज : Moral Stories in Hindi
गाँव की संकरी गलियों में धूप की एक किरण ने जैसे हीरा बिखेर दिया था। मगर मीनाक्षी की आँखों में उस चमक का कोई असर नहीं था। वह अपनी झोंपड़ी के सामने बैठी, सूखी लकड़ियों को तोड़ते हुए, उन टूटते तंतुओं में शायद अपना ही बिखरा हुआ जीवन देख रही थी। उसकी पीठ पर बँधा … Read more