निष्कलंका – करुणा मलिक : Moral Stories in Hindi

भाभी, साक्षी के बिना घर में मन ही नहीं लगता । पूरे मोहल्ले की रौनक़ थी । इस बार तो आ गई पर आगे से मुझे भी तब बुलाना जब साक्षी को बुलाओ ।

ये तो कोई बात नहीं दीदी…… तुम दोनों बुआ-भतीजी साथ आओगी और पूरे घर में सन्नाटा करके इकट्ठी चली जाओगी , खामोशी की सजा हम दोनों भुगतेंगे ।राजन भी आस्ट्रेलिया जाकर बस गया…. वो तो बहन की शादी में ही एक हफ़्ते के लिए आ पाया था । तुम्हारे भइया तो कह रहे थे कि दो-दो महीने के अंतर पर एक बार आपको और एक बार साक्षी को बुला लिया करेंगे…..

हमें भी अकेलापन नहीं लगेगा और आप दोनों के ससुराल वालों को भी एतराज़ नहीं होगा ।आपको तो जीजाजी और बच्चों के खाने- पीने के इंतज़ाम का  भी झंझट नहीं …. बड़े संयुक्त परिवार का यही तो फ़ायदा है ….. 

नंदा दो दिन पहले ही अपनी भतीजी साक्षी के विवाह के बाद पहली बार अपने मायके आई थी पर हमेशा चहकने वाली साक्षी के बिना, घर काटने को दौड़ रहा था ।एक दिन तो नंदा यह सोचकर चुप रही कि मन न लगने वाली बात भाभी को अच्छी नहीं लगेगी पर अगले दिन तो चुप रहते-रहते उसके मुँह से खुद बख़ुद निकल ही गया कि साक्षी के बिना घर में मन नहीं लगता ।

अब तक तो पूरे मोहल्ले में बता आती—-

मेरी बुआ आई है, मिलने कब आओगी…. और पड़ोस की औरतें पहुँच जाती । दो दिन से आई हूँ पर मजाल कि मुझसे मिलने परिंदा भी फटका हो …… सब बच्चों की माया है भाभी ! याद है कैसे …कभी-कभी तो शाम की चाय के वक़्त इतनी औरतें इकट्ठी हो जाती थी कि आप भी झुँझला उठती थी ।

हाँ दीदी …. कुछ औरतें तो  आपसे मिलने के बहाने ऐन खाने-पीने के समय आती थी ….किसी-किसी दिन तो शाम से पहले ही दूध ख़त्म हो जाता था…. आज देख लो , दूध का पतीला यूँ ही पड़ा है… शाम को खीर बना दूँ ? बड़े दिन से बनाई ही नहीं….

भाभी…. फ़ोन करके देखो ना साक्षी की सास से ….. कि बुआ आई है, दो- चार दिन के लिए भेज दें …….फ़ोन पर बात करके मज़ा नहीं आता ।

तक़रीबन दो हफ़्ते पहले कहा था भेजने के लिए पर दामाद जी ने यह कहकर मना कर दिया कि उनके कुछ दोस्त आने वाले हैं तो फिर मैं चुप हो गई….. वैसे सास तो बेचारी अच्छी है, मुझे तो दामाद ही कुछ नखरीला सा लगा ….. साक्षी को जब भी फ़ोन करो बस राज़ी ख़ुशी पूछके रख देती है कि बाद में फ़ोन करेगी , बाद में खुद करो तो कहती है कि माँ दिमाग़ से निकल गया । वैसे दीदी….आपकी तो बात होती रहती होगी ?

मुश्किल से दो-चार बार बात हुई….. नई-नई रिश्तेदारी है…. मन में संकोच सा रहता है….. साक्षी को कहा था कि बेटा तू ही कर लिया कर जब मौक़ा मिले ….. 

अच्छा….. ना दीदी अपनी बच्ची से बात तो करेंगे ही, संबंध थोड़े ही तोड़ लेंगे ….. घर- गृहस्थी में टाइम तो कभी मिलता नहीं… खुद निकालना पड़ता है ।

दोनों ननद-भाभी बातें कर रही थी कि फ़ोन की घंटी बजी ,नंदा फुर्ती से उठी और फ़ोन देते हुए बोली——

लो भाभी…. बात करो  , साक्षी का है …..

हाँ बेटा ….. आजा … तेरी बुआ भी आई है अभी फ़ोन करने की सोच ही रही थी । विवेक के साथ आएगी या तेरे पापा को…..

अपने आप …… क्यों  ?? चल आ जा …. कल सुबह….ठीक है 

अगले दिन ही सुबह साक्षी टैक्सी से अपने दो बड़े- सूटकेसों के साथ मायके आ गई । क़रीब तीन महीने के बाद बेटी को देखकर माँ कीं आँखों से आँसू निकल पड़े——

ये कैसी हालत बना रखी है….. इतना गहना -कपड़ा चढ़ा दोनों तरफ़ से…. फिर भी हाथों में एक-एक काँच की चूड़ी, अपने कंगन क्यों नहीं पहने , चेहरे पर छाया पीलापन, पिचके गाल….

छोड़ो ये सब …. इनसे क्या होता है माँ ?

बात बता …. क्या हुआ? दीदी.. एक गिलास पानी दे दो इसे ..

उसके बाद साक्षी ने अपने माता-पिता और बुआ को बताया—

पूरे छह महीने हो गए….. मैंने बर्दाश्त करने और विवेक को समझाने की बहुत कोशिश की पर वे उस लड़की को छोड़ने के लिए तैयार ही नहीं….अभी तक उम्मीद थी कि शायद अफ़ेयर है,  पर  मुझे तो कल ही पता चला कि शादी के बाद जब विवेक ऑफिस टूर और हनीमून पर कहकर ले गए तो वो भी साथ थी …..

तब तो मुझे विवेक ने ये कह दिया कि तीन- चार घंटे हेड आफिस में जाऊँगा बाक़ी समय घूमना-फिरना, मैं क्यों शक करती ….. उनके मम्मी- पापा उस लड़की के बारे में जानते थे पर उन्हें उम्मीद थी कि शादी के बाद विवेक अपने घर पर ध्यान देंगे , बु…आ…. क़ानून के हिसाब से तो मेरी शादी लीगल नहीं क्योंकि दोनों ने कोर्ट मैरिज कर रखी है……कोर्ट मैरिज की बात विवेक के मम्मी- पापा को भी पता नहीं थी ।

हाय राम ! लड़की का पूरा जीवन बर्बाद कर दिया ….. कीड़े पड़ेंगे…. सब कुछ देखभाल के किया ….. किसी को भी खबर ना हो…. मैं ना मान सकती …….पर सच है किसी को क्या लेना- देना होता है……..उन  बुड्ढे-बुढ़िया को भी मेरा श्राप लगे , जिन्होंने पता होते हुए भी मेरी बच्ची का जीवन दाँव पर लगा दिया …..दीदी….. फ़ोन तो करो जीजाजी को … कोई तो रास्ता बताएँगे…..

और तुरंत नंदा ने अपने वकील पति को सारी घटना सुना डाली पर उन्होंने बस इतना ही कहा—-

कोर्ट का मामला बड़ा लंबा , पेचीदा और निराशादायक होता है फिर लड़की और लड़के के पास कोर्ट मैरिज का सर्टिफिकेट है , ऐसे में मुक़दमा दायर करके तारीख़ें मिलती रहेगी …. कल शाम तक पहुँचता हूँ, तब सोच- विचार कर फ़ैसला करेंगे । 

दीदी…. कलंक तो लग ही गया …. मुक़दमा करो ना करो ….

कैसी बात करती हो भाभी …. धोखा दिया है उन्होंने और कलंक लगा दिया आपने साक्षी पर, ये तो न्याय नहीं है। लड़की वाले इससे ज़्यादा क्या करते …. घरबार देखकर आए , ऑफिस जाकर देखाभाली की , दो-चार लोगों से पूछताछ कराई … शादी भी सगाई के चार महीने बाद की ….. अब किसी के अंदर क्या है…. कैसे पता चलता । विज्ञापन के ज़रिये हज़ारों लोग शादियाँ करते हैं, बस समय की बात है ।

अगले दिन नंदा के पति भी आ गए । साक्षी के माता-पिता ने  फ़ैसला किया कि विवेक के मम्मी- पापा से बातचीत करके आपसी सहमति से  तलाक़ की प्रक्रिया निपटाने  में ही समझदारी है क्योंकि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत पहली शादी ही मान्य होती है ।

….. तो क्या विवेक को उसकी इस धोखा धड़ी की कोई सजा नहीं मिलेगी ? नहीं भाभी …. बात केवल हमारी साक्षी की नहीं बल्कि हज़ारों उन लड़कियों की भी है जो निर्दोष होती हैं और यह समाज उनके माथे पर कलंक लगा देता है, छुटी हुई …. तलाकशुदा…. न जाने क्या-क्या?

भले ही कोर्ट मैरिज की हो , हमारे पास सबूत हैं , गवाह है… मज़ाक़ बनाकर रख दिया…..सुनो साक्षी ! तुम्हें शर्मिंदा होने की ज़रूरत नहीं… हम सब उसकी असलियत सबके सामने लाएँगे।

साक्षी की ससुराल में नंदा ने अपनी सभी सहेलियों के साथ घर-घर जाकर मोहल्ले और शहर के लोगों को इस घटना से अवगत कराया ।  महिलाओं के जनसमूह ने विवेक के घर के बाहर धरना दिया , पूरे शहर में प्रदर्शन किए और  अंत में सास-ससुर तथा विवेक को पुलिस ने धोखाधड़ी के आरोप में गिरफ़्तार कर लिया । 

शादी मान्य है या नहीं, यह विचार तो बहुत पीछे छूट गया था क्योंकि  विवाह तो आत्माओं का मिलन होता है और आत्मा तो बहुत पहले ही छिन्न-छिन्न हो चुकी थी ।  

साक्षी मामले में लोगों की एकजुटता और गवाही ने  जहाँ विवेक को सलाख़ों के पीछे पहुँचा दिया वहीं उसके माता-पिता   अपनी सोच और कृत्य पर न केवल शर्मसार थे अपितु सजा के हक़दार भी बने।

उसी दौरान साक्षी की मुलाक़ात नंदा के पति के अधीन इंटर्नशिप करने  वाले ऐसे युवक से हुई जिसने स्वयं आगे बढ़कर साक्षी का हाथ माँगा ।   

बुआ….. अब मन ही नहीं करता , डर लगता है । अगर फिर कुछ ऐसा ही मिला तो …..

पागल है….. पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होती बेटा । अपने पापा को देख , अपने फूफाजी को देख….. फिर तीन साल से तो मैं राघव को जानती हूँ । ऐसे घबराकर काम नहीं चलता ….. 

नंदा की कई महीनों की अथक मेहनत के बाद राघव ने साक्षी के सूने जीवन को रंगों से भर दिया । 

करुणा मलिक 

#कलंक

VM

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