मंझली बहू – शुभ्रा बैनर्जी  : Moral Stories in Hindi

चार बेटों की मां,मुग्धा देवी कठोर अनुशासन प्रिय महिला थीं।उनकी मर्जी के बगैर घर में पत्ता भी नहीं हिलता था।पति के जाने के बाद पूरे परिवार की जिम्मेदारी बड़े बेटे शुभ के कंधों पर आ गई थी।अपनी कमाई से ही संयुक्त परिवार का खर्च वहन करता था वह।मंझले बेटे के साथ गुरु दर्शन को गईं,मुग्धा देवी, और वहीं उन्हें एक गुरु बहन मिल गई । बातों-बातों में गुरू बहन ने मुग्धा देवी से बेटे की शादी की बात पूछते हुए कहा”बेटा तो अब शादी के लायक हो गया है।शादी कब करेगी?” 

मुग्धा देवी ने बड़े चाव से उतर दिया” इसलिए तो गुरू दर्शन के लिए आश्रम आई हूं। गुरुदेव की कृपा मिल जाए,तो ब्याह भी हो जाएगा।”

तभी गुरु बहन को दादी कहती हुई एक सुंदर लड़की घर में आई।मुग्धा देवी उसे देखते ही मुग्ध हो गईं।उसके अंदर जाते ही उसके बारे में पूछा,तो पता चला यह गुर बहन की नातिन है। गुरु जी से दीक्षा दिलवाने लाई है।मुग्धा देवी ने गुरूजी से जब अपने मंझले बेटे को विवाह का आशीर्वाद देने को कहा,तो उन्होंने हंसकर कहा” मुग्धा ,तेरी बहू तो खुद चलकर यहां आई है।वही,रूपवती स्त्री तेरी मंझली बहू बनेगी।बात पक्की कर।”

गुरू के ऊपर अपार श्रद्धा आज विश्वसनीय सिद्ध हो गई।लड़की के परिवार वालों को बुलवाया गया।मुग्धा जी ने अपने तीनों बेटों को बुलवा लिया।उनका मंझला बेटा व्यवसाय करता था।किसी को आपत्ति नहीं थी,लड़की की मां को छोड़कर।वे अभी बेटी की शादी नहीं करना चाहतीं थीं।पहले बेटी को उसके पैरों पर खड़ा करना चाहती थी।पति भी तैयार थे।यहां आकर मां ने अंतिम निर्णय सुना दिया” सुनो,मैंने अपनी गुरू बहन को वचन दिया है।उसी के बेटे के साथ हमारी सुमन की शादी होगी,वह भी कल ही। गुरू जी स्वयं विधि विधान से यह विवाह संपन्न करेंगे।इससे बड़ा पुण्य तुम्हें कभी मिलेगा नहीं।अगर शादी नहीं करोगे,तो मैं उस घर में वापस नहीं जाऊंगी।यहीं आश्रम में पड़ी रहूंगी।”

बहू ने सहमति नहीं दी,और बेटा मां के अंतिम निर्णय से दुखी था।औरत ही हारी ।मां हार गई। अपनी बेटी की शादी रोक नहीं पाई, क्योंकि सास के बेटे को अपनी मां को गुरु आश्रम में रख जाने का साहस नहीं था।

आखिर विवाह संपन्न हुआ,पूज्य गुरू जी के द्वारा।सुमन अब  ससुराल की मंझली बहू बन गई।शिक्षिका मां की लाड़ली बेटी, विद्रोही स्वभाव‌ की थी ।पढ़ने लिखने में अव्वल  सुमन को सास ऐसी मिलीं, जो बहुओं को अपनी नकेल के नीचे दबाना जानती थी।शादी होने के बाद से ही ,मंझली बहू का किसी अन्याय बात के लिए विरोध करना , घर में महाभारत का रण छिड़वा देता।इस रण में आहुति देते मुग्धा देवी के सझले बेटे।

अपनी छोटी -छोटी खुशियों का त्याग कर, सुमन घर की मंझली बहू बनने की सारी जिम्मेदारी निभा रही थी।हां, सुबह होते न होते सास के मुंह से चार या पांच गालियां मुफ्त में मिलती थीं उसे।संयुक्त परिवार में मां को भगवान का दर्जा दिया जाता है।ऐसे परिवार की सबसे बड़ी विशेषता, कि मां का बहुत सम्मान करतें हैं।मां की भूल पकड़ने का दुस्साहस आज तक किसी ने नहीं किया था।अब सुमन उनकी अंधविश्वास और पुरानी सोच को बदलने का प्रयास करने लगी थी।कोप का भंजन भी बनती , पर एक शिक्षित बहू होने के नाते परिवार की सोच बदलना सुमन ने अपनी जिम्मेदारी समझी सदा।

अब दोनों देवरों की भी शादियां हो चुकीं थीं।घर में चारों भाइयों के बच्चों से चहल पहल मची रहती।रसोई चार बहुएं ही बनाती थीं,पर सुमन की एक और जिम्मेदारी थी,बच्चों को पढ़ाने की।अपने हिस्से का काम निपटाकर घर के सभी बच्चों को लेकर बैठती,और उन्हें पढ़ाती। स्कूल के लिए तैयार भी वही करती थी।

संझले देवर(प्रभास)को मंझली बहू की हिटलरी फूटी आंख ना भाती थी।बच्चों को पढ़ाती हुई मंझली बहू उन्हें विद्रोही ही दिखती।पति ने अनेक बार समझाया”सुमन ,पढ़ाना है तो अपने बच्चों को पढ़ाओ,बाकी भाईयों के बच्चे ट्यूशन भी जा सकते हैं।तुम क्यों अपना जी जलाती हो।मां के पास जाकर मेरा भाई तुम्हारी बुराई करता रहता है,।तुम्हें उनकी नजर में गिराता रहता है।मुझे अच्छा नहीं लगता, यह रोज-रोज का क्लेस।”सुमन को सच में बुरा नहीं लगता था।सुमन के पति (विभास)व्यापारी तो अच्छे थे, पर थे बड़े कंजूस।बड़ी मुश्किल से कुछ पैसे बड़े भाई को देते घर चलाने के लिए।बाकी के दोनों भाई इसे अपव्यय समझते थे।

सुमन के पति भी पत्नी की जिद से तंग आ जाते।पर सुमन ने जो ठान लिया,वह कर के ही छोड़ती थी।बुरी बनती रही,सबके पास।मुग्धा देवी ने तो कह ही दिया”इस लड़की को गुरु बहन को दिए वादे में बांधकर ले तो आई,पर यह सबको पराया कर देगी।जिद्दी औरत कभी किसी की अपनी नहीं होती।दिन भर किताबों से माथा फोड़ना और गृहस्थी चलाना साथ में नहीं होता।

आए दिन घर में मंझली बहू को लेकर नए सिरे से ताने शुरू होते,जो रात तक चलते।सुमन को कोई परवाह नहीं थी।वह सबसे प्रेम जो करती थी।

एक दिन संझले भाई(प्रभास )से बहुत ज्यादा बहस होने लगी तो, प्रभास ने कहा “मंझले दादा, तुम्हारी पत्नी जब तक यहां रहेगी, घर में अशांति बनी रहेगी।मां की बीमारी बढ़ती रहेगी।अपनी मर्जी से रहना चाहतीं हैं मंझली बहू, तो अलग घर लेकर रह।हम शांति से रहेंगे।मां खुद तो यह बात कह नहीं सकतीं, पर विश्वास कर।वो भी यही चाहतीं हैं।”विभास ने मां की तरफ देखा, तो मुग्धा देवी ने मुंह फिरा लिया।अब विभास, सुमन और बच्चों को लेकर किराए के घर में आ गया।रोजगार अच्छा चल निकला, तो बड़े बरामदे वाला(मंझली बहू की पसंद का)बड़ा सा घर बना लिया।रोज़ दुकान पर जाने से पहले सुमन , पति को मां के पास जाने को कहती, और वह अक्सर टाल देते।घर छोड़कर आने के बाद सुमन को अपनी जिठानी और दोनों देवरानियां बहुत याद आती थीं।जाते समय ही पति से वादा ले लेती” जाकर मां के हांथ में पैसे मत रख देना।उनकी तकिया के नीचे दबा देना।उनके सम्मान को ठेस भी नहीं पहुंचाना।दवाइयों की पूरी लिस्ट थमा दी है।मां की सर्दी -खांसी, मालिश का तेल, फल वगैरह लेकर जाना।वहां के बच्चों के लिए समोसा और रसगुल्ला लेना ।बड़े जेठ जी के लिए खोवे की जलेबी ले लेना।लाजेंस बच्चों के लिए।तीन  साड़ियां तीनों बहुओं के लिए।”” अरे! बस बस , बाप रे।तुम तो मुझे कंगाल बनाकर छोड़ोगी।उस घर में था तो, ताना सुनता था कि मैं बीवी का गुलाम हूं। उसकी कोई बात टाल नहीं सकता।आज भी तुम वही करवा लेती हो मुझसे।इतना सब देने की क्या आवश्यकता है? सबके पिता कमा रहें हैं।मैं ही सबको क्यों दूं? “

सुमन चुप हो कर इतना ही कहती” ठीक है जैसा सही लगे वहीं करना।”बस इसी संक्षिप्त वर्ण माला से हार जाता था विभास मां को साड़ी देते ही ,जैसे ही मां ने साड़ी खोली,दंग रह गई।यह तो उन्होंने सुमन को दुकान में दिखाई थी,पूजा के के लिए लेने को।सुमन ने अभी खरीद ली।

इतने सालों में परिवार में हो रही उथल-पुथल देख रहीं थीं मुग्धा देवी।दोनों भाईयों ने अपने चूल्हे अलग कर दिए थे, बीवियों के बहकावे में।अब अगर मुग्धा जी कुछ कहतीं , तो उन पर बड़े बेटे को ज्यादा प्यार करने का आरोप लगता।

मंझले भाई की कंजूसियत भाईयों और भाभियों को पता ही थी।इतना सब सामान मां के लिए मंझली बहू ही भिजवाती है जिद करके।दादा नहीं ला सकते ख़ुद से।संझली बहू ने आज कहा भी”घर छोड़कर चली तो गईं हैं।अब मां को अपने बस में करना चाहती है मंझली बहू।तभी पति को भेजकर कुछ योजना बना रही होंगीं।अपना हिस्सा ही लेंगी,या सबका हिस्सा देखीं बड़ी दीदी।” बड़ी जिठानी सीधी-सादी कुछ ना कहतीं।

अब मुग्धा जी को सुमन और विभास के घर छोड़ने पर  क्रोध था, पर अब पीड़ा पिघल रही थी।अचानक से बीमार पड़ गईं मुग्धा जी।घर पर बहुएं खाना बनाते, बच्चों को तैयार करते-करते ही इतना थक जातीं थीं कि सास की देखभाल की तरफ उनका ध्यान नहीं जा पा रहा था।समय का भी अभाव था।संझली बहू ने कह ही दिया”इतने दाता कर्ण बने हैं तो, ले कर क्यों नहीं चले जाते मां को।या आकर सेवा कर लें मंझली बहू यहां।अभी अपना परिवार देखना ज्यादा जरूरी थोड़ी है?”, 

विभास मां से मिलने आया ही था तभी,पत्नी और बच्चों को लेकर।सुनते ही वापस जाने लौटने लगा तो,सुमन ने हांथ पकड़ कर कहा” मैं रुकूंगी।मां की सेवा करूंगी।आप घर जाकर बच्चों को संभालिए।”ना चाहते हुए भी विभास,सुमन को छोड़ गया।दिन रात सुमन सास के कमरे ही में पड़ी रही।लगभग पंद्रह दिनों तक छाया की तरह एक ही कमरे में रही वह।मुग्धा देवी की अंतरात्मा भी कोसने लगी थी अब।कितनी जली-कटी बातें सुनाई इसे, पर यह ना तो खुद को बदली, ना ही परिवार को बदला।हां एक नए बदलाव की नींव रखी ।मुझ जैसी सास के तीरथ करवा दिए।

एक दिन थोड़ी तबीयत ठीक लगी तो,सुमन को बुलाकर पूछीं”नीचे चटाई पर बैठकर क्या लिखाई पढ़ाई चल रही है?” सुमन ने साहित्य की एक किताब दिखा दिया” फिर वही पुराना शौक!!! तुम कभी नहीं बदलोगी, मंझली बहू।यमराज भी तुम्हें देखकर भाग गए।मैं मुक्त हो जाती, इस संसार से।तुमने यहां भी अपनी जिद से मुझे बचा ही लिया।मेरा बहुत मन था कि पड़ोस में जो दशरथ दादा की पत्नी मरी, तो उनके चारों बेटे अपने कंधे पर उठाकर ले कर गए थे। ब्राह्मण भोजन की अलग व्यवस्था थी।दीन दुखियों को भी भरपेट भोजन करवाया था , उनके चारों बेटों ने।मेरे तो तीनों तीन अलग दिशाओं में जातें हैं, बस एक बड़ा मेरा भरोसा है।” 

मां की बात सुनकर सुमन ने कहा” तो बोलतीं क्यों नहीं अपने बेटों से।वे तो कम से कम आपके अपने हैं।मैं‌ तो हमेशा से ही पराई रही आपके लिए।मंझली बहू पर क्यों अधिकार जताएंगी आप?”,

कुछ नहीं‌ बोलीं मुग्धा देवी।ईश्वर की प्रेरणा से बस इतना ही कहा सुमन से” मैंने तुम्हारे साथ जो भी बुरा किया उसके लिए तुम पहले माफ कर दो,नहीं तो मेरे शरीर से प्राण कभी नहीं निकलेंगे।”

बस इस‌ शब्द के बाद मां उठी भी नहीं।चारों बेटों , नातियों ने मिलकर दाह संस्कार कर दिया।श्राद्ध की बात पर हिसाब होने लगा।सुमन ने अकेले विभास को बुलवाकर मां की इच्छा बताई, तो वे उस पर ही चढ़ाई कर दिए कि, मां  तुम्हें बताएगी अपनी अंतिम इच्छा? बताना होगा तो हम भाईयों को बताएंगी।तुम कब  से उनकी अपनी हो गई? “सुमन ने जब दशरथ जी का नाम लिया , तो विभास ने बात के वजन को समझा। खर्च का हिसाब मिलाते-मिलाते शाम हो गई।चाय देने आई सुमन को बड़े जेठ के चेहरे में असहायता और माथे पर पसीना साफ दिखाई।बाकी तीनों की भाव-भंगिमा से समझ आ रहा था कि अतिरिक्त खर्च वहन करने के पक्षधर नहीं थे वे।

रात को बड़े जेठ को बुलवाकर,सर पर पल्लू खींचकर विनती करते हुए सुमन ने कहा”बड़े दादा भाई,मां की अंतिम इच्छा पूर्ति हेतु,मेरी तरफ से छोटी सी कोशिश को स्वीकार करिए।आप को मेरी कसम है।आपने सदा मुझे बहू मां कहा है।मां मानते हैं ना मुझे?मना मत करिएगा।आप अपने ऊपर पूरा बोझ नहीं ले सकते,मैं पराई थी सबके लिए,पर आपने हमेशा मुझे बड़े होकर भी मां का दर्जा दिया है।” बड़े भाई कैसे ले सकते थे,छोटी बहू के गहनों की पोटली?जब से ब्याह करके आई है इस घर में।सबने कोसा ही है।फिर भी यह सबका उपकार करती रही।आज अपने गहने ऐसी सास के श्राद्ध के लिए दान कर रही है,जिसने कभी इसे अपना ना समझा।ज़िंदगी भर अपने बेटों को सगा मानतीं रहीं वे,आज वही बेटे हजार रुपए पकड़वा कर शांत हो गए।और यह अभागन सबके पापों का प्रायश्चित कर रही है।नहीं -नहीं।चिल्ला उठे वो”मंझली बहू मां,मैं नहीं ले सकता तुम्हारे गहने।इन पर सिर्फ तुम्हारा हक है।” 

सुमन जाते हुए गहने की पोटली जेठ जी के पैरों के पास रखती हुई बोली” पूरी दुनिया मुझे पराया समझे,मैंने इस घर को सदा अपना समझा है।आपको मेरी कसम है,यह बात किसी को पता ना चले।यह सब आपकी तरफ से मां की अंतिम इच्छा की पूर्ण आहुति है।”

शुभ्रा बैनर्जी 

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