न बेटी न…! ऐसा मत सोचना। तुम इस दुनिया की सबसे खूबसूरत ईश्वर की रचना हो। तुम में वह सभी अच्छाई समाहित हैं जिसकी लोग कल्पना करते हैं। और रही बात रंग रूप की…. यह भी कहां स्थाई है, आज है कल चला जाएगा।
मणिमाला – मैं सुंदर नहीं हूंँ, लोग मेरा उपवास उड़ाते हैं। इसलिए मेरी कोई सखी, सहेली भी नहीं है।
अरे बिट्टी तुम क्या जानो तुम क्या हो…?
मांँ तुम मेरा मन रखने के लिए ऐसा कह रही हो।
जब दुल्हन का सिंगार किया जाता है तब उसकी खूबसूरती बढ़ाने के लिए उसके गाल या होठों के ऊपर एक छोटा सा अस्थाई तिल बनाया जाता है जिससे उसकी खूबसूरती और निखर सके। तुम वही खूबसूरत तिल हो। लेकिन तुम ऐसा सोच कर अपनी उन्नति के मार्ग को अवरुद्ध मत करना बिट्टी।
नानी ने मणिमाला को समझाया….
उसे आज भी याद है जब वह मणिमला को घर लेकर आई थी तब वह मात्र एक महीना की थी। कितनी कमजोर मात्र मांस का लोथड़ा लगती थी। संजना ने उसे एक दिन भी स्तनपान नहीं करवाया था।
माँ ने कितनी बार समझाया था कि इसमें उस बच्ची का क्या दोष है..? लेकिन संजना टच से मस नहीं हुई।
संजय और संजना की चौथी संतान मणिमाला थी। तीन बेटियांँ बहुत ही खूबसूरत और आकर्षक चेहरे की थी किंतु मणिमाला इन सब से एकदम भिन्न थी। काला रंग नैननक्श भी अच्छे नहीं थे। संजना ने जैसे ही अपनी चौथी बेटी को देखा वह भयभीत हो गई। पति-पत्नी दोनों उस बच्ची को अपने जीवन में किसी की बद्दुआ समझ कर उससे किनारा करना चाह रहे थे।
संजना के चौथे प्रसव के लिए उसकी मांँ सुमित्रा आई थी। उन्होंने संजना को बहुत समझाया कि यह बच्चा भी ईश्वर की अनुपम कृति है तुम उससे किनारा करने की बात कैसे सोच सकती हो..?
“यदि यही चौथी संतान पुत्र होता और चाहे जितना कुरूप होता तब भी तुम लोगों को खूबसूरत ही लगता।”
बेटी है इसलिए……?
मत भूलो संजना तुम भी एक बेटी हो…!!
संजना बोली- मांँ मैं इस बच्ची को देख नहीं सकती हूँ इसलिए इसको बहुत दूर छुड़वा दूंँगी।
संजना को बार-बार समझाने पर भी, जब उस पर कोई असर नहीं हुआ तब सुमित्रा बोली- ठीक है इस बच्ची को मुझे दे दो। सुमित्रा उस बच्ची को लेकर अपने गाँव चली आई। उसका नाम मणिमला रखा गया।
मणिमला धीरे-धीरे बड़ी होने लगी। वह नानी को मांँ कह कर पुकारती थी। नानी भी उससे बेहद स्नेह करती थी। मणिमाला अपनी उम्र के बच्चों से बढ़कर ज्यादा समझदार एवं बुद्धिमान थी। हमेशा दूसरों की सहायता करने के लिए तत्पर रहती।
खेतों से कोई चारा का गट्ठर लेकर आता उसे थका हुआ जानकर उसका गट्ठर स्वयं अपने सिर पर लेकर उसके घर तक पहुंचा देती। किसी-किसी को खाना खेतों पर पहुंचा देती। कोई अकेले मशीन से चारा काटता उसके पास तुरंत हाजिर होकर उसका चारा कटवा देती। इस तरह से वह पूरे गांव की लाडली बच्ची थी। नानी को सोते समय पैरों में प्रतिदिन तेल लगाती, माँ उसे उसे ढेरों आशीर्वाद देती।
मणिमाला जब थोड़ी बड़ी हुई तब नानी से अक्सर पूछती- मांँ हमारे माता-पिता ने मुझे क्यों त्याग दिया..?
सुमित्रा बोली बेटी तुम्हें त्यागा नहीं है, मैं अकेली थी इसलिए मैं तुम्हें अपने साथ लेकर आ गई।
मणिमला बोली- नहीं माँ अगर मेरे माता-पिता मुझे चाहते, तो कभी हमसे मिलने आते। पिछली बार चंदन मामा के ब्याह में वह आई थी देखा नहीं, वह मुझे कितनी घृणा भरी नजरों से देख रही थी। स्पर्श करना तो दूर उन्होंने मुझसे बात तक नहीं की।
मणिमला का गांँव के स्कूल में दाखिला करवा दिया। पांचवीं कक्षा तक बिना किसी सहायता के बहुत अच्छे अंकों से पास होती गई। कक्षा में उसकी कोई सखी सहेली नहीं थी सब उसके रंग रूप को देखकर उपवास उड़ाते।
मणिमला उनका कोई प्रतिउत्तर नहीं देती थी बस शांत होकर सब कुछ देखती रहती थी।
उसे तुरंत अपनी मांँ के कहे शब्द याद आते.. न बेटी न।
पांँचवी कक्षा में उसने सर्वोच्च अंक प्राप्त किये। वहाँ के हेड मास्टर द्वारा उसे सम्मानित किया गया। मणिमाला के बाल मन पर इसका बहुत सकारात्मक गहरा प्रभाव पड़ा। वह सोचने लगी कि मुझे मेरी पढ़ाई के लिए इतनी प्रशंसा मिली रही है, अगर मैं अपना ध्यान पढ़ाई पर केंद्रित करूंँ तो जरूर एक दिन मेरे माता-पिता मुझे अपनी बेटी कह कर पुकारेंगे।
गांँव से दूर मणिमला का छठी कक्षा में दाखिला दिला दिया गया। मणिमला अपने अध्यापकों की बहुत प्रिय छात्रा थी। उसे कक्षा का मॉनिटर बना दिया गया। जिसे वह भली भांति निर्वाह कर रही थी। मणिमाला प्रत्येक कक्षा में सत प्रतिशत अंकों से पास होती गई।
दसवीं कक्षा में उसने राज्य स्तर पर तीसरा एवं जिला स्तर पर प्रथम स्थान प्राप्त किया। मणिमाला को बधाइयों के लिए ताँता लग गया।
सुमित्रा का खुशी से सीना चौड़ा हो गया था। जिस बच्ची को बद्दुआ समझकर उनकी बेटी ने फेंक दिया था। आज वही दुआ बनकर उसके जीवन में आई है। उस बच्ची ने सुमित्रा का नाम रोशन कर दिया। उनकी अपनी औलादों से भी इतना सम्मान कभी प्राप्त नहीं हुआ था, जितना मणिमाला से हुआ।
मणिमाला के आगे की पढ़ाई की जिम्मेदारी वहाँ के जिला कलेक्टर दया शंकर जी ने ले ली और घोषणा की- मैं मणिमाला को वह सभी सुविधाएं दूंँगा जो एक अच्छे विद्यार्थी को मिलनी चाहिए।
मणिमाला ने बारहवीं करने के पश्चात स्नातक में दाखिला लिया और अपनी पढ़ाई पूर्ण मनोयोग से करने लगी। कलेक्टर बाबू उसका हाल-चाल जानने के लिए बीच-बीच में मिलने आते थे।
एक बार मणिमाला ने उनसे आईएएस बनने की इच्छा जताई। कलेक्टर बाबू ने उसे अतिरिक्त किताबें देते हुए उसका मार्गदर्शन किया।
मणिमाला अपने कोर्स के साथ- साथ सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी भी करने लगी।
मणिमला का स्नातक हो गया। उसने एक साल और ज्यादा परिश्रम करने के पश्चात यूपीएससी परीक्षा पास कर ली। तत्पश्चात प्रशिक्षण के लिए अकाडमी में चली गई।
आज मणिमला का पासिंग आउट परेड थी जिसके लिए कलेक्टर दयाशंकर जी एवं सुमित्रा मांँ आई हुई थी।
समापन के बाद मणिमला ने सुमित्रा मांँ एवं कलेक्टर दया शंकर जी के चरण स्पर्श किए और कहा- यदि आप लोग मेरे जीवन में न आए होते तो मैं इतना लंबा सफर कभी तय न कर पाती।
दया शंकर जी ने कहा आओ …! तुम्हें किसी से मिलवाते हैं….! सामने एक बहुत ही खूबसूरत सुदर्शन युवक खड़ा मुस्कुरा रहा था। मणिमला ने उसे देखा जो लगातार मुस्कुराये जा रहा था। उसने दयाशंकर जी की तरफ प्रश्नवाचक नजरों से देखा।
दया शंकर जी ने कहा बताता हूंँ.. भई बताता हूंँ।
यह है मेरे सपुत्र…! विनय दयाशंकर जो तुम्हारे प्रीवियस बैच का आईएएस ऑफिसर है। कुछ महीने पहले अंतरिम प्रशिक्षण के लिए लंदन गए हुए थे।
तुम्हारे बारे में जब मैंने इन्हें बताया तब इन्होंने ही तुम्हारे लिए अध्ययन सामग्री के लिए अपनी समस्त पुस्तकें आपको दी थी। जो मैं समय-समय पर आपको देता रहता था। मणिमला ने दोनों हाथ जोड़कर विनय का अभिवादन किया।
आप लोगों ने जो मेरे लिए किया है उसका अहसान कैसे चुका पाएंगे…??
दया शंकर जी सुमित्रा मांँ की तरफ मुस्कुराते हुए देखकर बोले – उसका भी हमने इंतजाम कर लिया है।
वह विनम्रता पूर्वक बोली कौन सा इंतजाम…!
हम अपने बेटे विनय के साथ आपका विवाह करना चाहते हैं।
क्क्क्कककककया???
उसकी जवान लड़खड़ा गई। कहांँ यह इतने सुंदर विनय जी और कहांँ मैं…!
विनय तुरंत बोला तुमसे ज्यादा खूबसूरत कौन हो सकता है..? सुंदरता सिर्फ रंग रूप से नहीं, बल्कि शिक्षा,आचरण और हुनर से आती है। और तुममें कोई कमी नहीं है। इसलिए मेरी नजर में तुम बहुत खूबसूरत हो।
संजना और संजय दोनों अपने किए पर शर्मिंदा थे। उन्हें बहुत अफसोस था। जिसे उन्होंने कोयला समझ कर फेंक दिया था, सचमुच..! वह तो एक बहुमूल्य मणि थी। अब वह किस मुंँह से मणिमला से अपने माता-पिता होने का दावा कर सकते हैं। दोनों अपने कृत्य के कारण शर्म से गड़े जा रहे थे। समय के साथ-साथ बहुत कुछ बदल चुका था।
कुछ दिनों के बाद विनय और मणिमाला के विवाह की तिथि तय हो गई। मांँ ने संजना बेटी और संजय को न्योता भिजवाया। संजय और संजना अपने किए पर बहुत शर्मिंदा थे। वह अपनी मांँ और मणिमाला से भी माफी नहीं मांँग पा रहे थे, क्योंकि उनका कृत्य बहुत बड़ा था।
विवाह समारोह शुरू हुआ पंडित जी ने कहा, कन्यादान के लिए माता-पिता आगे आए । संजना और संजय आगे बढ़ने लगे। सुमित्रा ने उन्हें पीछे हटने के लिए कहा और खुद आगे बढ़कर कन्यादान के लिए बैठ गई।
संजना और संजय के आंखों में आंँसू थे। यह उनके पश्चाताप के आंँसू थे। आज वह अपनी बेटी को बेटी नहीं कह सकते थे और न ही कन्यादान कर सकते हैं।
आज बेटी के कद के आगे दोनों अपने आप को बहुत बौना समझ रहे थे।
विवाह संपन्न हुआ। पंडित जी ने सभी बड़ों से आशीर्वाद लेने के लिए वर वधू से कहा। मणिमाला और विनय ने झुककर सुमित्रा मांँ को प्रणाम किया। मणिमाला ने देखा संजना और संजय काफी पीछे खड़े हैं। मणिमला उनके पास गई और उन दोनों को प्रणाम किया।
विनय ने पूछा यह कौन है…?
मणिमाला – यह मेरी सुमित्रा मांँ के बेटी और दामाद है। कहकर वहांँ से चली गई।
सुनीता मुखर्जी “श्रुति”
लेखिका
हल्दिया, पश्चिम बंगाल