ओहदा – (अर्चना सिंह)

रिटायरमेंट के बाद विभूति जी के पास ये पहला मौका था जब तसल्ली से बिना बहाना किए अपनी बेटियों के पास रह सकते थे । दोनो बेटियाँ एक ही शहर दिल्ली में ब्याही हुई थीं । ईश्वर की दया से किसी भी चीज में कोई कमी नहीं थी। दोनो दामाद सरकारी ऑफिसर थे । कभी बीच में पत्नी उर्मिला जी के साथ दो – चार दिन के लिए मिलना जाना होता तो बेटी नीतू नीलू के बारे में मीठे ताने देते हुए कहतीं…”पापा – मम्मी ! आप सिर्फ नीलू के पास रुकते हैं और नीलू कहती…”आपलोग नीतू दीदी के घर ज्यादा रुकते हैं ।

विभूति जी हँसते हुए कहते…”जब रिटायर होकर आऊँगा तो तुम दोनों के घर एक – एक महीने रुकूँगा । नीतू और नीलू ने मिलकर भव्य रिटायरमेंट पार्टी का आयोजन किया था । आसपास हरियाणा नोएडा में ही ज्यादातर रिश्तेदार रहते थे, उर्मिला जी ने अपने ससुराल गोरखपुर से भी सभी रिश्तेदारों को बुलाया ।

विभूति जी अपने बेटे सुमित के घर अलीगढ़ में ठहरे । बेटे की शादी को अभी साल भर भी नहीं हुए थे । सुमित पढ़ने में अच्छा नहीं था बस किसी तरह लटक कर पास हो गया था । लेकिन फिर उसने अपने बलबूते नौकरी की तैयारी की, और बिजली विभाग में क्लर्क के पोस्ट पर जॉब लग गयी । एक साधारण घर की लड़की से उसकी शादी कर दी गई । विभूति जी ठहरे इंजीनियर, दामाद भी अपने अनुसार ढूँढा लेकिन बेटे पर ज़ोर नहीं चला फिर भी वो किसी तरह एक ओहदे पर आ गया । विभूति जी उसके घर गए तो घर देखकर दंग थे । सरकारी क्वार्टर ही था दो कमरे का लेकिन बहुत करीने से व्यवस्थित करके उनकी बहू केतकी ने रखा था । जैसे ही स्टेशन से लेकर सुमित आया विभूति जी को उसका छोटा घर देखकर ही परेशानी होने लगी कि अंदर कैसे रहेंगे । झट से बहू ने दरवाजा खोला और विभूति जी और उर्मिला जी दोनो की आँखें फ़टी की फटी रह गईं घर को करीने से सजा देखकर । 

केतकी ने पैर छूते हुए कहा…”अंदर आइए मम्मी – पापा ! नाश्ता बना हुआ है । नहा धोकर फ्रेश होकर विभूति जी और उर्मिला जी ड्राइंग रूम में सेंटर टेबल पर बैठे और केतकी ने इडली सांभर और चटनी नाश्ते में परोस दिया । खाने के बाद विभूति जी आराम करने लगे और उर्मिला जी ने ट्रॉली से साड़ी निकालते हुए कहा…”केतकी ! ये तुम्हारी साड़ी । आज शाम की पार्टी में इसे पहन लेना । “केतकी अवाक रहकर थोड़ी देर उर्मिला जी का मुँह देखते हुए बोली…”शाम के लिए तो मैंने पहले ही साड़ी तैयार करवा लिया है मम्मी जी ! अलमारी से गुलाबी रंग की सिल्क साड़ी दिखाते हुए केतकी ने कहा…”देखिए मम्मी जी ! ये साड़ी इन्होंने इसी पार्टी के लिए खरीदवाया था । “अच्छी साड़ी है, तुम पर खूब फबेगी । मुस्कुराते हुए उर्मिला जी ने कहा ।

अब उठकर सबने हल्का खाना खाया और चाय पीकर पार्टी हॉल निकलने की तैयारी थी । केतकी अच्छे से सज – धजकर बालों का जूड़ा बनाए गजरा लगाकर तैयार थी । उर्मिला जी ने जैसा सोचा नहीं था केतकी को उससे कहीं अच्छा पाया था । समझ नहीं पा रही थीं वो नीतू नीलू क्यों फोन पर केतकी की शिकायत करती थीं कि केतकी के घर जाना अच्छा नहीं लगता, उसकी साड़ियाँ अच्छी नहीं लगतीं । हमारे घर आती है तो अलग ही दिखती है । उर्मिला जी मन और विचारों से बहुत सरल थीं । वो बार – बार दोनो बहनों से यही कहतीं..”मैं सब कुछ उसके लिए करके दे दूँ पर ये लगता है कि अपनी पत्नी के लिए वो कैसे मेहनत करना सीखेगा, बच्चे होंगे तो जिम्मेदारी कैसे उठाएगा आदि।

होटल परिक्रमा दूर से ही सबके आकर्षण का केंद्र था । क्योंकि यहाँ बैठकर खाने वालों को दिल्ली का पूरा दृश्य दिखता था । उस दिन रोशनी से जगमगाया हुआ बहुत अच्छा प्रतीत हो रहा था । नीलू नीतू अपने पतियों और बच्चों के साथ आकर स्वागत करने वालों की पंक्तियों में खड़ी हो गईं और सभी रिश्तेदारों का आत्मीयता से स्वागत किया ।  केतकी को देखते ही दोनो बहनों के चेहरे पर फीकी सी मुस्कान तैर गयी और सुमित को तेज कदमों से बढ़कर गले लगाया । सुमित ने हाथ से रोककर पूरी तरह गले भी मिलने नहीं दिया । उर्मिला जी ने झटके से देखा और वो समझ नहीं पायीं। चलते हुए उन्होंने सुमित से पूछा…”क्या चल रहा है तुमलोगों का ? केतकी दिल से किसी से मिलना नहीं चाहती , तुम सामने वाले को झटक दे रहे हो । मुझे समझ नहीं आ रहा है, कुछ बोलोगे भी…?

सुमित ने रिश्तेदारों के कदम उसकी तरफ बढ़ते देखा तो मुस्कुराते हुए कहा…”मम्मी ! पार्टी हो जाए अच्छे से फिर मिलकर बात करेंगे । उर्मिला जी बिना जवाब दिए तिलक लगवाकर अंदर सोफे पर बैठ गईं । उर्मिला जी ने दोनो बेटियों के लिए हीरे की अँगूठी, सुमित और दामाद जी को उपहार देने के लिए सोने की चेन रखी थी । पर उन्हें ये उपहार देने का अनुकूल मौका नहीं लगा । 

केक कटिंग और शैम्पियन खुलने के बाद स्नैक्स, डिनर और ड्रिंक सब अच्छे से हो गया । होटल के कमरे में रुककर सभी रिश्तेदार मिले और एक रात कैसे निकल गयी पता ही नहीं चला ।

अगले सुबह नाश्ता करके सब अपने – अपने घर के लिए रवाना होने लगे । सबके हाथ में सुमित और केतकी ने अपनी ओर से ड्राई फ्रूट्स का पैकेट उपहारस्वरूप दिया । 

अब नीतू नीलू को ये उपहार प्रतियोगिता की कड़ी जैसा लगा ।अचंभित हो रही थी वो ये देख के की सुमित की आय ज्यादा नहीं है फिर भी वह कितने भाव से सबके लिए कर रहा है । अब निकलते समय नीतू ने कहा…”चलिए मेरे घर मम्मी – पापा ! जितने दिन मन  होगा रह लीजिएगा फिर नीलू के घर छोड़ आऊँगी । बहुत मन लगेगा आपका , हर सुख – सुविधा है  ।  विभूति जी ने मुस्कुराते हुए कहा..”कुछ दिन के लिए बाद में आऊँगा बेटा ! केतकी के सिर पर हाथ फेरते हुए बोले…”अपनी तीसरी बेटी के घर पहले जाऊँगा, मेरे आने से पहले ही इसने मुझे कहा था आपको मेरे पास आकर रहना है । केतकी मुस्कुरा दी और कैब आते ही दरवाजा खोलकर इशारे से सास – ससुर को बैठने कहा । घर पहुँचकर विभूति जी ने दोनो बेटियों को फोन मिलाया और शाम को सुमित के घर आने कहा । दोनो बहनों ने आपस मे नाक – भौं सिकोड़कर चर्चा किया और अनमने मन से अपने परिवार के साथ भाई – भाभी के यहाँ गयी । केतकी ने सबके लिए अपने हाथों से स्नैक्स के लिए चाय समोसा बनाया । अपनी मम्मी के हाथ के बने हुए मठरी, नानखटाई , ठेकुआ और चिप्स भी निकाले । पूरा टेबल पकवानों से भर गया था । नीतू नीलू एक दूसरे को कनखियों से निहारती और बुदबुदाते हुए खातीं । केतकी कपड़े डालने बाहर गयी तो उर्मिला जी ने बोला…”तुमलोग की आदत ठीक नहीं है बेटा ! कल से देख रही हूँ तुमलोग केतकी के साथ अलग सा बर्ताव कर रही हो । क्या कमी है उसमें ? “तुम्हें अच्छे जगह ब्याह दिया मतलब ये नहीं कि भाभी को देखकर तुम्हारे अंदर हीन भावना पनपे “। अब विभूति जी ने भी कहा…”घर में किसी चीज की कमी नहीं, इतना अच्छा बना – सँवरा घर तो संयोग से मिलता है, उसमें क्यों ये सब हरकतें करना । नीलू ने मुँह फेरते हुए कहा…”मम्मी ! आप बहू का पक्ष सिर्फ ले रही हैं, हमारा सोचा है..? हम इसलिए मना करते हैं कभी – कभी सुमित केतकी को घर आने से क्योंकि मेरे ससुराल वाले यहीं रहते हैं । जब वो हमारे पास आते हैं कितने सलीके से महँगे कपड़े पहनकर आते हैं, उनका अलग स्टैंडर्ड है, और केतकी जब देखो सूट साड़ी में रहती है मुझे अच्छा नहीं लगता है । नीतू ने भी कहा…”हां मम्मी ! अब आप मेरे से शिकायत मत करना । मेरी भी किटी आए दिन होती है मैंने केतकी को मना कर दिया है आने के लिए । मुझे जब मिलना होगा आकर मिल लूँगी ।

“थोड़ा तैश में आकर सुमित ने बोला…”देख लीजिए मम्मी ! आप बोलती हैं दोनों दीदी को पूछूँ ? पर कैसे..? यहाँ ओहदे देखकर रिश्ते निभाए जाते हैं । मेरी पत्नी मॉडर्न ड्रेस नहीं पहनती तो उसे कोई गले नहीं लगाता, बराबरी नहीं दिखती ना इसमें ? इस तरह तो रिश्ता नहीं चलने वाला ।अगर भाई से रखना है रिश्ता तो भाभी से भी रखना होगा ।

विभूति जी ने सिर पर हाथ रखते हुए कहा…”बहुत गलत फहमी में जी रहा था मैं । मुझे लगा मेरा घर – परिवार पूरी तरह सुलझा हुआ है, पर मुझे नहीं पता था इस कदर उलझा हुआ है । “नीलू- नीतू ! तुम दोनों बड़ी हो तुम अगर नहीं मान दोगी भाई – भाभी को तो हमारे बाद मायके कैसे निभाओगी ? बातों को बात करके निकाला जाता है मन में गाँठ रखने से नहीं । ऐसा लग रहा है अच्छे घर में तुमलोग की शादी करके गुनाह कर दिया मैंने । मुझे भी बड़ी चिंता थी कैसे रहेंगे, क्या करेंगे पर केतकी की आत्मीयता देखकर दिल भर आया ।  थोड़ी देर कमरे में सन्नाटा पसरा रहा । फिर केतकी ने आकर कहा…”अरे ! सब कुछ पड़ा हुआ है, आपलोग क्यों नहीं खा रहे, खाइए ना । सुमित ने ड्राइंग रूम से जीजा जी और बच्चों को भी साथ मे बुला लिया । नीतू ने नानखटाई खाते हुए कहा…”हमारी सोसायटी में भी कुछ औरतें बनाती हैं, मुझे बहुत पसंद है । नीलू की दस वर्षीय बेटी ने कहा…”मम्मी ! ये अलग चीज है, बहुत स्वादिष्ट हैं सारे । कुछ बचाकर रख लो न ! पिकनिक में ले जाऊँगी । देखते – देखते सारा खाना चट – पट हो गया । अब नीतू ने दबे मन से केतकी से बोला..”निकलते हैं हमलोग । मम्मी – पापा को लेकर मेरे यहाँ आना । केतकी बहुत ज़िद करके रोकने लगी तो नीतू नीलू ने एक साथ ही कहा..”जगह कहाँ है रुकने के लिए ? केतकी ने बेड के अंदर से गद्दा निकाला और ड्राइंग रूम , दोनो बेडरूम और डायनिंग स्पेस में बिछा दिया । सबको पास वाले हैंडलूम मेले की खूबी बताई और घूम आने को कहा । वापस लौटने पर केतकी ने दाल तड़का, भरवा बैंगन, पनीर, पुलाव, कचौरी और रायता सब तैयार करके सजा दिया । सुमित के जीजा जी देखते ही बोल पड़े..अहा ! लग रहा है सबकी पसन्द का कुछ न कुछ आया है । केतकी जवाब में बस मुस्कुरा दी । सुमित ने कहा..”दीदी जीजाजी ! सब केतकी ने अपने हाथों से बनाया है, बहुत अच्छा खाना बनाती है वो । यहाँ पड़ोस में सब उसके हाथ के स्वाद के दीवाने हैं । नीलू और नीतू चौंक गईं सुनकर । नीतू का मुंह खुला रह गया । उसने केतकी की तरफ देखकर पूछा..”सच मे केतकी ? इतना कुछ और इतना अच्छा बनाती हो तुम, तुम्हें अंदाज़ भी है ? फटाफट नीतू और उसके बेटे ने मुंह मे कचौरी दबाते हुए कहा…मम्मी ! आपकी बहू तो आपकी भी गुरु निकली । याद है आप हमें कितना कुछ बनाकर देती थीं जब हमारे बच्चे छोटे थे, पर हमने कभी नहीं सीखा । अब नीतू को देख नीलू के अंदर भी अच्छे खाने का लालच जाग उठा ।उसने भी झट से एक बैगन चख लिया । केतकी ने पूछा..”कैसा लगा दीदी ? इशारे से नीलू ने कहा..”बहुत अच्छा ..क्या बताऊँ ? 

खाने – पीने के बाद  सबको सुमित और केतकी ने सोने के लिए जगह दिखाया । अब उर्मिला जी ने मिलकर हाथ बंटाना चाहा बर्तन धोने में पर केतकी ने सबको वॉक करके आने बोला और जल्दी से नान खटाई थोड़ा ज्यादा बनाकर ओवन में सेट कर दिया । ठेकुआ पहले से ही ज्यादा बना हुआ था । सुमित ने कहा ..”आपलोग जाइये, मैं जीजा जी के साथ बातें करूँगा । बाहर जाकर पार्क में सब बैठ गए । विभूति जी ने कहा..”बेटा ! अब उम्मीद करता हूँ तुमलोग भाभी को भी अपने दिल मे जगह दोगी । किसी के कपड़े और रूप देखकर नहीं अच्छे व्यवहार से रिश्ते निभाए जाते हैं ।  उसके घर मे उसका क्या ओहदा था हमे वो नहीं देखना अब वो हमारे घर की है हमे अपना मानकर चलना है  । कितना दिल से कितनी आत्मीयता से उसने सबको एक छोटे से घर मे रखा । गाँव वाला वो साथ रहने वाला ज़माना याद आ गया । “सॉरी पापा ! हमारी गलती थी, नहीं करना था हमे ऐसा । एक स्वर में ही दोनो बहनों ने कहा ।

एक घण्टे के बाद सब घर लौटे । उर्मिला जी ने कहा..”बड़ी सोंधी खुशबू आ रही है । सुबह की कुछ तैयारी कर लिया क्या केतकी ? “हाँ मम्मी जी ! हंसते हुए केतकी ने कहा ।

अगले दिन सुबह केतकी ने चाय पोहा बनाया और जलेबी मंगवा कर सबको परोस दिया । उर्मिला जी ने अब निश्चिंत होकर सबको लाया हुआ उपहार भेंट किया ।

अब निकलने के लिए सब तैयार थे । जल्दी से केतकी ने दो – दो बंधी हुई प्लास्टिक दोनो बहनों को पकड़ाते हुए कहा…”दीदी ! आपलोगों को पसन्द आया न? इसलिए ये दे रही हूँ ।

नीलू ने हाथ रोकतें हुए कहा…”क्यों दे रही हो केतकी ? खा लिया ना ? इतने सारे कब बना लिए ? पहले से बनाकर रखे थे दीदी, और फिर आपलोग को वॉक पर भेजकर थोड़ा बनाया । मुझे विश्वास था ये सबको पसन्द आता है आपलोग को भी पसन्द आएगा । 

“नीतू कभी आगे हाथ बढ़ाती कभी पीछे हटा लेती । फिर विभूति जी ने कहा..”माँ की पुरानी याद दिला दी केतकी ने, तुमलोग किस्मत वाली हो बेटा, इतनी अच्छी भाभी मिली है । नीतू नीलू के नैन सजल थे, कंठ अवरुद्ध होकर आवाज़ बाहर नहीं आ रहे थे केतकी की इस भावना के आगे ।

गाड़ी में बैठने से पहले दोनो बहनों ने केतकी से गले मिलते हुए कहा..”हमें समझने में गलती हो गयी केतकी ! भाई – भाभी का सुख समझने में इतना समय लग गया । पता ही नहीं चला रिश्ते में कब ये ओहदा बीच में आ गया ।

केतकी भी भाव – विभोर हो गयी और देर तक गले से लिपटी रही । सुमित ने भी दीदी के गले लगते हुए कहा.”आते रहना दीदी !

अब उर्मिला जी और विभूति जी भी सब बच्चों को साथ देखकर खुशी व सुकून महसूस कर रहे थे ।

मौलिक , स्वरचित

(अर्चना सिंह)

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